June 30, 2025

भारत के पास प्राचीन ज्ञान है, उसके साइंटिफिक वेलिडेशन की है जरूरत : डॉ. मनोज कुमार पटेरिया

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भोपाल
शोध एवं अनुसंधान पर आधारित दो दिवसीय कार्यक्रम “शोध शिखर विज्ञान पर्व 2025” का रबीन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय (आरएनटीयू) परिसर में समापन सत्र का आयोजन किया गया। इसमें बतौर मुख्य अतिथि मप्र निजी विश्वविद्यालय विनियामक आयोग के अध्यक्ष प्रो. भरत शरण सिंह एवं विशिष्ट अतिथि के रूप में डॉ. मनोज कुमार पटेरिया, पूर्व अध्यक्ष, CSIR–NIScPR एवं डॉ. नम्रता पाठक, वैज्ञानिक-जी, एनजीपी और एसएमपी, विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय (DST) उपस्थित रहे। अन्य अतिथियों में स्कोप ग्लोबल स्किल्स यूनिवर्सिटी के कुलाधिपति डॉ. सिद्धार्थ चतुर्वेदी, आरएनटीयू की प्रो. चांसलर डॉ. अदिति चतुर्वेदी वत्स, कुलगुरू आरपी दुबे और सीवीआरयू खंडवा के कुलगुरू डॉ. अरूण जोशी उपस्थित रहे।

इस दौरान अपने वक्तव्य में प्रो. भरत शरण ने शोधार्थियों से भारत को 2047 तक विकसित बनाने के लिए कार्य करने की बात कही। उन्होंने प्राचीन समय के कई उद्धरण देते हुए भारत की प्राचीन उपलब्धियों से अवगत कराया जिसमें 1750 के समय में भारत दुनिया का जीडीपी का 25 प्रतिशत सम्भालता था, स्थापत्य कला में उत्कृष्टता हडप्पा से लेकर हम्पी तक देखी जा सकती है। इसी प्रकार गणित शास्त्र, विद्युत शास्त्र, धातु विज्ञान और खगोल विज्ञान की कई अवधारणाओं का भी जिक्र किया। आगे उन्होंने शोधार्थियों से बात करते हुए कहा कि रिसर्च के लिए महंगे उपकरणों की आवश्यकता नहीं होती, बल्कि शोधार्थी कि सिर्फ खोजी दृष्टि बनाए रखने की जरूरत होती है।

डॉ. मनोज कुमार पटेरिया ने अपने अपने वक्तव्य में आरएनटीयू द्वारा स्थापित किए टेक्नोलॉजी ट्रांस्फर सेंटर की सराहना की और कहा कि रिसर्च को इंडस्ट्री रेडी बनाने के लिए इन सेंटर्स का महत्वपूर्ण कार्य करते हैं। इसके अलावा उन्होंने शोधार्थियों को कहा कि भारत के पास बहुत सारा प्राचीन ज्ञान है परंतु साइंटिफिक वेलिडेशन की कमी के कारण दुनिया उसकी ओर देख नहीं पाती है। ऐसे में इस पहलू पर कार्य किए जाने की आवश्यकता को रेखांकित किया।

इससे पहले डॉ. सिद्धार्थ चतुर्वेदी ने अपने वक्तव्य में कहा कि भारत आज रिसर्च में 40वें स्थान पर है और हमारा रिसर्च पर निवेश भी विकसित राष्ट्रों के मुकाबले काफी कम है। ऐसे में एक विकसित राष्ट्र बनने के लिए लम्बी दूरी तक करना बाकी है जिसके लिए हमें गति की आवश्यकता है। गति के लिए जो तकनीक हमें चाहिए उसके लिए शोध शिखर जैसे कार्यक्रम महत्वपूर्ण हैं।

वहीं, डॉ. अदिति चतुर्वेदी वत्स ने अपने वक्तव्य में दो दिन तक चले शोध शिखर विज्ञान पर्व की जानकारी साझा करते हुए बताया कि इसमें 7 समानांतर सत्रों में 1500 से अधिक प्रतिभागी, 100 से अधिक वक्ताओं, 176 संस्थाओं, 75 से अधिक प्रोजेक्ट्स, 300 से अधिक शोध पत्रों की प्रतिभागिता रही। इसके अलावा 25 से अधिक शोध एवं उत्पादों के कॉमर्शियालाइजेशन पर विस्तृत चर्चा की गई।

इस दौरान कार्यक्रम मे इंजीनियरिंग एवं टेक्नोलॉजी; मेडिकल साइंस, साइंस एंड एग्रीकल्चर; एजुकेशन एंड लॉ; मैनेजमेंट कॉमर्स एंड ह्यूमेनिटीज कैटेगरी में प्रतिभागियों को पुरस्कृत किया गया। इसके अलावा साइंस कम्यूनिकेशन में प्रथम एवं द्वितीय विनर्स को भी सम्मानित किया गया।

नवागत विषयों पर विज्ञान लेखकों ने की चर्चा
कथा सभागार में हिन्दी में विज्ञान संचार के नये विषयों का चयन: प्रस्तावना और विचार भाग 1 का आयोजन किया गया। इस सत्र में प्रमुख वक्ताओं ने अपने वक्तव्य दिये। सभी अतिथियों का स्वागत मोमेंटो और उत्तरी प्रदान कर किया गया। इस सत्र की अध्यक्षता आरएनटीयू के कुलाधिपति श्री संतोष चौबे द्वारा की गई। उन्होंने सत्र का संचालन करते हुए अपना महत्वपूर्ण मार्गदर्शन प्रदान किया। इसके बाद वक्ताओं में वैज्ञानिक कृष्णानंद पांडेय ने स्वास्थ्य और संचार की आवश्यकता, भारत में प्रमुख रोगों की स्थिति, पोषण जैसे विषयों को रेखांकित करने और उन पर पुस्तक लेखन की आवश्यकता पर जोर दिया। गोरखपुर विवि से पधारे डॉ. शरद मिश्रा ने कहा कि आज के दौर में विज्ञान और अध्यात्म, धर्मग्रंथों में विज्ञान, एंटीबायोटिक्स जैसे विषयों पर पुस्तक की जरूरत को बताया।

विज्ञान पत्रकारिता के परिप्रेक्ष्य में इलेक्ट्रॉनिकी आपके लिए: डॉ. विनीता चौबे ने साझा किए विचार
"विज्ञान पत्रकारिता के परिप्रेक्ष्य में इलेक्ट्रॉनिकी आपके लिए" विषय पर विचार-विमर्श हुआ। इस कार्यक्रम की अध्यक्षता विश्वविद्यालय के कुलाधिपति श्री संतोष चौबे ने की। कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि के रूप में डॉ. विनीता चौबे, विज्ञान कथाकार मनीष मोहन गोरे, डॉ. कुलवंत सिंह, समीर गांगुली, और डॉ. मनीष श्रीवास्तव उपस्थित रहे। कार्यक्रम के दौरान डॉ. विनीता चौबे ने अपने उद्बोधन में बताया कि विज्ञान प्रसार के उद्देश्य से "इलेक्ट्रॉनिकी आपके लिए" पत्रिका का प्रकाशन किया गया था। उन्होंने पुराने समय का जिक्र करते हुए बताया कि जब पोस्टकार्ड और अंतरदेशीय पत्रों का दौर था, तब बस्तर और झाबुआ जैसे स्थानों से लोग 12-15 पृष्ठों के लेख भेजते थे। यह पत्रिका की लोकप्रियता का प्रतीक था। आज, इस पत्रिका की 35 हजार से अधिक प्रतियां हर माह प्रकाशित हो रही हैं। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए कुलाधिपति श्री संतोष चौबे ने भारतीय ज्ञान परंपरा में विज्ञान की समृद्ध और आलोकित परंपरा की बात की।

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