December 22, 2024

क्या है न्यायसंगत गुजारा भत्ता? सुप्रीम कोर्ट ने तय किए नए पैमाने, पति-पत्नी दोनों के लिए राहत

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What is equitable alimony? Supreme Court sets new standards, relief for both husband and wife

सुप्रीम कोर्ट के नए दिशानिर्देश के अनुसार, गुजारा भत्ता तय करते समय पहले ये देखा जाना चाहिए कि पति-पत्नी दोनों का समाज में क्या स्थान है, उनकी पृष्ठभूमि क्या है, उनके परिवार का क्या रुतबा है.

नई दिल्ली ! यह बेहद दुखद है कि बेंगलुरू में 34 साल के अतुल सुभाष ने अपनी पत्नी के साथ तलाक, गुजारा भत्ता और अन्य मामलों को लेकर चल रहे कानूनी विवाद के चलते अपनी जान दे दी. उन्होंने मरने से पहले अपनी पत्नी पर झूठे मुकदमे दर्ज कराने, पैसे ऐंठने और प्रताड़ित करने के आरोप लगाए.

अतुल सुभाष ने अपने 24 पेज के सुसाइड नोट और 81 मिनट के वीडियो में आरोप लगाया कि वह पत्नी निकिता सिंघानिया को 40 हजार रुपये महीना गुजारा भत्ता के तौर पर दे रहे थे. फिर भी, पत्नी और उसके परिवार वाले सभी केस खत्म करने के लिए 3 करोड़ रुपये की रकम मांग रहे थे. इतना ही नहीं, बच्चे से मिलने के लिए 30 लाख रुपये की डिमांड की जा रही थी.

अतुल सुभाष की आत्महत्या ने यह दिखाया है कि तलाक-गुजारा भत्ता के मामलों में कानूनी प्रक्रिया कितनी मुश्किल और तनावपूर्ण हो सकती है. इस बीच सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक मामले में गुजारा भत्ता को लेकर अहम फैसला सुनाया है.

What is equitable alimony? Supreme Court sets new standards

यह मामला दुबई के एक बैंकर, उनकी पत्नी और बच्चे के बीच कानूनी विवाद से जुड़ा था. इस मामले में कोर्ट ने गुजारा भत्ता तय करते समय 8 बातों का ध्यान रखने के लिए कहा है. अब भारत की अदालतें गुजारा भत्ता के मामलों में इसी फैसले को आधार मानकर काम करेंगी.

पहले जानिए क्या है पूरा विवाद

यह मामला दुबई के एक बैंक के सीईओ का है जिनकी साल 1998 में शादी हुई और 2004 में उनका पत्नी से विवाद हो गया. इसके बाद शुरू हुई कानूनी लड़ाई, जिसमें 20 साल तक यह बैंकर पारिवारिक अदालत से लेकर हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तक घूमता रहा.

2004 में बैंकर ने क्रूरता के आधार पर पत्नी से तलाक की अर्जी दायर की. इसके बाद पत्नी ने भी गुजारा भत्ता पाने के लिए हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 24 के तहत याचिका दायर कर दी. यह केस 20 साल से अदालतों में घूम रहा है. परिवारिक अदालत से शुरू हुआ ये मामला पहले हाईकोर्ट में पहुंचा और फिर सुप्रीम कोर्ट. मुख्य सवाल यही है कि पत्नी को कितना गुजारा भत्ता मिलना चाहिए.

फिर सुप्रीम कोर्ट कैसे पहुंचा मामला?

2015 में बैंकर ने सभी अदालती फैसलों का पालन करते हुए खुद से गुजारा भत्ता बढ़ा दिया. हालांकि, जब उनकी पत्नी ने और भी ज्यादा गुजारा भत्ता मांगना शुरू किया, तो उन्होंने विरोध किया. पति को यह मंजूर नहीं था कि यह रकम बार-बार बढ़ती रहे, खासकर जब उसकी अपनी भी आर्थिक स्थिति ठीक न हो और उसे अपने बच्चों की जिम्मेदारी भी निभानी हो.

बैंकर के वकीलों के अनुसार, हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 26 एक वयस्क बच्चे को गुजारा भत्ता देने की अनुमति नहीं देती है. मगर, पत्नी ने हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 26 को चुनौती दी और अदालत से अपने और अपने वयस्क बेटे को स्थायी गुजारा भत्ता देने का समाधान मांगा. पत्नी का कहना था कि इस कानून के हिसाब से बच्चों के बड़े होने पर ज्यादा पैसे मिलने चाहिए. उनके बेटा हाल ही में ग्रेजुएट हुआ है और अभी भी उन पर निर्भर है, इसलिए और उन्हें भी ज्यादा पैसे चाहिए.

बैंकर को इस बात पर सबसे ज्यादा एतराज था कि उसकी पत्नी हिन्दू मैरिज एक्ट के सेक्शन 26 का गलत इस्तेमाल करके ज्यादा पैसे मांग रही है. हालांकि वो पहले के फैसलों को मानता रहा था और गुजारा भत्ता बढ़ाने को भी तैयार था.

यह पारिवारिक विवाद जब कानून का सवाल बन गया, तो माननीय सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई की. जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस प्रसन्ना बी वराले ने केस के सभी तथ्यों को ध्यान से समझा. उन्होंने मौजूदा कानून को भी ध्यान में रखा. सुप्रीम कोर्ट ने रजनेश बनाम नेहा (2021) और उसके बाद के फैसलों में दिए गए सिद्धांतों को दोहराया है. फिर कोर्ट ने कुछ बातें बताईं जिनके आधार पर यह तय किया जा सकता है कि गुजारा भत्ता देना जरूरी है या नहीं और अगर जरूरी है तो कितना.

  1. पति-पत्नी की आर्थिक और सामाजिक स्थिति

सुप्रीम कोर्ट के नए दिशानिर्देश के अनुसार, गुजारा भत्ता तय करते समय पहले ये देखा जाना चाहिए कि पति-पत्नी दोनों का समाज में क्या स्थान है, उनकी पृष्ठभूमि क्या है, उनके परिवार का क्या रुतबा है, ये सारी बातें शामिल हैं. कई बार सामाजिक प्रतिष्ठा के कारण भी गुजारा भत्ता की राशि प्रभावित हो सकती है. साथ ही दोनों कितना कमाते हैं और उनकी कितनी संपत्ति है.

अगर पति आर्थिक रूप से मजबूत होता है, तो उसे ज्यादा गुजारा भत्ता देने के लिए कहा जा सकता है. अगर पति-पत्नी दोनों कामकाजी हैं और उनकी आय लगभग बराबर है, तो गुजारा भत्ता की राशि कम हो सकती है या फिर शायद किसी को गुजारा भत्ता देने की जरूरत ही नहीं पड़े. लेकिन यह ध्यान रखना जरूरी है कि यह सिर्फ एक कारक है. गुजारा भत्ता तय करते समय अदालत बाकी 7 कारकों पर भी विचार करेगी.

  1. शादी के दौरान पति-पत्नी का जीवन स्तर कैसा था

सुप्रीम कोर्ट ने गुजारा भत्ता तय करते समय पति-पत्नी के जीवन स्तर को भी एक अहम कारक बताया है. गुजारा भत्ता तय करते समय अदालत यह भी देखेगी कि पति-पत्नी का समाज में क्या रुतबा है और वे कैसा जीवन जीते थे. उनके पास कितने मकान और गाड़ियां हैं, उनकी कीमत क्या है? उनका घर कितना बड़ा है, उसमें कितने एसी और स्विमिंग पूल जैसी सुविधाएं हैं? उनके घर में कितने नौकर-चाकर काम करते हैं? वे कितनी बार छुट्टियां मनाने जाते थे, भारत में या विदेश में?

अगर पति-पत्नी अमीर थे और ऐशो-आराम की जिंदगी जीते थे, तो पत्नी को ज्यादा गुजारा भत्ता मिल सकता है ताकि वो भी वैसी ही जिंदगी जी सके. अदालत यह भी देखेगी कि पत्नी की उम्र क्या है, उसने कितनी पढ़ाई की है और क्या वो खुद कमा सकती है. अगर वह बेरोजगार है, तो उसे ज्यादा गुजारा भत्ता मिल सकता है.

  1. पत्नी और बच्चों की जरूरतों का रखा जाए ख्याल, लेकिन मांगें वाजिब होनी चाहिए

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि गुजारा भत्ता तय करते समय पत्नी और बच्चों की जरूरतों का ध्यान रखना जरूरी है. पत्नी को शादी के दौरान जैसा जीवन जी रही थी, वैसा ही जीवन जीने का हक है, लेकिन उसकी मांगें वाजिब होनी चाहिए. पत्नी और बच्चों की बुनियादी जरूरतें पूरी होनी चाहिए, इसमें कोई शक नहीं है. लेकिन अदालत यह भी देखेगी कि पत्नी की मांगें हद से ज्यादा तो नहीं हैं.

अगर पति के पास तीन गाड़ियां हैं तो पत्नी यह नहीं कह सकती कि उसे भी तीन गाड़ियां चाहिए. उसे पति के जैसा जीवन जीने का हक है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि उसके पास भी बिल्कुल वैसी ही चीजें हों.

  1. गुजारा भत्ता: पति-पत्नी की शिक्षा और नौकरी भी अहम

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि गुजारा भत्ता तय करते समय पति और पत्नी दोनों की शिक्षा और नौकरी को भी ध्यान में रखा जाएगा. रजनेश बनाम नेहा केस में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर शादी लंबे समय तक चली है और पत्नी ने परिवार की देखभाल के लिए अपनी नौकरी छोड़ दी थी, तो यह बात गुजारा भत्ता तय करते समय महत्वपूर्ण होगी.

आज के समय में अगर पत्नी लंबे समय तक नौकरी से दूर रही है, तो उसे दोबारा नौकरी पाने के लिए नई स्किल्स सीखने की जरूरत पड़ सकती है. उम्र बढ़ने के साथ नौकरी पाना भी मुश्किल हो सकता है. यह सारी बातें गुजारा भत्ता तय करते समय ध्यान में रखी जाएंगी.

  1. परिवार के लिए नौकरी छोड़ी तो मिलेगा मुआवजा?

सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा है कि अगर पत्नी ने शादी के बाद परिवार की खातिर अपनी नौकरी या करियर में कोई त्याग किया है तो यह बात गुजारा भत्ता तय करते समय ध्यान में रखी जाएगी. अगर पत्नी अच्छी पढ़ी लिखी है और अच्छी कमाई कर रही है तो अदालत गुजारा भत्ता तय करते समय उसकी कमाई को भी ध्यान में रखेगी. लेकिन अगर पत्नी पढ़ी लिखी है और नौकरी नहीं कर रही है या पति और उसके परिवार की वजह से उसे नौकरी छोड़नी पड़ी, तो अदालत उसके नुकसान का भी हिसाब लगाएगी और उसे ज्यादा गुजारा भत्ता दे सकती है.

कई बार ऐसा होता है कि पत्नी शादी के बाद परिवार की देखभाल के लिए अपनी नौकरी छोड़ देती है. ऐसे में अगर तलाक होता है, तो उसके लिए दोबारा नौकरी पाना मुश्किल हो सकता है. इसलिए अदालत यह सुनिश्चित करती है कि पत्नी को आर्थिक नुकसान न हो.

  1. पत्नी की कमाई और संपत्ति का भी होगा हिसाब

गुजारा भत्ता तय करते समय पति ही नहीं, बल्कि पत्नी की कमाई और संपत्ति का भी हिसाब-किताब होगा. अगर पत्नी के पास अपनी या परिवार से मिली कोई संपत्ति है, तो अदालत उस पर भी गौर करेगी. अगर पत्नी को परिवार की संपत्ति से कुछ आय होती है या उसे अपने परिवार से कुछ संपत्ति मिलने वाली है, तो यह भी गुजारा भत्ता तय करते समय ध्यान में रखा जाएगा.

सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया है कि अगर पत्नी के पास कोई कमाई नहीं है, तो भी उसे गुजारा भत्ता मिल सकता है, चाहे उसकी शिक्षा या नौकरी करने की क्षमता कुछ भी हो. पत्नी के परिवार की आर्थिक स्थिति मायने नहीं रखती.

  1. गुजारा भत्ता का केस लड़ने का खर्च भी देगा पति?

अगर पत्नी नौकरी नहीं करती है तो क्या उसे केस लड़ने के लिए पैसे मिलेंगे? सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि गुजारा भत्ता तय करते समय पत्नी के कानूनी खर्च को भी ध्यान में रखा जाएगा. अदालतें तलाक के मामलों में पत्नी को केस लड़ने के लिए कुछ पैसे देती हैं लेकिन पत्नी पूरे खर्च का दावा भी कर सकती है. यह पैसा आमतौर पर केस खत्म होने के बाद मिलता है, जब पत्नी यह साबित कर देती है कि उसने कितना खर्च किया है. या फिर शुरुआत में ही अदालत पत्नी को केस लड़ने के लिए कुछ पैसे देने का ऑर्डर कर सकती है.

  1. पति की कमाई, कर्ज और जिम्मेदारियां भी होंगी जांच

सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया है कि गुजारा भत्ता तय करते समय पति की कमाई, कर्ज और जिम्मेदारियों को भी ध्यान में रखा जाएगा. अदालत ने कई बार कहा है कि पति का कर्तव्य है कि वह अपनी पत्नी का ख्याल रखे और उसे वैसा ही जीवन स्तर दे जैसा वह शादी के दौरान जीती थी. यह पति की आर्थिक क्षमता पर निर्भर करता है.

पति को अपनी कमाई और कर्ज के बारे में हलफनामा देना होगा. अगर हलफनामे में गलत जानकारी पाई गई, तो उसे सजा हो सकती है. अगर पति 100 रुपये कमाता है, तो इसका मतलब यह नहीं है कि पत्नी को पूरे 100 रुपये गुजारा भत्ता के तौर पर मिलेंगे. अदालत पति के सभी खर्चों जैसे माता-पिता का खर्च, EMI आदि को भी ध्यान में रखेगी.

हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा है कि हर केस अलग होता है. इसलिए सिर्फ इन 8 बातों के आधार पर ही फैसला नहीं होगा. अदालत केस के हालात और तथ्यों को देखते हुए गुजारा भत्ता तय करेगी. यह जरूरी है कि गुजारा भत्ता का फैसला न्यायसंगत हो और दोनों पक्षों की जरूरतों का ध्यान रखे.

बैंकर वाले मामले में सुप्रीम कोर्ट ने क्या दिया फैसला

बैंकर वाले मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सभी तथ्यों और परिस्थितियों को देखते हुए पत्नी और बेटे को एकमुश्त रकम देने का फैसला किया. पत्नी को 5 करोड़ रुपये मिलेंगे ताकि वह शादी के दौरान जैसा जीवन जी रही थी, वैसा ही जीवन आगे भी जी सके. कोर्ट ने यह भी कहा कि यह रकम न्यायसंगत और वाजिब है. यह रकम उसे तलाक के बाद होने वाले सभी दावों के निपटारे के लिए दी जा रही है.

कोर्ट ने यह माना कि पत्नी एक गृहिणी है और इतने सालों से काम नहीं कर रही है. बेटा उसके साथ रहता है, जिसने अब बीटेक कर लिया है और वे पत्नी की मां के घर में रहते हैं. सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में कहा है कि पिता का यह फर्जॉ है कि वह अपने बच्चों की देखभाल करे, खासकर जब उसके पास ऐसा करने की क्षमता हो. कोर्ट ने बेटे के लिए 1 करोड़ रुपये का भुगतान करने का आदेश दिया है. यह रकम उसकी आगे की पढ़ाई और आर्थिक सुरक्षा के लिए होगी, जब तक वह खुद कमाने न लगे.

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