February 3, 2025

Bhopal को 40 साल बाद मिली जहरीले कचरे से बड़ी राहत, कड़ी सुरक्षा में पहुंचा पीथमपुर

0

भोपाल
 राजधानी भोपाल से 40 साल बाद आखिरकार जहरीला कचरा बाहर निकल ही गया। 12 कंटेनर जहरीला कचरा लेकर धार जिले के पीथमपुर के लिए निकलने की खबर है। भारी पुलिस बल की मौजूदगी में यह जहरीला अपशिष्ट कचरा भोपाल से पीथमपुर के लिए रवाना हुआ है। इस कचरे को ग्रीन कॉरिडोर बनाकर भेजा जा रहा है। कंटेनर के साथ एम्बुलेंस, पुलिस और फायर दमकलें चल रही हैं।

337 मीट्रिक टन जहरीला कचरा
भोपाल की यूनियन कार्बाइड (यूका) फैक्ट्री के गोदाम में 337 मीट्रिक टन जहरीला कचरा रखा था। अफसरों के अनुसार कंटेनर उस समय रवाने किए जा रहे हैं जब सड़क पर ज्यादा ट्रैफिक नहीं रहेगा। गौरतलब है कि इस जहरीले कचरे को भोपाल की यूनियन कार्बाइड से पीथमपुर ले जाने की तैयारी रविवार दोपहर से शुरू हुई थी।

12 कंटेनर में लोड किया गया जहर

यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री के इस जहर ने सैकड़ों लोगों की जान ली थी। उस दर्द को लोग आज भी नहीं भुला पाए हैं। प्रशासन के द्वारा लंबे समय के बाद इसे हटाने के लिए आखिरकार काम किया गया है। इसे सावधानी के साथ 12 कंटेनरों में लोड किया गया है।

एक कंटेनर में 30 टन कचरा

जानकारी के अनुसार एक कंटेनर में औसत रूप से 30 टन कचरा भरा गया है। 200 से ज्यादा मजदूरों ने इसे अलग-अलग शिफ्ट में कंटेनर में लोड किया है। इस दौरान भारी पुलिस बल मौके पर मौजूद रहा। वहीं सरकार ने भी प्रक्रिया को पूरा करने में हर प्रकार की सावधानी रखी।

कचरा हटाने के लिए बनाया ग्रीन कॉरिडोर

ग्रीन कॉरिडोर बनाकर पीथमपुर भेजे जा रहे कचरे को रामकी एनवायरो में जलाया जाएगा। मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने इस कचरे को 6 जनवरी तक हटाने के निर्देश दिए थे। अब 3 जनवरी को सरकार को हाईकोर्ट में रिपोर्ट पेश करेगी। भोपाल से पीथमपुर तक करीब 250 किलो मीटर लंबा ग्रीन कॉरिडोर बनाया जा रहा है।

कार्रवाई का पीथमपुर में हुआ विरोध

पीथमपुर में इस कचरा को जलाने के विरोध में 10 से ज्यादा संगठनों ने 3 जनवरी को पीथमपुर बंद का आह्वान किया है। कई संगठनों का कहना है, भोपाल का कचरा अमेरिका भेजा जाए। वहीं पीथमपुर बचाओ समिति 2 जनवरी को दिल्ली के जंतर मंतर पर प्रदर्शन करने की तैयारी में है।

कब और कैसे लीक हुई थी जहरीली गैस

1984 में 2-3 दिसंबर की रात यूनियन कार्बाइड की फैक्ट्री से जहरीली गैस मिथाइल आइसोसाइनेट लीक हुई थी, जिससे 5 हजार से अधिक लोगों की मौत हो गई थी और 5 लाख से अधिक लोग इसकी जद में आ गए थे. यूनियन कार्बाइड की फैक्ट्री से निकली गैस 40 किलोमीटर दूर तक में फैल गई थी. शहर की एक चौथाई आबादी गैस चेंबर में तब्दील हो गई थी. सबसे अधिक बच्चों पर गैस का प्रभाव पड़ा था. जिस रात यह घटना घटी थी. उसके कई दिनों बाद तक भोपाल से लोगों का पलायन चलता रहा. हजारों लोग सैकड़ों किसोमीटर दूर चले गए. यहां से जाने के बाद बड़ी संख्या में लोग अस्पतालों में भर्ती हुए थे. इस उन्माद के बीच साहस और हौसले की भी कमी नहीं थी. बड़ी संख्या में लोगों ने प्रभावित लोगों को निकालने के लिए अपनी जान जोखिम में डाल दी थी.
हिरोशिमा और नागासाकी के बाद मौत का विकराल रूप

भोपाल गैस त्रासदी जापान के हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु बम गिराए जाने के बाद मृत्यु का तीसरा सबसे वीभत्स और घृणित रूप थी. हालात ऐसे बने थे कि श्मशान में लाशें जलाने की जगह नहीं बची थी. एक चीता पर 10 से 15 शवों का अंतिम संस्कार किया जा रहा था. मुस्लिम कब्रिस्तान में भी शवों को दफनाने की जगह नहीं बची थी. स्थिति ऐसी बनी थी कि पुरानी कब्रों को खोद कर शवों को दफनाया गया था. भोपाल में मौत का तांडव कई दिनों तक चलता रहा. गैस रिसाव के 30 घंटे बाद भी फैक्ट्री में लाशों का अंबार लगा हुआ था. तीन दिनों तक जानवरों के शव सड़कों और घरों में बिखरे पड़े हुए थे. इससे महामारी फैलने की आशंका बढ़ती जा रही थी. बड़ी संख्या में यहां से लोग पलायन कर रहे थे. तो प्रशासन अन्य शहरों से सफाई कर्मचारियों को बुलाकर अभियान में लगाया था. गैस का दुष्प्रभाव ना सिर्फ सन 1984 में था बल्कि आज भी लोग विकलांगता और गंभीर बीमारियों की जद में जीने को मजबूर हैं.
कई पीढ़ियों ने झेला त्रासदी का दंश

भोपाल गैस त्रासदी की जद में आने वाले या फिर उस घटना में बचे लोगों का जीवन सामान्य नहीं रहा. लोगों को कई सालों तक इस त्रासदी का दंश झेलना पड़ा. त्रासदी प्रभावित लोगों की जीवन अवधि कम होती चली गई. साथ ही कई लोग विकलांग, नपुंसक और गंभीर बीमारियों का शिकार होते चले गए. इस त्रासदी के शिकार हुए 21 वर्ष या उससे अधिक उम्र के लोगों को बहुत कष्ट उठाना पड़ा. हाल ही में हुए एक रिसर्च में पता चला कि गैस पीड़ित समूह के पुरुषों और 21 वर्ष से ऊर के व्यक्तियों की मृत्य बहुत जल्द हो गई. इस अध्ययने में पाया गया कि करीब 30 वर्षों में 6 हजार से अधिक लोगों की मौत हुई.
खून में घुल गई जहरीली गैसें

त्रासदी के करीब ढाई दशक बाद आईसीएमआर की एक रिपोर्ट सामने आई. इसमें पाया गया कि यहां के लोगों के खून में जहरीली गैसें घुल गई थी. जिससे लोगों में और आने वाली पीढ़ियों में इसका बुरा असर दिखा. आज भी जो बच्चे पैदा होते हैं उनमें सांसों की समस्या, विकलांगता और गंभीर बीमारियां देखी जाती हैं. हालांकि, अब राहत की बात है कि जहरीले कचरे को नष्ट करने की तैयारी शुरू हो गई है. उम्मीद जताई जा रही है कि अब यहां के लोग स्वस्थ और सेहतमंद होंगे और आने वाली पीढ़ियां भी हेल्दी पैदा होंगी.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

न्यूज़

slot server thailand super gacor

spaceman slot gacor

slot gacor 777

slot gacor

Nexus Slot Engine

bonus new member

olympus

situs slot bet 200

slot gacor

slot qris

link alternatif ceriabet

slot kamboja

slot 10 ribu

https://mediatamanews.com/

slot88 resmi

slot777

https://sandcastlefunco.com/

slot bet 100

situs judi bola

slot depo 10k

slot88

slot 777

spaceman slot pragmatic

slot bonus

slot gacor deposit pulsa

rtp slot pragmatic tertinggi hari ini

slot mahjong gacor