December 18, 2024

space technology: अंतरिक्ष में रॉकेट भेजने की होड़, पूरी दुनिया बड़े संकट की ओर

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Space technology: The race to send rockets into space, the whole world is headed for a big crisis

आजकल अंतरिक्ष में जाने वाली कंपनियों की संख्या बढ़ रही है. अंतरिक्ष कचरा सिर्फ अंतरिक्ष में ही नहीं, बल्कि धरती पर भी समस्याएं पैदा कर सकता है.

आजकल हम जिंदगी के कई जरूरी कामों के लिए अंतरिक्ष टेक्नोलॉजी पर निर्भर हैं, जैसे मौसम की जानकारी हासिल करना, एक-दूसरे से बात करना और रास्ता ढूंढना आदि. लेकिन अंतरिक्ष में हो रहे कामों का हमारे पर्यावरण पर भी असर पड़ रहा है. अंतरिक्ष में भेजे जा रहे सैटेलाइट की संख्या बहुत तेजी से बढ़ रही है. इससे अंतरिक्ष में कचरा (Space Debris) भी बढ़ रहा है. यह कचरा पृथ्वी के चारों तरफ चक्कर लगाता रहता है और दूसरे सैटेलाइट और अंतरिक्ष यान के लिए खतरा बन सकता है.

अंतरिक्ष में बहुत ज्यादा सैटेलाइट होने से मौसम की जानकारी इकट्ठा करने वाले सिस्टम में भी रुकावट आ सकती है. वहीं अंतरिक्ष के इस्तेमाल को लेकर अभी तक कोई स्पष्ट कानून नहीं हैं. इससे यह खतरा है कि अंतरिक्ष का इस्तेमाल गैर-जिम्मेदाराना तरीके से हो सकता है.

पर्यावरण को कैसे हो रहा है नुकसान?

जब भी कोई रॉकेट अंतरिक्ष में जाता है, तो वो अपने पीछे बहुत सारा धुआं छोड़ता है. इस धुएं में कार्बन डाइऑक्साइड, ब्लैक कार्बन और पानी की वाष्प होता है. ब्लैक कार्बन एक ऐसा पदार्थ है जो सूरज की रोशनी को बहुत ज्यादा सोखता है. यह कार्बन डाइऑक्साइड से भी 500 गुना ज्यादा खतरनाक होता है क्योंकि यह ग्लोबल वार्मिंग को और बढ़ा देता है.
रॉकेट को अंतरिक्ष में भेजने के लिए जो ईंधन इस्तेमाल किया जाता है, उससे ओजोन परत को नुकसान पहुंचता है. खास तौर पर क्लोरीन वाले रसायनों से यह नुकसान ज्यादा होता है. ओजोन परत हमें सूरज से आने वाली हानिकारक पराबैंगनी किरणों से बचाती है. अगर ओजोन परत कमजोर होगी, तो हमें त्वचा के कैंसर और आंखों की बीमारियों का खतरा बढ़ सकता है.

रॉकेट के धुएं से वातावरण में गड़बड़ी भी होती है जिससे मौसम पर भी असर पड़ता है. जब सैटेलाइट का मिशन पूरा हो जाता है और वातावरण में जल जाते हैं, तो उनसे निकलने वाली राख भी वातावरण और मौसम को नुकसान पहुंचा सकती है.

सैटेलाइट बनाने से भी होता है प्रदूषण!

सैटेलाइट बनाने के लिए भी कई तरह की चीजों की जरूरत होती है, जैसे धातु और अन्य सामग्री. इन चीजों को निकालने और तैयार करने में भी बहुत ऊर्जा खर्च होती है. इससे प्रदूषण भी होता है. सैटेलाइट में ऐसे सिस्टम भी होते हैं जो उन्हें अंतरिक्ष में सही जगह पर रखने और उनकी दिशा बदलने में मदद करते हैं. इन सिस्टम में भी ईंधन का इस्तेमाल होता है जिससे प्रदूषण होता है.
भविष्य में हो सकता है कि कंपनियां अंतरिक्ष से खनिज पदार्थ निकालने लगें. इससे अंतरिक्ष और धरती दोनों जगह प्रदूषण बढ़ेगा.

अंतरिक्ष में कितना है कचरा?

अंतरिक्ष कचरा या ‘स्पेस जंक’ उन चीजों को कहते हैं जो अंतरिक्ष में बेकार हो चुकी हैं, जैसे पुराने सैटेलाइट, रॉकेट के टुकड़े और टूटे हुए सैटेलाइट्स के हिस्से. यह कचरा पृथ्वी के चारों ओर चक्कर लगाता रहता है और काफी खतरनाक हो सकता है.
अंतरिक्ष में इतना कचरा हो गया है कि उस पर नजर रखना मुश्किल हो रहा है. अब तक लगभग 36,860 चीजें अंतरिक्ष में घूम रही हैं जो किसी काम की नहीं हैं. यह सब कचरा मिलकर 13,000 टन से भी ज्यादा वजन का है. यूरोपियन स्पेस एजेंसी के मुताबिक, 1957 से लेकर अब तक लगभग 6740 रॉकेट लॉन्च किए जा चुके हैं जिनसे 19,590 सैटेलाइट अंतरिक्ष में भेजे गए हैं. इनमें से लगभग 13,230 अभी भी अंतरिक्ष में हैं और 10,200 अभी भी काम कर रहे हैं.
जैसे-जैसे अंतरिक्ष में कचरा बढ़ता जा रहा है, वैसे-वैसे सैटेलाइट्स के बीच टकराव का खतरा भी बढ़ता जा रहा है. यह कचरा बहुत तेज गति से घूमता है (लगभग 29,000 किलोमीटर प्रति घंटा). इतनी तेज गति से आ रहा एक छोटा सा धातु का टुकड़ा भी किसी सैटेलाइट को बुरी तरह से नुकसान पहुंचा सकता है.

अगर कोई सैटेलाइट क्षतिग्रस्त हो जाता है, तो हमारे फोन, इंटरनेट और टीवी जैसी सेवाएं बाधित हो सकती हैं. मौसम की जानकारी देने वाले सैटेलाइट्स भी इस कचरे से प्रभावित हो सकते हैं, जिससे हमें मौसम का सही हाल नहीं पता चल पाएगा. यह कचरा अंतरिक्ष यात्रियों और अंतरिक्ष यान के लिए भी खतरा पैदा करता है.

The race to send rockets into space

मेगा-कॉन्स्टेलेशन: इंटरनेट के लिए वरदान, पर्यावरण के लिए अभिशाप?

मेगा-कॉन्स्टेलेशन ऐसे सैटेलाइट्स का समूह होता है जो एक साथ काम करते हैं. इनका मकसद दुनिया के हर कोने में तेज इंटरनेट पहुंचाना होता है. अभी अंतरिक्ष में लगभग 10,000 सैटेलाइट्स हैं. लेकिन अगले कुछ सालों में यह संख्या 10 गुना बढ़कर 1 लाख हो सकती है. यह ज्यादातर मेगा-कॉन्स्टेलेशन की वजह से होगा.
स्पेसएक्स कंपनी का स्टारलिंक अभी सबसे बड़ा मेगा-कॉन्स्टेलेशन है. इसमें अभी 6,500 सैटेलाइट्स हैं और 2030 तक इनकी संख्या 40,000 से ज्यादा हो जाएगी. अमेजन, ई-स्पेस और चीन जैसी कंपनियां भी अपने मेगा-कॉन्स्टेलेशन बना रही हैं. इनमें भी हजारों या दसियों हजार सैटेलाइट्स होंगे.

इतने सारे सैटेलाइट्स से अंतरिक्ष में कचरा बहुत बढ़ जाएगा. वैज्ञानिकों को भी अंतरिक्ष से पृथ्वी का अध्ययन करने में मुश्किल हो सकती है. ये सैटेलाइट्स रात में आकाश में चमकते हैं जिससे तारों को देखना मुश्किल हो जाता है.

The race to send rockets into space

पुराने vs नए सैटेलाइट

पहले जो सैटेलाइट बनाए जाते थे, वो सरकार द्वारा वित्त पोषित होते थे और 20-30 साल तक चलते थे. लेकिन अब निजी कंपनियां मेगा-कॉन्स्टेलेशन बना रही हैं जिनमें हजारों सैटेलाइट्स होते हैं. ये कंपनियां हर 5 साल में अपने सैटेलाइट्स बदलना चाहती हैं ताकि नई टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल कर सकें.
पुराने सैटेलाइट्स को वातावरण में जलाकर नष्ट किया जाता है. इससे अंतरिक्ष में कचरा तो नहीं बढ़ता, लेकिन इससे वातावरण में प्रदूषण जरूर फैलता है. इतने सारे सैटेलाइट्स को अंतरिक्ष में भेजने के लिए बहुत सारे रॉकेट लॉन्च करने पड़ते हैं. इन रॉकेट से भी प्रदूषण होता है.

2019 में लगभग 115 सैटेलाइट वातावरण में जल गए थे. लेकिन 2024 में यह संख्या बहुत ज्यादा बढ़ गई है. नवंबर 2024 तक 950 से ज्यादा सैटेलाइट वातावरण में जल चुके हैं. वैज्ञानिकों का अनुमान है कि 2033 तक हर साल 4000 टन अंतरिक्ष कचरा वातावरण में जलेगा. यह इसलिए होगा क्योंकि अंतरिक्ष में सैटेलाइट्स की संख्या बहुत तेजी से बढ़ रही है.

सैटेलाइट की राख का अध्ययन करना संभव है?

MIT टेक रिव्यू के एक आर्टिकल के अनुसार, जब सैटेलाइट वातावरण में जलते हैं तो उनसे निकलने वाली राख हवा में फैल जाती है. यह राख कई दशकों या शायद सदियों तक वातावरण में ही रहती है. इस राख का अध्ययन करना बहुत मुश्किल है क्योंकि यह वातावरण के उस हिस्से में होता है जहां न तो मौसम के गुब्बारे पहुंच सकते हैं और न ही सैटेलाइट्स से इसका अध्ययन किया जा सकता है. वैज्ञानिक इस राख का अध्ययन ‘रिमोट सेंसिंग’ के जरिए कर सकते हैं. इसमें दूर से ही सैटेलाइट के जलने की प्रक्रिया को देखा जाता है और उसका विश्लेषण किया जाता है. इसके लिए खास तरह के कैमरे और उपकरण इस्तेमाल किए जाते हैं जो दूर से ही सैटेलाइट के जलने की प्रक्रिया को रिकॉर्ड कर सकते हैं.

अंतरिक्ष प्रदूषण से धरती पर कितना असर?

अंतरिक्ष में हो रहे प्रयोग से धरती पर कितना असर पड़ेगा, यह अभी तय नहीं है. वैज्ञानिक इस पर शोध कर रहे हैं, लेकिन अभी तक कोई निश्चित जवाब नहीं मिला है. कुछ अध्ययनों से यह पता चला है कि अंतरिक्ष में होने वाली गतिविधियों से ओजोन परत को थोड़ा नुकसान हो रहा है. लेकिन यह नुकसान अभी बहुत कम है (लगभग 0.1%).
यह कहना मुश्किल है कि आने वाले समय में यह नुकसान कितना बढ़ेगा. यह कई चीजों पर निर्भर करता है, जैसे: अंतरिक्ष से निकलने वाले प्रदूषण के कण कितने बड़े हैं, यह इस बात को प्रभावित करेगा कि वे कितने समय तक वातावरण में रहेंगे. प्रदूषण में कितनी गैसें हैं और कितने ठोस कण हैं, यह भी अहम है.

अंतरिक्ष कचरा: क्या ज्यादा जरूरी है?

एमआईटी टेक रिव्यू की रिपोर्ट में साइंटिस्ट कॉनर बार्कर ने कहा है कि ‘हमें यह तय करना होगा कि इनमें से कौन सी समस्या ज्यादा गंभीर है और उसे कैसे कम किया जाए.’ अभी दुनिया भर में अंतरिक्ष कचरा कम करने के लिए काम हो रहा है. इसके लिए पुराने सैटेलाइट्स को वातावरण में जलाकर नष्ट किया जा रहा है. लेकिन इससे प्रदूषण बढ़ रहा है.

रिपोर्ट में कहा गया है कि हमें यह समझने की जरूरत है कि अंतरिक्ष में जलने वाले कचरे से कितना प्रदूषण होता है. इसके बाद ही हम यह तय कर पाएंगे कि अंतरिक्ष में मौजूद कचरे से निपटने का सबसे अच्छा तरीका क्या है. यह एक ऐसी समस्या है जिसका हल सिर्फ एक देश नहीं निकाल सकता. दुनिया भर के देशों को मिलकर इस समस्या का हल ढूंढ़ना होगा.

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