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बांदा का कालिंजर किला- जहां विष पीकर भी महादेव ने दी थी काल को मात, अब रिसॉर्ट-कैफेटेरिया संग नये रंग में नजर आएगा किला

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बांदा
 उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड अंचल में स्थित ऐतिहासिक कालिंजर किला अब केवल अतीत की धरोहर नहीं, बल्कि एक विकसित पर्यटन गंतव्य के रूप में अपनी पहचान बना रहा है। धार्मिक, पौराणिक और ऐतिहासिक महत्व के लिए प्रसिद्ध यह किला अब पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए पूरी तरह तैयार हो रहा है, जहां अब ठहरने, खाने और घूमने की अत्याधुनिक सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएंगी। ऐसी मान्यता है कि सतयुग से लेकर कलियुग तक हर दौर में यह किला मौजूद रहा है।

पहाड़ी पर बसा अद्वितीय किला
विंध्य पर्वतमाला की ऊँचाई पर लगभग चार वर्ग किलोमीटर में फैला कालिंजर किला अपनी मजबूत बनावट और रहस्यमय स्थापत्य कला के लिए जाना जाता है। यहां स्थित नीलकंठ महादेव मंदिर को भगवान शिव का निवास स्थल माना जाता है, जहां प्रतिवर्ष हजारों श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं। ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव ने विष का पान करने के बाद यहीं पर आराम किया था।

किले में मौजूद अन्य दर्शनीय स्थलों में पातालगंगा, अमान सिंह महल, कोटितीर्थ, मंडूक भैरव और स्वर्गारोहण कुंड शामिल हैं। साथ ही यह स्थल चंदेल और बुंदेल राजवंशों की गौरवगाथा को समेटे हुए है। यह किला वीरांगना रानी दुर्गावती की जन्मस्थली के रूप में भी ऐतिहासिक महत्व रखता है।

पर्यटन को मिलेगा नया आयाम
अब तक पर्यटकों के लिए कालिंजर में ठहरने की उचित व्यवस्था नहीं थी, लेकिन पर्यटन विभाग द्वारा की जा रही नई पहल से यह कमी जल्द ही दूर हो जाएगी। चित्रकूट धाम मंडल के क्षेत्रीय पर्यटन अधिकारी अनुपम श्रीवास्तव ने बताया कि किले के पास ही एक टूरिज्म फैसिलिटी सेंटर, हाई क्लास कैफेटेरिया, रिसॉर्ट, और डॉरमेट्री सहित 20 कमरों वाला तीन मंजिला भवन बनाया जा रहा है। इसमें गार्ड व ड्राइवर रूम की सुविधा भी होगी।

इससे न केवल पर्यटक अधिक समय यहां बिता सकेंगे, बल्कि स्थानीय लोगों को रोजगार के नए अवसर भी प्राप्त होंगे। इसके साथ ही हाल ही में रानी दुर्गावती की विशाल प्रतिमा की स्थापना ने भी किले को नया आकर्षण प्रदान किया है।

ईको टूरिज्म व्यू प्वाइंट से जुड़ेगा प्राकृतिक सौंदर्य
कालिंजर भ्रमण के बाद पर्यटक अब पास के काकुन माता स्थल पर भी जा सकेंगे, जहां एक खूबसूरत ईको टूरिज्म व्यू प्वाइंट का निर्माण किया जा रहा है। उदई पुरवा (नहरी) में स्थित इस स्थल तक पहुंचने के लिए पहाड़ी मार्ग विकसित किया जा रहा है।

नरैनी विधायक ओममणि वर्मा ने हाल ही में इन परियोजनाओं का भूमि पूजन और शिलान्यास किया। जानकारी के अनुसार कालिंजर में पर्यटन सुविधा केंद्र पर 4.99 करोड़ और काकुन माता ईको टूरिज्म स्थल पर 1.80 रुपए करोड़ खर्च किए जाएंगे।

बुंदेलखंड की संस्कृति से होगा साक्षात्कारकालिंजर के समीप खुले गुलमोहर नेचुरल रिसॉर्ट में पर्यटक बुंदेलखंड की सांस्कृतिक विरासत, स्थानीय शिल्प और पारंपरिक खान-पान का अनुभव भी ले सकेंगे। इन सुविधाओं के चलते महोबा और खजुराहो जैसे लोकप्रिय स्थलों की यात्रा करने वाले सैलानियों के लिए कालिंजर भी एक अनिवार्य पड़ाव बनता जा रहा है।

पहाड़ी पर बसा चमत्कारी किला, भगवान शिव से है नाता
विंध्य पर्वतमाला की ऊंचाई पर लगभग चार वर्ग किलोमीटर में फैला यह किला अपनी भव्यता और मजबूती के लिए जाना जाता है. नीलकंठ महादेव मंदिर इस किले की सबसे बड़ी पहचान है, जहां भगवान शिव को निवास करते हुए माना जाता है. यहां हर साल हजारों श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं.

इसके अलावा किले में कई दर्शनीय स्थल हैं जैसे पातालगंगा, अमान सिंह महल, कोटितीर्थ, मंडूक भैरव, और स्वर्गारोहण कुण्ड, जो इसकी ऐतिहासिकता को और भी मजबूत करते हैं. यह किला चंदेल और बुंदेल वंश की विरासत समेटे हुए है और इसे रानी दुर्गावती की जन्मस्थली के रूप में भी जाना जाता है.

अब पर्यटकों को मिलेगा ठहरने का इंतजाम
अब तक पर्यटकों को कालिंजर में रुकने की सुविधा नहीं थी, लेकिन अब यह समस्या खत्म होने वाली है. चित्रकूट धाम मंडल के पर्यटन अधिकारी अनुपम श्रीवास्तव ने बताया कि पर्यटन विभाग यहां टूरिज्म फैसिलिटी सेंटर, कैफेटेरिया, रिसॉर्ट, और आवासीय सुविधाएं विकसित कर रहा है. इससे न सिर्फ पर्यटकों को यहां ज्यादा समय बिताने का मौका मिलेगा, बल्कि स्थानीय लोगों के लिए रोजगार के नए अवसर भी खुलेंगे.

रानी दुर्गावती की प्रतिमा बनी नया आकर्षण
हाल ही में कालिंजर किले के अंदर रानी दुर्गावती की एक भव्य प्रतिमा स्थापित की गई है, जो पर्यटकों के लिए नया आकर्षण बन चुकी है. इसके साथ ही किले के आसपास का क्षेत्र प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर है. पास ही में गुलमोहर नेचुरल रिसॉर्ट भी खोला गया है, जहां पर्यटक बुंदेलखंड की संस्कृति और विरासत से जुड़ी चीजें भी देख सकते हैं.

कालिंजर कैसे पहुंचे?
कालिंजर किला, बांदा से 55 किमी, चित्रकूट से 78 किमी, खजुराहो से 105 किमी और प्रयागराज से करीब 205 किमी दूर है. यहां तक आप बस, ट्रेन या निजी वाहन के जरिए आसानी से पहुंच सकते हैं. नजदीकी रेलवे स्टेशन बांदा है और सबसे नजदीकी हवाई अड्डा खजुराहो एयरपोर्ट है.

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