मुफ्त रेवड़ी कल्चर पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई आज: क्या 2024 लोकसभा चुनाव पर पड़ेगा असर?
Hearing in Supreme Court today on free revadi culture: Will it affect the 2024 Lok Sabha elections?
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चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पीठ ने एक दिन पहले बुधवार को कहा था कि मुफ्त घोषणाओं का यह मामला बेहद महत्वपूर्ण है। हम इसे कल (गुरुवार) बोर्ड पर रखेंगे।
सुप्रीम कोर्ट गुरुवार, 21 मार्च को राजनीतिक दलों द्वारा चुनावों के दौरान ‘मुफ्त’ रेवड़ियां देने की प्रथा के खिलाफ एक जनहित याचिका पर सुनवाई करेगा। यह एक अहम सुनवाई है, क्योंकि 19 अप्रैल से लोकसभा चुनाव शुरू हो रहे हैं। राजनीतिक दलों के घोषणा पत्र भी सामने आने लगे हैं, जिनमें तमाम दावे किए जा रहे हैं।
चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पीठ ने एक दिन पहले बुधवार को कहा था कि मुफ्त घोषणाओं का यह मामला बेहद महत्वपूर्ण है। हम इसे कल (गुरुवार) बोर्ड पर रखेंगे। पीठ में जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा भी शामिल हैं।
लोकलुभावन घोषणाओं पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया जाए
याचिका में कहा गया है कि मतदाताओं से अनुचित राजनीतिक लाभ हासिल करने के लिए लोकलुभावन घोषणाओं पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए, क्योंकि वे संविधान का उल्लंघन करते हैं। चुनाव आयोग को भी उचित उपाय करने चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने वकील और पीआईएल याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय की ओर से पेश वरिष्ठ वकील विजय हंसारिया की दलीलों पर ध्यान दिया कि याचिका पर लोकसभा चुनाव से पहले सुनवाई की जरूरत है।
अन्य महत्वपूर्ण बातें
- जनहित याचिका में शीर्ष अदालत से यह घोषित करने का आग्रह किया गया कि चुनाव से पहले सार्वजनिक धन से अतार्किक मुफ्त सुविधाओं का वादा मतदाताओं को अनुचित रूप से प्रभावित करता है। इससे लोगों को एक समान अवसर नहीं मिलता और चुनाव प्रक्रिया की शुद्धता भी खराब होती है।
- याचिकाकर्ता का कहना है कि चुनावों से पहले मुफ्त सुविधाएं देकर मतदाताओं को प्रभावित करने की प्रवृत्ति बढ़ गई है। इससे न केवल लोकतांत्रिक मूल्यों के अस्तित्व पर सबसे बड़ा मंडरा रहा है, बल्कि संविधान की भावना को भी चोट पहुंचाती है।
- यह अनैतिक आचरण सत्ता में बने रहने के लिए सरकारी खजाने की कीमत पर मतदाताओं को रिश्वत देने जैसा है और लोकतांत्रिक सिद्धांतों और प्रथाओं को बनाए रखने के लिए इससे बचा जाना चाहिए।
- याचिका में चुनाव आयोग को चुनाव चिह्न (आरक्षण और आवंटन) आदेश 1968 के प्रासंगिक पैराग्राफ में एक अतिरिक्त शर्त जोड़ने का निर्देश देने की भी मांग की गई है। जब किसी पार्टी को मान्यता मिले तो शर्त रखी जाए कि वह मुफ्त कुछ भी देने का वादा नहीं करेगा।
याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट से यह घोषित करने का आग्रह किया है कि चुनाव से पहले निजी वस्तुओं या सेवाओं का वादा या वितरण, जो सार्वजनिक धन से सार्वजनिक उद्देश्यों के लिए नहीं हैं, संविधान के अनुच्छेद 14 सहित कई अनुच्छेदों का उल्लंघन है।