बांधवगढ़ टाइगर रिज़र्व में कबीर दर्शन यात्रा पर NGT की सख्ती

NGT’s strictness on Kabir Darshan Yatra in Bandhavgarh Tiger Reserve
- तीन माह में राज्य सरकार को तय करनी होगी नीति
भोपाल। राष्ट्रीय हरित अधिकरण, केंद्रीय क्षेत्र पीठ ने निर्देश दिया कि राज्य सरकार समिति की सिफारिशों और आवश्यक अतिरिक्त उपायों के साथ तीन माह की समय-सीमा में निर्णय ले तथा उसे प्रकाशित करे। साथ ही एनटीसीए ने यह स्पष्ट किया कि किसी भी प्रभावित व्यक्ति को बाद में उपयुक्त मंच पर आवेदन करने का अधिकार होगा। इन निर्देशों के साथ मूल आवेदन का निस्तारण कर दिया गया।
भोपाल में मूल आवेदन संख्या 268/2024 (सीज़ेड) अजय शंकर दुबे बनाम शुभरंजन सेन एवं अन्य में सुनवाई दिनांक 12 अगस्त 25 को हुई। पीठ के समक्ष आवेदक की ओर से अधिवक्ता श्री हरषवर्धन तिवारी उपस्थित हुए, जबकि प्रतिवादियों की ओर से अधिवक्ता श्री प्रशांत एम. हर्ने उपस्थित रहे। इस प्रकरण में आवेदक ने एक गंभीर पर्यावरणीय प्रश्न उठाया, जो बांधवगढ़ टाइगर रिज़र्व के क्षेत्र अधिकारी द्वारा श्री सद्गुरु कबीर धर्मदास साहब वंशावली को “दर्शन यात्रा” आयोजित करने की दी गई अनुमति से संबंधित था। यह यात्रा बांधवगढ़ राष्ट्रीय उद्यान के कोर क्षेत्र में प्रस्तावित थी, जो प्रोजेक्ट टाइगर के अंतर्गत एक महत्वपूर्ण बाघ आवास है। आवेदक का कहना था कि यह यात्रा उद्यान के नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र को गंभीर खतरा पहुँचाती है, इसकी समृद्ध जैवविविधता को नुकसान पहुँचाती है और वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972; वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980 तथा पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 का उल्लंघन करती है।
आवेदक के अनुसार, पिछले वर्षों में इस यात्रा में 14,000 से अधिक लोग शामिल हुए, जिन्होंने संवेदनशील कोर क्षेत्र में प्रवेश किया, चरनगंगा नदी में धार्मिक अनुष्ठान किए, रात्रि विश्राम बिना किसी स्वच्छता सुविधा के किया, बांस काटकर लाठियाँ बनाई, और प्रदूषण, शोर व अन्य गतिविधियों से पारिस्थितिकीय क्षति पहुँचाई। इससे बाघ एवं उनके शिकार प्रजातियों के व्यवहार और प्रजनन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा। आवेदक ने यह भी कहा कि दी गई अनुमति में प्रतिभागियों की संख्या सीमित करने, प्रवेश-निकास समय तय करने, स्वच्छता सुविधाएँ उपलब्ध कराने और ठोस अपशिष्ट प्रबंधन योजना लागू करने जैसी आवश्यक शर्तें शामिल नहीं थीं।
विनाश का कारण बनते हैं आयोजन कोर क्षेत्र में आवासीय
केंद्रीय एनटीसीए पीठ ने यह माना कि ऐसे धार्मिक आयोजन कोर क्षेत्र में आवासीय विनाश का कारण बनते हैं और संरक्षित क्षेत्रों में वन्यजीव एवं वनों की रक्षा के लिए बनाए गए क़ानूनों के विपरीत हैं। सुनवाई में 27 नवम्बर 2024 के प्रधान मुख्य वन संरक्षक के पत्र का उल्लेख हुआ, जिसमें कुछ शर्तों के साथ यात्रा की अनुमति दी गई थी, तथा वर्ष 2022 में उसी अधिकारी द्वारा राज्य वन विभाग को इस प्रकार की गतिविधियों के नियमन की सिफारिश की गई थी। आवेदक ने सरिस्का टाइगर रिज़र्व के प्रबंधन से संबंधित उच्चतम न्यायालय में लंबित स्वतः संज्ञान याचिका का भी हवाला दिया।
एनटीसीए में सरकार का जवाब
प्रदेश राज्य सरकार ने अपने जवाब में कहा कि 6 जनवरी 2025 को कबीर मेला के संदर्भ में हुई बैठक के बाद वाइल्डलाइफ इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया (डब्ल्यू.आई.आई.) ने 9 जनवरी 2025 से 18 जनवरी 25 तक कबीर मंदिर तक जाने वाले मार्ग की तीर्थयात्रियों की वहन क्षमता तथा वन्यजीव एवं जैवविविधता पर प्रभाव का अध्ययन किया। डॉ. पराग निगम द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट में क्षमता 7,000–8,000 यात्रियों की आंकी गई, लेकिन कठिन चढ़ाई, क्षतिग्रस्त मार्ग, और जंगली हाथी व बाघों की उपस्थिति के कारण इसे घटाकर केवल 4,000–5,000 यात्रियों तक सीमित करने की सिफारिश की गई।
ऑनलाइन पंजीकरण करें
समिति ने यह भी अनुशंसा की कि सभी यात्री मेले में आने से पहले ऑनलाइन पंजीकरण करें, जिसकी जानकारी आयोजकों और गुरुओं के माध्यम से एक माह पूर्व दी जाए, और सभी यात्रियों को केवल वाहनों द्वारा कबीर गुफा तक पहुँचने की व्यवस्था की जाए ताकि कोर क्षेत्र में वन्यजीवों को न्यूनतम व्यवधान हो। इन सिफारिशों को राज्य सरकार की स्वीकृति हेतु प्रधान मुख्य वन संरक्षक को भेजा गया और इस संबंध में मानक संचालन प्रक्रिया (SoP) एवं दिशा-निर्देश अंतिम रूप देने की कार्यवाही लंबित थी। राज्य के अधिवक्ता ने कहा कि विस्तृत वैज्ञानिक अध्ययन कर उपाय सुझाए गए हैं, और नीति-निर्माण का अधिकार राज्य सरकार के पास है।