November 21, 2024

रक्तदाता है जीवनदान के नायक ,विश्व रक्तदाता दिवस विशेष

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World Blood Donor Day special

World Blood Donor Day special

World Blood Donor Day special

Blood donors are heroes of life-saving, World Blood Donor Day special 

रक्तदान एक महान कार्य है जो न केवल दूसरों की जान बचाता है, बल्कि रक्तदाता को भी स्वस्थ रखता है। यदि खून देकर किसी की जान बचती है तो यह  मानवता की सबसे बड़ी सेवा होती है। क्योंकि इंसान के खून का अभी तक कोई विकल्प नहीं है। इंसान को इंसान के ही खून की जरूरत होती है। यदि प्रत्येक स्वस्थ व्यक्ति रक्तदान को अपनी जिम्मेदारी समझे तो बीमार एवं घायल व्यक्तियों की जीवन रक्षा संभव हो सकती है। आइए, जानते हैं कि कौन कर सकता है रक्तदान, क्या हैं इससे जुड़े मिथक और कौनसी होनी चाहिएं सावधानियां।

डॉ. केशव पाण्डेय

14 जून को हर साल रक्तदाता दिवस मनाया जाता है। यह दिन उन नायकों को समर्पित है जो अपने रक्तदान के माध्यम से लोगों का जीवन बचाते हैं। दुनिया भर में सुरक्षित रक्त और रक्त उत्पादों की आवश्यकता के बारे में जागरूकता बढ़ाने और रक्त के जीवन रक्षक उपहार के लिए सभी स्वैच्छिक दाताओं को धन्यवाद देने के लिए इसे मनाया जाता है। 

रक्तदान का महत्व चिकित्सा क्षेत्र में ही नहीं, बल्कि समाज के हर वर्ग में व्यापक है। 14 जून 1868 को कार्ल लैंडस्टीनर की जयंती पर इस दिन को मनाने की शुरूआत हुई थी। लैंडस्टीनर को ए, बी और ओे रक्त समूह प्रणाली की खोज के लिए नोबेल पुरस्कार दिया गया था। भारत में स्वैच्छिक रक्तदान पहल का पहला रिकॉर्ड 1942 का है। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जब कोलकाता में पहला ब्लड बैंक स्थापित किया गया था।

रक्तदान एक महत्वपूर्ण क्रिया है जो न केवल रक्त की कमी से जूझ रहे मरीजों की जान बचाती है, बल्कि यह रक्तदाता के स्वास्थ्य के लिए भी फायदेमंद होती है। रक्तदान करने से रक्तचाप संतुलित रहता है और दिल की बीमारियों का खतरा कम होता है। नियमित रक्तदान करने से शरीर में नई रक्त कोशिकाओं का निर्माण होता है, जो स्वास्थ्य के लिए लाभकारी होता है। रक्तदान से आपातकालीन स्थितियों में रक्त की उपलब्धता सुनिश्चित होती है। 18 से 65 वर्ष  और कम से कम 50 किलो वजन वाला कोई भी स्वस्थ व्यक्ति रक्तदान कर सकता है। 

राष्ट्रीय रक्त पारेषण परिषद के अनुसार भारत में बीते वर्ष करीब 1.4 करोड़ यूनिट रक्त एकत्रित किया गया था। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार देश में रक्तदान करने वालों की संख्या आमतौर पर कम है। हालांकि स्वैच्छिक रक्तदान की प्रवृत्ति धीरे-धीरे बढ़ रही है। बिना स्वैच्छिक रक्तदान के सही समय पर सही परिमाण में अच्छी गुणवत्ता वाले रक्त की आपूर्ति सुनिश्चित नहीं की जा सकती। 

स्वैच्छिकत रक्तदान मूल्यवान है। क्योंकि यह दुर्घटना, रक्तस्त्राव, जलने में, रक्त अल्पता, बडे़ ऑपरेशनों में, बच्चे के पैदा होने के बाद रक्त स्त्राव, रूधिर कैंसर, थैलीसीमिया, रक्त स्त्राव डायलेसिस, नवजात शिशु में लोह तत्व की बिमारियां के दौरान वरदान साबित होता है।

रक्तदान में स्वैच्छिक और अव्यावसायिक रक्तदाताओं का विशेष महत्व है। यह वह लोग हैं जो अपनी इच्छा से निःशुल्क रक्तदान करते हैं। हालांकि देशभर में व्यावसायिक रक्त विक्रेता भी हैं, जो पैसे लेकर अपना रक्त बेच देते हैं। चिकित्सकों के मुताबिक इनके रक्त को सुरक्षित नहीं माना जा सकता। क्योंकि ये अधिकतम रूधिर जनित बीमारियों, जैसे-मलेरिया, हैपेटाइटिस, सिफलिस और एड्स के वाहक होते है। उनके रक्त की गुणवत्ता भी होमोग्लोबिन व प्रोटीन की मात्रा की दृष्टि से बेकार होती है। जो मरीज के लिए घातक सिद्ध हो सकती है।

आप को बता दें कि आमतौर पर जब एक यूनिट करीब 350 मिली ग्राम खून दान किया जाता है, तो शरीर पर उसका कोई विशेष प्रभाव नहीं होता है, न ही कमजोरी आती है। मानव शरीर में इतनी क्षमता होती है कि अगर एक यूनिट रक्तदान कर रहे हैं तो अगले दो-तीन दिनों में बोन मैरो उसकी भरपाई करना शुरू कर देता है। कुछ लोगों को संक्रमण का डर होता है जबकि ऐसा बिल्कुल भी नहीं है। आजकल रक्तदान में प्रयुक्त सामग्री डिस्पोजेबल होती है। इसीलिए रक्तदान के समय संक्रमण होने की गुंजाइश नहीं होती। दुर्लभ रक्त समूह होने पर उसी ग्रुप के रक्तदाता की व्यवस्था करनी होती है। हालांकि, ब्लड बैंक के पास सभी ब्लड ग्रुप के रक्त उपलब्ध होते हैं। उसे किसी दूसरे रक्तदाता से प्रतिस्थापित कर रक्त उपलब्ध करा दिया जाता है। इसी तरह प्लेटलेट सांद्रण बनाने के लिए कई बार ’ओ’ पॉजिटिव का रक्त का प्रयोग किया जाता है। कोई भी व्यक्ति एक महीने बाद दोबारा रक्तदान कर सकता है। लेकिन तीन महीने के अंतराल बेहतर होता है। 

इंसानों के शरीर में ए, बी, एबी, ओ पॉजिटिव और नेगेटिव जैसे आठ तरह के ब्लड ग्रुप होते हैं। लेकिन एक ऐसा ब्लड ग्रुप भी है जिसके बारे में लोग ज्यादा नहीं जानते हैं। करीब आठ अरब की आबादी वाली दुनिया में महज 45 लोगों के शरीर में पाया जाता है। इस ब्लड ग्रुप का नाम है आरएच नल। यह ब्लड ग्रुप उन लोगों के शरीर में मिलता है जिनका आरएच फैक्टर नल होता है। यह बहुत दुर्लभ ब्लड ग्रुप है, इसी कारण इसे “गोल्डन ब्लड“ भी कहा जाता है। जबकि ओ ग्रुप रक्त को “सार्वभौमिक दाता“ कहा जाता है।

चिंता की बात यह है कि देश में करीब 47 लाख लोग स्वैच्छिक रक्तदान करते हैं। इनमें महिलाएं महज 6 से10 प्रतिशत हैं। पर्याप्त मात्रा में ब्लड बैंक नहीं होने की अलग समस्या है। देश में करीब 1.25 करोड़ यूनिट रक्तदान होता है। जबकि जरूरत 1.52 करोड यूनिट की होती है। शहर की बात की जाए तो ग्वालियर में रेडक्रॉस सोसायटी और अन्य संस्थाओं के माध्यम से प्रति वर्ष 25 हजार यूनिट रक्त जमा होता है बावजूद इसके जरूरत 40 हजार यूनिट की होती है।

हमें ग्वालियर के ब्लड मैन शिप्रा हैल्थ फाउण्डेशन के सचिव सुधीर दुरापे को भी इस मौके पर सलाम करना चाहिए, क्योंकि वे शहर में रक्तदाता के रूप में असली नायक हैं। जिन्होंने हजारांं लोगों की जिंदगी को बचाने का काम किया है। वे स्वयं 78 बार रक्तदान कर चुके हैं और शहर के अनेक युवाओं को इसके लिए प्रेरित करने का काम कर रहे हैं। 

दुरापे जैसे नायक हमें इस महान कार्य की महत्ता को याद दिलाते हैं और हमें प्रेरित करते हैं कि हम भी इस पुण्य कार्य में अपना योगदान दें। आइए, हम सभी मिलकर रक्तदान करें और समाज को अधिक स्वस्थ और खुशहाल बनाने के लिए आगे आएं।रक्तदान के महायज्ञ में जिंदगी रूपी आहुति देकर अपने जीवन को सार्थक बनाएं। साथ ही उन सभी नायकों का मान बढ़ाएं, जो अपने रक्त से जीवन की रचना करते हैं।

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