बाघ और अब चीतों के बीच फंसा मोहली गांव, विस्थापन रुका, खतरें में 8 हजार जिंदगियां

Mohli village trapped between tigers and leopards, displacement stopped, 8 thousand lives in danger
सागर ! मध्य प्रदेश के सबसे बड़े टाइगर रिजर्व में करीब 8 हजार आबादी वाली ग्राम पंचायत मोहली के बंटी यादव 4 महीने पहले विस्थापन की औपचारिकताएं पूरी कर चुके हैं. लेकिन अब तक गांव में विस्थापन प्रक्रिया शुरू नहीं हो सकी है. उनका कहना है कि, ”बाघों की आबादी बढ़ रही है, हम अब सुरक्षित नहीं हैं. डर के मारे ना खेती कर पाते हैं, रोजगार और बुनियादी सुविधाओं का भी अभाव हैं. हम सिर्फ इतना चाहते हैं कि यहां से निकलकर सुरक्षित जगह पहुंच जाएं.”
गांव की करीब 80 फीसदी आबादी को विस्थापन में मिलने वाले मुआवजे का इंतजार लंबा हो रहा है. टाइगर रिजर्व प्रबंधन का कहना है कि, विस्थापन स्वैच्छिक होता है और जब तक ग्रामसभा की सहमति नहीं मिलेगी, तब तक हम विस्थापन प्रक्रिया शुरू नहीं कर पाएंगे. ऐसे में सवाल उठ रहा है कि लगातार बाघों की आबादी बढ़ने के अलावा अफ्रीकन चीते भी यहां आने वाले हैं. अगर समय पर विस्थापन नहीं हुआ, तो वन्यप्राणी और इंसान दोनों असुरक्षित होंगे.
मोहली का विस्थापन बड़ी समस्या
नौरादेही टाइगर रिजर्व में विस्थापन की प्रक्रिया 2014 से चल रही है. हालांकि 2018 में इलाके को राष्ट्रीय बाघ संरक्षण परियोजना में शामिल किया गया था और 2023 में टाइगर रिजर्व का दर्जा दिया गया था. लेकिन 2010 में यहां अफ्रीकन चीतों को बसाने के लिए सर्वेक्षण हुआ था और तभी तय कर लिया गया था कि पहले यहां विस्थापन की प्रक्रिया शुरू की जाए. उसी समय नौरादेही वाइल्ड लाइफ सेंचुरी हुआ करती थी और यहां पर बाघों की संख्या शून्य थी.
लेकिन भविष्य में बाघ और चीता बसाने के लिहाज से यहां 2014 में विस्थापन की प्रक्रिया शुरू कर दी गयी. तब से लेकर अब तक कई छोटे गांव विस्थापित हो चुके हैं. लेकिन मोहली एक ऐसा गांव है, जिसकी आबादी करीब 8 हजार है और इस गांव का विस्थापन काफी जरूरी है. यहां के 80 से 90 फीसदी लोग विस्थापन की औपचारिकताएं पूरी कर चुके हैं. लेकिन ग्राम सभा द्वारा सहमति नहीं दिए जाने के कारण विस्थापन शुरू नहीं हो पा रहा है.
क्या कहते हैं विस्थापित लोग
टाइगर रिजर्व के मोहली गांव के 80 फीसदी लोग विस्थापन की औपचारिकताएं पूरी कर चुके हैं. लेकिन ग्राम सभा में प्रस्ताव पारित ना होने के कारण ये स्थिति बनी है. मोहली के रामा यादव बताते हैं कि, ”जंगली जानवरों से परेशान हैं. विस्थापन मंजूर हो चुका है, लेकिन मुआवजा कम मिल रहा है. अभी 15 लाख रूपए मिल रहे हैं और हम 35 से 30 लाख चाहते हैं. दूसरी तरफ हमारी खेती की जमीन का कोई भी मुआवजा नहीं दिया जा रहा है. पति पत्नी को एक यूनिट में गिना जा रहा है. इसलिए हम अभी नहीं जाना चाहते हैं.”
बंटी यादव कहते हैं कि, ”यहां जानवरों का आतंक है. फसलें भी सुरक्षित नहीं रह पा रही हैं. बेरोजगारी, बिजली और पानी की समस्या है. जानवरों के डर से हम लोग खेत भी नहीं जा पाते हैं. पिछले साल मेरे पिताजी पर हमला कर दिया था. यहां पर बाघों की आवाज आती रहती है. चार महीने खाता खुले हो चुके हैं, सरपंच प्रस्ताव नहीं दे रहे हैं, तो अभी पैसा नहीं मिला है. हम लोग विस्थापन चाहते हैं कि सुरक्षित जगह पर पहुंच जाएं. यहां पर हम लोग सुरक्षित नहीं हैं.”
क्या कहते हैं वाइल्डलाइफ एक्टिविस्ट
वाइल्डलाइफ एक्टिविस्ट अजय दुबे का कहना है कि, ”नौरादेही टाइगर रिजर्व में विस्थापन की प्रक्रिया गंभीर होती जा रही है. यहां मौजूद बाघों के हिसाब से बहुत बड़ा एरिया चाहिए है. कोर एरिया में बड़ी संख्या में हजारों लोग रह रहे हैं. ऐसे में विस्थापन की प्रक्रिया में तेजी लाना जरूरी है. प्रबंधन को चाहिए कि स्थानीय लोगों से संपर्क करें. जनप्रतिनिधि सरपंच, विधायक और सांसद सब की सहमति से प्रक्रिया आगे बढ़ना चाहिए. क्योंकि भविष्य में इधर चीते भी आना हैं.”
”नौरादेही टाइगर रिजर्व बेहतर तब बन सकता है, जब यहां जो अंदरूनी समस्याएं हैं उन में मुख्य धारा से कटे लोगों को निर्धारित पैकेज दिया जाए. रोजगार की व्यवस्था की जाए, उन्हें पर्यटन से जोड़ा जाए और स्वावलंबन की योजनाओं से जोड़ा जाए. मुझे विश्वास है कि यहां के लोग अपने इलाके के बाघों और चीतों की सुरक्षा के लिए नई बसाहट में बसेंगे और वन विभाग उन्हें सहयोग करेगा.”
क्या कहना है टाइगर रिजर्व प्रबंधन का
नौरादेही टाइगर रिजर्व के डिप्टी डायरेक्टर डाॅ. ए ए अंसारी कहते हैं कि, ”जिन गांवों की ग्राम सभा की सहमति आ गयी है, वहां पर हमने विस्थापन की प्रक्रिया शुरू कर दी है. मोहली गांव की अभी तक हमारे पास ग्राम सभा की सहमति नहीं आयी है. सहमति के उपरांत प्रक्रिया पूरी की जाएगी. चूंकि यह स्वैच्छिक विस्थापन है, इसलिए ग्राम सभा की सहमति के बाद ही प्रक्रिया शुरू होगी. मोहली के अधिकतम लोग जाने को इच्छुक हैं और जैसे ही सहमति मिल जाएगी, हम प्रक्रिया पूरी कर देंगे. मोहली एक बड़ा गांव है, इसके लिए हमें सहमति मिलने पर बजट की मांग करना होगी.”