स्वास्थ्य विभाग की लापरवाही पर जब उठे सवाल — तो बौखलाए बीएमओ ने मीडिया से तोड़ा रिश्ता!
When questions were raised about the negligence of the health department, the distraught BMO broke ties with the media!
नलखेड़ा। जनता के स्वास्थ्य की जिम्मेदारी संभालने वाले ब्लॉक मेडिकल ऑफिसर डॉ. विजय यादव शायद भूल गए हैं कि सरकारी कुर्सी जवाबदेही के लिए होती है, अहंकार के लिए नहीं।
स्वास्थ्य विभाग की अव्यवस्थाओं पर जब मीडिया ने आईना दिखाया, तो बीएमओ ने उस आईने को ही तोड़ देने का रास्ता चुन लिया।
मीडिया और प्रशासनिक अधिकारियों के व्हाट्सएप ग्रुप से खुद को अलग कर लेना, क्या इस बात का प्रमाण नहीं कि अधिकारी आलोचना से भाग रहे हैं?
नलखेड़ा में स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति किसी से छिपी नहीं है।
अस्पतालों में गंदगी, झोलाछाप डॉक्टरों का बोलबाला, पीने के पानी की दुर्दशा और जांच केंद्रों की मनमानी – इन सब पर जब पत्रकारों ने बार-बार लिखा, तो विभाग की नींद टूटने के बजाय बेबसी और दबाव की बदबू आने लगी।
जिम्मेदार अधिकारी ने सुधार की दिशा में कदम उठाने के बजाय पत्रकारिता पर ही दूरी बनाकर यह साबित कर दिया कि अब सिस्टम की पारदर्शिता उन्हें खटकने लगी है।
सबसे गंभीर सवाल यह है कि डॉ. यादव पिछले 23 सालों से नलखेड़ा में ही क्यों टिके हुए हैं?
क्या स्वास्थ्य विभाग में कोई और अधिकारी नहीं जो इस जिम्मेदारी को संभाल सके?
या फिर स्थानीय राजनीतिक संरक्षण और रसूख ने नियमों को ताक पर रख दिया है?
इतने लंबे समय से एक ही जगह जमे रहना, खुद में एक बड़ा सवाल है —
क्योंकि विभागीय नियम साफ कहते हैं कि हर अधिकारी का तबादला निश्चित अवधि में होना चाहिए ताकि निष्पक्षता बनी रहे।
लेकिन जब अधिकारी खुद को पद से बड़ा समझने लगे, तो ऐसी ही नौबत आती है — जहां जनता बीमार है, और जिम्मेदार मौन।
वंदे मातरम कार्यक्रम जैसे सरकारी आयोजनों से दूरी बनाना,
मीडिया संवाद से पलायन करना,
और ग्रुप छोड़ देना —
ये सब वही संकेत हैं जो यह बताते हैं कि नलखेड़ा का स्वास्थ्य तंत्र बीमार है और इलाज करने वाला खुद इलाज से भाग रहा है।
अब यह देखना दिलचस्प होगा कि
क्या डॉ. विजय यादव इस आलोचना को आत्ममंथन का अवसर बनाएंगे,
या फिर आलोचना से चिढ़कर नलखेड़ा को लाचारियों की नई दवा लिख देंगे।