March 20, 2025

विश्लेषण: प्रयागराज महाकुम्भ 2025 मेले में हुई त्रासदी के बाद उठ रहे हैं कई सवाल

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Prayagraj Maha Kumbh 2025 fair

Analysis: Many questions are being raised after the tragedy at the Prayagraj Maha Kumbh 2025 fair

  • भीड़ प्रबंधन में विफलता नजर आई

सम्पादकीय लेख

भोपाल। यूपी सीएम योगी आदित्यनाथ के समर्थक चाहे जितनी कोशिश कर लें, कुम्भ मेले में हुई त्रासदी के पीछे उनके प्रशासन की लापरवाही और कुप्रबंधन को छिपाया नहीं जा सकता। जैसे-जैसे नए विवरण सामने आ रहे हैं, हादसे की भयावहता बढ़ती ही जा रही है। यह भी पता चला है कि 29 जनवरी की सुबह पहली भगदड़ के बाद, कुछ ही घंटों के भीतर थोड़ी दूरी पर दूसरी भगदड़ भी हुई थी। इसके अलावा कुम्भ में कुछ मर्तबा आगजनी की घटनाएं भी हुई हैं, जिनमें सरकार द्वारा श्रद्धालुओं के लिए विशेष रूप से बनाए गए दर्जनों आलीशान टेंट जलकर राख हो गए।

आधिकारिक तौर पर मृतकों की संख्या 30 बताई गई है। लेकिन मौनी अमावस्या के दिन स्नान के लिए जिस पैमाने पर भीड़ उमड़ी थी, उसके मद्देनजर यह संख्या इससे कहीं अधिक हो सकती है। कपड़ों, जूतों, कम्बलों और अन्य निजी सामानों के अवशेष हर जगह बिखरे पड़े थे, जो इस बात के जीवंत साक्ष्य थे कि भीड़ में कुचलने के भय से श्रद्धालु अपनी जान बचाने के लिए इधर-उधर भागने पर मजबूर हो गए थे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस त्रासदी के कुछ ही घंटों के भीतर एक्स पर अपनी शोक संवेदनाएं व्यक्त कर दी थीं, लेकिन उत्तर प्रदेश प्रशासन बहुत समय तक यही दिखावा करता रहा कि कुछ हुआ ही नहीं है।

इसके बाद मोदी ने यूपी सीएम से चार बार फोन पर बात की, गृह मंत्री अमित शाह और राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने भी एक्स पर पोस्ट किया, तब जाकर यूपी प्रशासन को अपनी चुप्पी तोड़ने और सच्चाई स्वीकारने के लिए मजबूर होना पड़ा। हादसे के पूरे 17 घंटे बाद, 29 जनवरी को शाम 7 बजे उन्होंने भगदड़ की जिम्मेदारी लेते हुए बयान जारी किया और ऐसी घटना दोबारा होने से रोकने के इंतजाम करने का वादा किया। उसके बाद से, यूपी सरकार ने भीड़ को सफलतापूर्वक प्रबंधित करने का प्रत्यक्ष अनुभव रखने वाले दो वरिष्ठ अधिकारियों को ड्यूटी पर लगाया है, अतिरिक्त बल तैनात किए हैं और वाहनों और श्रद्धालुओं की आवाजाही को नियंत्रित करने के लिए नए सिरे से यातायात योजना बनाई है, लेकिन नुकसान पहले ही हो चुका था।

जोशीमठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने हादसे के बाद योगी के इस्तीफे की मांग की है और उन पर इस मामले में देश को गुमराह करने का आरोप लगाया। अन्य प्रमुख संतों और साधुओं ने सार्वजनिक रूप से तो कुछ नहीं कहा, लेकिन माना जा रहा है कि कई लोग मन ही मन शंकराचार्य की भावनाओं को समर्थन करते हैं और वे इस बात से नाराज हैं कि मौनी अमावस्या का पवित्र दिन तीर्थयात्रियों के शवों से दागदार हो गया। शंकराचार्य ने कहा कि अगर उन्हें भगदड़ और उसके परिणामस्वरूप हुई मौतों के बारे में पता होता, तो वे मृतकों के लिए उपवास करते और आनुष्ठानिक रूप से तीर्थस्नान नहीं करते।

यूपी के सीएम के रूप में आठ साल के अपने कार्यकाल में योगी ने खुद को हिंदुत्व के एक प्रखर चेहरे के रूप में स्थापित कर दिया है। इससे न केवल उन्हें संघ का समर्थन मिला जिसने लोकसभा चुनावों में यूपी में भाजपा की करारी हार के बावजूद हर परिस्थिति में उनका साथ दिया बल्कि उन्हें खुद को देश भर में एक लोकप्रिय नेता के रूप में स्थापित करने में भी मदद मिली। आज वे मोदी के बाद भाजपा के दूसरे सबसे लोकप्रिय प्रचारक हैं। लेकिन कुम्भ हादसे के बाद एक सक्षम प्रशासक के रूप में उनकी छवि को झटका लगा

कुम्भ का निर्बाध आयोजन उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री की साख को मजबूत कर सकता था। किंतु प्रयागराज में हुए हादसे के बाद अब यूपी प्रशासन से सवाल पूछे जा रहे हैं। यह किसी से छुपा नहीं है कि यूपी की भाजपा में अंतर्कलह है।

है। ऐसा इसलिए भी है, क्योंकि वे कुम्भ शुरू होने से पहले और बाद में लगभग हर दूसरे दिन प्रयागराज का दौरा कर रहे थे, वे व्यक्तिगत रूप से वहां की व्यवस्थाओं की निगरानी कर रहे थे और इस पर बारीकी से नजर रखे हुए थे कि कुम्भ के प्रबंधन के लिए जो प्रशासनिक मशीनरी उन्होंने लगाई थी, वह सुचारु रूप से काम कर रही है या नहीं।

बीवीआईपी के लिए विशेष व्यवस्था, उनकी गाड़ियों की अनियंत्रित आवाजाही और आम श्रद्धालुओं को नदी तक पहुंचने के लिए 20 किलोमीटर से अधिक पैदल चलना, खाने-पीने की चीजों की ऊंची लागत आदि को लेकर भी अनेक श्रद्धालुओं में गुस्सा है। दुनिया के सबसे बड़े धार्मिक समागम का निर्बाध आयोजन हिंदुत्व के प्रतीक और कुशल प्रशासक के रूप में योगी की साख को मजबूत करता, किंतु प्रयागराज में अफसरों की लापरवाही से हुए हादसे के बाद अब उनके नेतृत्व वाले प्रशासन से सवाल पूछे जा रहे हैं। यह किसी से छुपा नहीं है कि यूपी की भाजपा में अंतर्कलह है। 26 फरवरी को मेला समाप्त होने के बाद यूपी की राजनीति में बहुत कुछ देखने को मिल सकता है।

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