शहरीकरण और आर्थिक विकास के बावजूद देश में रोजगार की कमी क्यों?
Why is there lack of employment in the country despite urbanization and economic development?
Why is there lack of employment in the country despite urbanization and economic development?
- भारत में तेजी से हो रहा शहरीकरण और आर्थिक विकास रोजगार के लिहाज से उतना कारगर साबित नहीं हो पा रहा है, यह एक चिंताजनक विषय है.
देश में बेरोजगारी की समस्या बहुत गंभीर है. खासकर युवाओं के लिए अच्छे रोजगार के मौके कम हैं. हाल ही में हुए लोकसभा चुनाव में भी बेरोजगारी एक बड़ा मुद्दा रहा. लोगों को मुफ्त में सामान देने से कुछ वक्त के लिए तो फायदा होता है लेकिन असल में लोगों को रोजगार चाहिए.
वहीं देश में विकास तेजी से हो रहा है लेकिन उतनी ही तेजी से रोजगार के मौके नहीं बढ़ पा रहे हैं. पिछले 50 सालों से जो आंकड़े इकट्ठे किए गए हैं, वो साफ बताते हैं कि जितनी तेजी से देश की अर्थव्यवस्था बढ़ रही है, उतनी तेजी से लोगों को रोजगार नहीं मिल पा रहा है. अगर इस समस्या को नजरअंदाज किया गया तो आगे आने वाले समय में बहुत बड़ी परेशानी खड़ी हो सकती है.
बेरोजगारी फिर बढ़ी!
भारत में बेरोजगारी फिर से बढ़ गई है. इसी साल मई महीने में जहां बेरोजगारी दर 7% थी, वहीं जून में ये बढ़कर 9.2% हो गई. एक निजी संस्था (CMIE) की ओर से जारी ताजा आंकड़ों ने चिंता बढ़ा दी है. CMIE के अनुसार, जून 2024 में भारत की बेरोजगारी दर बढ़कर 9.2% हो गई है. मई 2024 में ये दर 7% थी. ये बढ़ोतरी शहरों और गांवों दोनों जगह देखने को मिली है. गांव में बेरोजगारी की दर मई में 6.3% से बढ़कर जून में 9.3% हो गई है. वहीं शहरों में ये दर 8.6% से बढ़कर 8.9% हो गई है.
दिलचस्प बात ये है कि बेरोजगारी दर बढ़ने के साथ ही रोजगार ढूंढने वालों की संख्या भी बढ़ी है. जून में ये दर 41.4% हो गई, जो मई में 40.8% थी. हालांकि रोजगार पाने वालों का अनुपात कम हुआ है. जून 2024 में ये दर घटकर 37.6% हो गई, जो मई में 38% थी.
महिला बेरोजगारी बहुत बढ़ी!
सबसे ज्यादा चिंता की बात ये है कि महिलाओं में बेरोजगारी बहुत ज्यादा बढ़ गई है. CMIE के सर्वेक्षण से पता चलता है कि जून 2024 में 18.5% महिलाएं बेरोजगार थीं, जो कि पिछले साल के मुकाबले 3.4% ज्यादा है. वहीं पुरुषों में भी बेरोजगारी थोड़ी बढ़ी है. पिछले साल जून 2023 में 7.7% पुरुष बेरोजगार थे जो इस साल बढ़कर 7.8% हो गए हैं.
तेजी से रफ्तार पकड़ रही है अर्थव्यवस्था
अच्छी बात ये है कि भारत की अर्थव्यवस्था काफी तेजी से बढ़ रही है. नेशनल सैंपल सर्वेक्षण कार्यालय (NSO) के आंकड़ों के मुताबिक, जुलाई-सितंबर 2023 तिमाही में आर्थिक विकास दर 8.4% तक पहुंच गई थी.
NSO के आंकड़ों से ये भी पता चलता है कि निर्माण, खनन और विनिर्माण जैसे क्षेत्रों ने इस आर्थिक विकास को आगे बढ़ाने में अहम भूमिका निभाई है. वित्त वर्ष 2023-24 के लिए NSO के दूसरे अग्रिम अनुमानों से भारत की विकास दर 7.6% रहने का अनुमान लगाया गया है, जो जनवरी 2024 में जारी किए गए शुरुआती अनुमान 7.3% से भी ज्यादा है.
भारत में तेजी से बढ़ रहा शहरीकरण
साल 2023 में भारत में रहने वाले करीब एक तिहाई लोग शहरों में रहने लगे हैं. पिछले दस सालों में देखा जाए तो शहरों में रहने वाले लोगों की संख्या में करीब 4% का इजाफा हुआ है. यानी कि अब पहले से ज्यादा लोग गांव छोड़कर शहरों में आकर बसने लगे हैं.
पिछले दस सालों में भारत में शहरीकरण में करीब 4% की बढ़ोतरी हुई है. इसका मतलब है कि अब ज्यादा से ज्यादा लोग खेती छोड़कर सेवा क्षेत्र में काम करने लगे हैं. खेती आज भी भारत की अर्थव्यवस्था में बहुत बड़ा रोल अदा करती है और आज भी देश में काम करने वाले लगभग आधे लोग खेती से जुड़े हुए हैं. मगर अब खेती का योगदान भारत की जीडीपी में पहले से कम हो गया है, वहीं दूसरी तरफ सेवा क्षेत्र का महत्व बढ़ गया है.
शहरीकरण और आर्थिक विकास के बावजूद देश में रोजगार की कमी क्यों?
भारत में रोजगार का बड़ा हिस्सा अनौपचारिक क्षेत्र (Informal Sector) में होता है, जिसमें कम वेतन, कम सुरक्षा और कोई सामाजिक सुरक्षा नहीं होती है. आर्थिक विकास के बावजूद अनौपचारिक क्षेत्र में रोजगार का अनुपात कम नहीं हो रहा है. शहरों में बड़ी संख्या में लोग आते हैं लेकिन सभी को रोजगार नहीं मिल पाता है.
कृषि क्षेत्र में रोजगार के अवसरों में लगातार गिरावट हो रही है जिस कारण ग्रामीण आबादी शहरों की ओर पलायन कर रही है. कई लोग बेहतर जीवन की तलाश में गांव से शहरों की ओर पलायन करते हैं. इस तरह शहरों में आबादी का बोझ बढ़ जाता है और रोजगार के अवसरों पर दबाव बढ़ जाता है.
महिलाओं को अक्सर पुरुषों की तुलना में कम रोजगार के अवसर मिलते हैं. उन्हें घरेलू कामों और बच्चों की देखभाल की ज़िम्मेदारी भी निभानी पड़ती है, जिससे उनके लिए पूर्णकालिक काम करना मुश्किल हो जाता है. भारत में औद्योगिकीकरण की गति धीमी रही है, इस कारण भी रोजगार के अवसरों की कमी हुई है. इसके अलावा शहरों में बुनियादी ढांचे की कमी जैसे कि सड़कें, बिजली और पानी भी रोजगार के अवसरों को कम करते हैं.
शहरीकरण और आर्थिक विकास भारत में रोजगार की कमी की समस्या का समाधान नहीं कर पा रहा है. इस समस्या का समाधान करने के लिए शिक्षा, कौशल विकास, बुनियादी ढांचे और औद्योगिकीकरण में निवेश करने की आवश्यकता है.
मनरेगा योजना में भी कई कमियां
देश में गांवों में रहने वाले गरीब लोगों के लिए मनरेगा योजना चलाई जा रही है. इस योजना के तहत लोगों को काम दिया जाता है, इससे उन्हें रोजगार मिलता है. लेकिन इस योजना में भी कई कमियां हैं.
जैसे कि कानून में लिखा है कि अगर किसी को 15 दिन के अंदर काम नहीं मिलता है तो उसे बेरोजगारी भत्ता दिया जाएगा लेकिन ऐसा बहुत कम ही होता है. इसके अलावा मजदूरी के पैसे भी देर से मिलते हैं. सबसे बड़ी बात ये कि ज्यादातर लोगों को साल में 100 दिन से भी कम दिन काम मिल पाता है जबकि कानून में 100 दिन का प्रावधान है.
गांव में तो मनरेगा योजना के तहत लोगों को रोजगार दिया जाता है लेकिन शहरों में ऐसी कोई बड़ी योजना नहीं है. कुछ राज्यों में छोटे स्तर पर ऐसी योजनाएं चल रही हैं, जबकि देशभर में एक बड़ी योजना की जरूरत है. इस बारे में एक प्रस्ताव भी आया है जिसका नाम है ‘विकेंद्रित शहरी रोजगार और प्रशिक्षण’ यानी DUET योजना. इस योजना के तहत शहरों में पानी की सप्लाई, सफाई और दूसरे काम कराए जा सकते हैं.
रोजगार पाने के लायक कैसे बनें: यही भी एक चुनौती
बेरोजगारी की समस्या असल में काफी हद तक इस बात से भी जुड़ी है कि क्या लोग मौजूदा रोजगार के लिए काबिल हैं या नहीं. भारत में स्किल डेवलपमेंट और ट्रेनिंग पर इतना ध्यान नहीं दिया जाता, जिस कारण बहुत से लोगों के पास जरूरी हुनर नहीं है जो आज के कामों के लिए चाहिए.
इसलिए अब युद्ध-स्तर पर एक बड़े पैमाने पर वोकेशनल यानी हुनर आधारित पढ़ाई शुरू करने की जरूरत है. साथ ही पढ़ाई के साथ-साथ छात्र-छात्राओं को कंपनियों में इंटर्न के तौर पर काम करने का भी मौका देना होगा. इस तरह के कॉन्सेप्ट पर जर्मनी में बहुत अच्छा काम हुआ है. वहां की कंपनियां स्कूल से पढ़ाई पूरी करने वाले बच्चों को ट्रेनिंग देती हैं और बाद में उन्हें नौकरी पर रख लेती हैं. इससे कंपनियों को भी फायदा होता है और युवाओं को भी रोजगार मिल जाता है. अमेरिका में भी इसी तरह काम होता है.
अफ्रीका के केन्या और कोलंबिया जैसे देशों में भी इस तरह की योजनाएं चलाई जा रही हैं और उनको काफी सफलता मिली है. भारत में भी हमें ऐसी ही योजनाएं शुरू करनी चाहिए. इसके लिए कंपनियों, सरकार, व्यापारियों और समाज सेवी संस्थाओं को मिलकर काम करना होगा.