नौकरशाही में सुलेमान पर चर्चा : क्या वीआरएस या ‘वी फोर्स्ड रिटायरमेंट’?

Debate on Suleman in bureaucracy
Debate on Suleman in bureaucracy: Is it VRS or ‘We are Forced Retirement’?
भोपाल। मध्यप्रदेश की नौकरशाही में इन दिनों सुगबुगाहट तेज है। आईएएस मोहम्मद सुलेमान ने अपने सेवा जीवन के आखिरी मोड़ पर ऐसा मोड़ लिया कि सरकारी गलियारों में कानाफूसी शुरू हो गई। सुलेमान, जिन्हें नौकरशाही के ‘चाणक्य’ का दर्जा प्राप्त था, ने अपनी सेवानिवृत्ति से महज पांच माह पहले ही वीआरएस ले लिया। अब सवाल यह उठता है कि आखिरकार ऐसा क्या हुआ कि एक ‘पावरफुल’ अधिकारी को समय से पहले ही ‘विश्राम’ लेना पड़ा?
कहने को तो इसे स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति कहा जा रहा है, लेकिन सरकार के गलियारों में इसे ‘स्वैच्छिक से अधिक विवश सेवानिवृत्ति’ कहा जा रहा है। शिवराज सरकार में सुलेमान का दबदबा ऐसा था कि विभागों के सचिव भी उनके आगे ब्रीफकेस उठाने को तैयार रहते थे। 15 साल तक सत्ता के गलियारों में उनकी गूंज थी, लेकिन जैसे ही सत्ता बदली, उनकी गूंज कम और उनके ट्रांसफर ज्यादा होने लगे। पहले उन्हें अपर मुख्य सचिव स्वास्थ्य से हटाकर कृषि विभाग भेजा गया, फिर कर्मचारी चयन मंडल की कुर्सी थमा दी गई। यह संकेत काफी था कि ‘अब आपको अपना भविष्य खुद देखना होगा’।
मुख्य सचिव की कुर्सी से दूरी बनी ‘दूरी’ का कारण?
मोहम्मद सुलेमान की नजर प्रदेश के मुख्य सचिव की कुर्सी पर थी, लेकिन किस्मत ने कुछ और ही तय कर रखा था। उनके बैचमेट अनुराग जैन को मुख्य सचिव बना दिया गया और सुलेमान को किनारे कर दिया गया। बस, यहीं से शुरू हुआ सुलेमान का ‘प्लान बी’। सूत्रों के मुताबिक, मुख्य सचिव की रेस में पिछड़ने के बाद उन्होंने ही सोचा कि अब सरकारी सेवा में समय बर्बाद करने से अच्छा है कि कुछ नया किया जाए।
अब नौकरशाही से ‘फ्री’, लेकिन जिंदगी में ‘बिजी’!
सुलेमान ने वीआरएस के बाद की योजना भी बना रखी है। वे दिल्ली स्थित ‘द एनर्जी एंड रिसोर्स इंस्टीट्यूट’ से पीएचडी करने जा रहे हैं। अब सवाल यह उठता है कि इतने वर्षों तक सरकारी फाइलों में मग्न रहने के बाद अचानक ‘अकादमिक’ दुनिया में जाने का ख्याल क्यों आया? दरअसल, यह भी ‘ट्रांजिशन प्लान’ का हिस्सा हो सकता है। जैसे ही सरकारी कूलिंग-ऑफ पीरियड खत्म होगा, सुलेमान किसी बहुराष्ट्रीय कंपनी में मोटे पैकेज पर नज़र आ सकते हैं।
‘पावर’ में थे, पर ‘पावर’ चला गया!
शिवराज सरकार में सुलेमान की पावर का आलम यह था कि बड़े-बड़े मंत्री भी उनकी ‘कृपा’ के लिए लाइन लगाए खड़े रहते थे। लेकिन सत्ता परिवर्तन होते ही उनकी यह ‘कृपा’ कम होने लगी। मोहन यादव सरकार के आते ही उनका मंत्रालय से बाहर होना यह साफ संकेत था कि अब वे ‘विशेषाधिकारी’ नहीं, बल्कि ‘सामान्य अधिकारी’ रह गए हैं। शायद यही बात उन्हें सबसे ज्यादा चुभ गई और उन्होंने फाइलों के ढेर से निकलकर ‘स्वतंत्रता’ का रास्ता चुना।
वीआरएस: एक ट्रेंड या मजबूरी?
मध्यप्रदेश की नौकरशाही में यह पहला मामला नहीं है, जब किसी वरिष्ठ अधिकारी ने समय से पहले वीआरएस लिया हो। पहले भी कई बड़े अधिकारी जब ‘दरबार’ से दूर कर दिए गए, तो उन्होंने समय से पहले ही ‘दरवाजे’ से बाहर निकलना बेहतर समझा। मोहम्मद सुलेमान का मामला भी कुछ ऐसा ही है।अब देखना यह होगा कि सुलेमान की यह ‘नई पारी’ कितनी लंबी चलती है और वे किस बहुराष्ट्रीय कंपनी में अपनी सेवाएं देते हैं। फिलहाल, नौकरशाही में यह चर्चा जोरों पर है कि ‘जो कल तक सरकार के ‘रणनीतिकार’ थे, आज वे नई रणनीति बनाने में जुट गए हैं!’