November 21, 2024

पदस्थापना को बदलवाने के दुष्चक्र में पड़ जाते है हम आईएफएस एसोसिएशन के व्हाट्सप्प ग्रुप में पोस्ट के बाद अफसरों में सन्नाटा.

0

In the cycle of positions upheaval occurs, Silence prevails among officers after the post in the IFS Association WhatsApp group is altered.

उदित नारायण

भोपाल। 1993 बैच के आईएफएस शशि मलिक ने सेवानिवृत के आठ महीने पहले एसोसिएशन के व्हाट्सप्प ग्रुप पर अपने भावनाओं को संकलित कर ब्लॉग के रूप में एक पोस्ट किया है।

एसोसिएशन के व्हाट्सप्प ग्रुप में ब्लॉग पोस्ट होते ही लोकसेवक बिरादरी में सन्नाटा खींच गया। मलिक ने लिखा है कि पदस्थापना को बदलवाने के फेर में हम ऐसे दुष्चक्र में फंस जाते कि आईने के सामने खड़े होकर स्वयं से भी नजरें नहीं मिला पाते है. हम केवल एक कठपुतली मात्र बनकर रह जाते हैं तथा हमारा सम्पूर्ण व्यक्तित्व कहीं न कहीं विलीन हो जाता है।
नए साल के जुलाई में रिटायर होने वाले शशि मलिक जहां भी सदस्य रहे, वहां सुर्खियों में बने रहे।

वर्तमान में वे मुख्यालय के समन्वय शाखा में प्रमुख हैं। यहां का पदभार संभालते ही उन्होंने तृतीय और चतुर्थ कर्मचारी को कार्यालय में गणवेश (वर्दी) पहनकर आने की अनिवार्यता आदेश जारी कर सुर्खियों में है। इसकी वजह यह है कि मुख्यालय में ही उनके आदेश का माख़ौल उड़ाया जा रहा है। अपने तमाम पदस्थापनाओं के दौरान अनुभवों को समेटते हुए एक ब्लॉग में लिखा कि कई बार हम अपनी वर्तमान पद स्थापना से संतुष्ट नहीं होते है तथा येन-केन-प्रकारेण पदस्थापना को बदलवाने के दुष्चक्र में पड़ जाते है। इस सम्पूर्ण प्रक्रिया में हमारा कई प्रकार से दोहन किया जाता है। जिसका प्रभाव पुनः हमारे प्राकृतिक संसाधनों पर भी पड़ता है।

इस प्रकार हम एक दुष्चक्र में फंस जाते है जिससे निकलने का हमें कोई भी मार्ग नहीं मिलता है। हम केवल एक कठपुतली मात्र बनकर रह जाते हैं तथा हमारा सम्पूर्ण व्यक्तित्व कहीं न कहीं विलीन हो जाता है। इस दुष्वक्र में फंसकर हम न तो स्वतंत्र रूप से कोई निर्णय ले पाते हैं तथा न ही कर्तव्यों का सम्पादन उचित रूप से कर पाते है, जिसकी हमसे अपेक्षा की जाती है। हम अपने वर्तमान की उस समय से तुलना करें, जब हम इस पवित्र शासकीय सेवा के सदस्य नहीं थे। उस समय हमारी विचारधारा क्या थी, हम क्या सोचते थे ?

परन्तु शासकीय सेवा में आते ही हमारे विभिन्न प्रकार के स्वार्थ जाग्रत हो जाते हैं तथा हम उन्ही की पूर्ति में लग जाते है। हमें इस प्रकार की मानसिकता से बाहर निकलने की आवश्यकता है। जहां भी हमारी पदस्थापना होती है, हमें उसी में पूर्ण रूप से आनंद लेना चाहिए, क्योंकि कई बार इस दुष्चक्र में फंसकर जाने-अनजाने में हम कोई ऐसा कार्य कर जाते हैं कि आईने के सामने खड़े होकर स्वयं से भी नजरें न मिला सकेंगे तो ऐसी स्थिति उत्पन्न ही क्यों होने दी जाए ? हमसे अपेक्षा की जाती है कि प्रकृति एवं पर्यावरण संरक्षण जैसे कार्य को हम नौकरी समझ कर नही बल्कि एक पवित्र कार्य मानते हुये निष्काम भाव से पूर्ण करे। हमारे कर्तव्य पालन का केवल एक ही तरीका है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

न्यूज़

slot server thailand super gacor

spaceman slot gacor

slot gacor 777

slot gacor

Nexus Slot Engine

bonus new member

https://www.btklpppalembang.com/

olympus

situs slot bet 200

slot gacor