अटल प्रगति पथ फिर अधर में: नाम बदला, सर्वे बदला, लेकिन काम अब भी ठप

Atal Pragati Path once again in limbo: Name changed, survey changed, but work still stalled
मुरैना। चंबल अंचल के मुरैना, भिंड और श्योपुर जिलों को उत्तर प्रदेश और राजस्थान से जोड़ने वाला अटल प्रगति पथ (पूर्व में चंबल एक्सप्रेस-वे) अब तक सरकारी असमंजस में उलझा हुआ है। 2018 से लेकर 2025 तक इस महत्वाकांक्षी परियोजना का न तो कोई ठोस स्वरूप तय हो पाया है और न ही निर्माण का काम धरातल पर उतरा है। अब तक इस परियोजना का पाँच बार नाम और तीन बार अलाइनमेंट बदला जा चुका है।
सर्वे भी बदला, समाधान नहीं मिला
मार्च 2023 तक तीसरे चरण का भूमि अधिग्रहण सर्वे लगभग पूरा हो चुका था, लेकिन किसानों के विरोध के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग में मौखिक रूप से सर्वे रद्द करने के निर्देश दे दिए। चौंकाने वाली बात यह है कि आज तक उस सर्वे को लिखित रूप से रद्द नहीं किया गया, जिससे कई कानूनी और प्रशासनिक अड़चनें सामने आ रही हैं।
नया सर्वे भी अधर में
चौथे सर्वे के आदेश 2022 के अंत में दिए गए थे, लेकिन वह कभी शुरू ही नहीं हो पाया। 03 जुलाई 2024 को मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने अपने पहले बजट में इस परियोजना की नए सिरे से घोषणा की थी और इसे 299 किलोमीटर लंबा प्रस्तावित किया गया। जबकि पूर्व प्रस्तावित लंबाई 404 किलोमीटर थी।
किसानों की ज़मीन अधर में
मार्च 2023 के रिकार्ड के अनुसार, 214 गांवों के 26448 किसानों की लगभग 1965 हेक्टेयर भूमि इस प्रोजेक्ट के लिए चिह्नित की गई थी। लेकिन सर्वे के निरस्त होने और लिखित आदेश न आने के चलते किसान न तो ज़मीन का नामांतरण करा पा रहे हैं और न ही बिक्री-रजिस्ट्री हो पा रही है।
घड़ियाल सेंक्चुरी बनी बड़ी बाधा
एक्सप्रेस-वे का पहला अलाइनमेंट चंबल घड़ियाल सेंक्चुरी से होकर गुजरता था, जिस कारण वन विभाग और पर्यावरण मंत्रालय ने आपत्ति जताई। दूसरा और तीसरा अलाइनमेंट भी बीहड़ों और निजी खेतों से होकर गुजरता था, जिसे लेकर भारी विरोध हुआ। चौथा सर्वे अब तक शुरू ही नहीं हो पाया है।
प्रशासन ने दी स्थिति स्पष्टता
“मार्च 2023 में शासन से निर्देश मिलने के बाद से कोई नई दिशा नहीं आई है। परियोजना की स्थिति पूर्ववत है। जैसे ही आदेश मिलेगा, आगे की कार्रवाई की जाएगी।”
— सीबी प्रसाद, अपर कलेक्टर, मुरैना
अटल प्रगति पथ, जिसे कभी चंबल एक्सप्रेस-वे के नाम से शुरू किया गया था, अब तक सिर्फ कागजों और घोषणाओं का प्रोजेक्ट बनकर रह गया है। ज़मीन अधिग्रहण, पर्यावरणीय मंज़ूरी और प्रशासनिक अस्पष्टता इसकी सबसे बड़ी बाधाएँ हैं। यदि मोहन सरकार इसे गंभीरता से नहीं लेती, तो यह प्रोजेक्ट भी एक अधूरी योजना बनकर इतिहास में दर्ज हो जाएगा।