बाघ और मानव के बीच संघर्ष

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विशेष टिप्पणी
निरंतर हो रही बाघ और मानव के बीच संघर्ष की लड़ाई में हमेशा बाघ की ही जीत होती है।
आज जो स्थितियां बांधवगढ़ में निर्मित हो रही ही वो मानव ने ही निर्मित की हे जिसका खामियाजा हमारे ग्रामीण बनवासी लोगो को उठाना पड़ रहा हे, निरंतर हो रहे कंक्रीट के निर्माण और वनों की अंधाधुंध कटाई ने हमारे बाघ के विचरण क्षेत्र को काफी संकुचित कर दिया है, जिससे बाघ का विचरण क्षेत्र प्रभावित हुआ है।
लगातार बाघों की बढ़ती हुई संख्या से उनके रहवास की समस्या उत्पन्न हो गई है उनका कॉरिडोर पूरी तरह से नष्ट नष्ट हो चुका है बाघ आखिर कहां जाए, मानव ने नदियों की दिशाएं तक मोड़ दी अन्य जंगली जानवरों के रहने तक को उजाड़ दिया, बाघ का खाना पीना भी प्रभावित हो चुका है,महज शिकार की लालसा में बाघ ग्रामीण क्षेत्रों में दस्तक दे रहा है, भोजन के लिए गायों बकरियां और पालतू जानवरों की तरफ उसने अपना रुख कर दिया है, यही कारण हे , मानव पर बाघ के आक्रमण का , टेरिटोरियल फाइटिंग बढ़ गई है जो शक्ति में कमजोर जीव है वह बाहर आकर गांव के आसपास मडराते हैं और जो शक्तिशाली हैं वह अपना वजूद घने जंगल में ही बनाए रखते हैं,। जो बाहर होते हे बही मानव के ऊपर शिकार की आशंका होने पर आक्रमण करते हैं। इस दिशा में गंभीरतापूर्वक विचार की आवश्यकता है ।कंक्रीट का निर्माण तुरंत बंद करना होगा वन परीक्षेत्र को विकसित करने की दिशा में सोचना होगा और जो मानव ने अपने स्वार्थों के कारण वनों को उजाड़ दिया, उन्हें पुनः स्थापित करना होगा । प्रतिबंधित क्षेत्र में आज भी निर्माण कार्य जारी है ,उसे रोकने की जरूरत है। शक्ति शाली लोगो को कोई बोलने वाला नही ।बिना एनओसी निर्माण या फिर नियम विरुद्ध एनओसी, पर रोक नही लगी तो आगे आने भविष्य बड़ा भयावह होगा जिसे रोक पाना मुश्किल होगा ।