वर्चुअल वर्ल्ड : ए हार्ष रियलिटी ।

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विश्व की आबादी बढ़ते बढ़ते 8 बिलियन से भी ज्यादा हो गई है । भौतिकता और आधुनिकता के इस दौर में जहां एक ओर मानवीय आबादी 800 करोड़ पहुंच रही है । मनुष्य जल , थल, नभ के बाद अंतरिक्ष में अपना एकाधिकार बताने में अनवरत लगा हुआ है । सूचना क्रांति और प्रौद्योगिकी इस युग में अपने उत्कर्ष पर है , करोड़ों लोग संपर्क क्रांति से एक दूसरे से जुड़े हुए हैं , पर मानवीय संवेदनाएं कहीं विस्मृत होती जा रही हैं ।
सोचने की बात है कि , इतनी जनसंख्या होने के बाद भी आज लोग सबसे अधिक अकेलापन महसूस कर रहे हैं । मनोरोग बढ़ते जा रहे हैं । सोशल मीडिया और इंटरनेट ने एक दूसरे से बातचीत और संपर्क करने का जरिया आसान कर दिया है ,परंतु फिर भी अकेलापन बढ़ क्यों रहा है ? पहले दुनिया में लोग कम थे और जीने के साधन भी कम थे , पर फिर भी मुश्किलों से भरा जीवन होने के बाद भी लोग अकेला कम महसूस करते थे ।
वस्तुतः जब हम इस बात का तथ्यान्वेषण करते हैं , तब समझ आता है की , पहले मानवीय सभ्यताऐं , समाजों से विकसित हुईं । जिसके कारण महानतम सभ्यताओं के विकास में मानवीय मूल्य ,विकास की धुरी का कार्य करती रहे है । इसलिए कहा गया की मानव एक सामाजिक प्राणी हैं । और हमारी सामाजिक रीति रिवाज , मान्यताएं , धारणाएं सभी सहकार या कहें की समाज को साथ लेकर चलने और कार्य करने की पद्धति से विकसित होते चले आई , जिससे 19वी वा 20 वी सदी के पूर्वार्ध में इतनी क्रांतियां , युद्ध महामारी भुखमरी जैसी विभीषिका होने पर भी कभी सामाजिक सरोकार और मानवीय संवेदनाओं का ऐसा अकाल जैसे आज है कभी नहीं हुआ ।
अब वापस विषय बिंदु पर आते हुए बात करते हैं , आज के समय की , आज इस युग में संपर्क क्रांति होने के बावजूद भी मनुष्य में अकेलापन और मनोरोग इतनी अधिक संख्या में क्यों विकसित होते जा रहें हैं ?
अकेलापन एक मनः स्थिति है यह विकसित होती है निश्चित तौर पर लगातार एक सी , “लाइफ प्रैक्टिस” पर , क्योंकि जैसा जीवन हम गढ़ते हैं वैसा ही मनोविज्ञान हम अपने मानस में विकसित करते हैं । संसाधनों से सुख की अनुभूति प्राप्त करने की चाह ने मनुष्य को मानवीय संवेदना की प्राप्ति जो की सुख की है , शांति की है उसके लिए भी भगवादी बना दिया । जिससे आज मनुष्य संवेदनाओं कि अभिव्यक्ति के लिए भी यांत्रिक प्रौद्योगिकी या सूचना प्रौद्योगिकी पर निर्भर है ।
परिवार में लोग ज्यादा होते थे घर की अर्थव्यवस्था अच्छी ना भी हो तो भी मानसिक रोग कम थे ।पहले पड़ोस के लोग एक दूसरे की खबर रखते थे आज संपर्क करना आसान है , पर अकेलापन है शारीरिक स्वास्थ्य पर भी हम ध्यान देते हैं । पर मानसिक स्वास्थ्य के बारे में हम कितना ही जानते हैं ? भारत उत्सव का देश है पर हम कभी भी भौतिकता वादी और एकाकी नहीं थे ।
” वसुदेव कुटुंबकम ” हमारी संस्कृति का आधार है , मूल तत्व है ।हम पूरी दुनिया को अपने परिवार जैसा मानते हैं और वही करने में विश्वास रखते हैं , जो सबके लिए अच्छा हो । फिर यह भौतिकता वाद कहां से आ गई । लोगों के पास दिल खोलकर अपने दुख और परेशानी बताने के लिए आज लोग ही नहीं है । सोशल मीडिया में जिस मित्र के 5000 कनेक्सशन हैं , उसके अपने माता पिता परिजन गांव में अलग घर में रह रहे हैं । सब अपने अपनी जिंदगी में इतने खोए हैं , कि रुक कर देख नहीं पा रहे हैं कि वह खुद और आसपास के लोग क्या महसूस कर रहे हैं । हम मनुष्य हैं और संवेदनाओं से भरे हुए हैं ।लोगों के प्रति संवेदनशील होना हम सबके लिए बहुत जरूरी है । जब हम सभी मानवीय संवेदनाओं को लेकर चलते हैं , तो कही ना कही हम संचार क्रांति और भौतिकता के युग में भी मानवीय पहलू के साथ जीवन यापन कर सकते हैं , जिससे हमारा मानवीय पहलू जीवित रह सके । मानसिक रोग और एकाकी पन से बचने का सबसे सरल साधन यही है । मानवीय भावनाओं के साथ साथ , हम सभी को ,मानसिक स्वास्थ्य और मानसिक रोगों के बारे में जानना जरूरी है । ताकि इन उसमें होने वाले तनावों से बच सके हमारी छोटी-छोटी और बड़ी से बड़ी समस्या हल कर सकती है । आपकी इस विषय पर आपकी क्या राय है ?