करवा चौथ: प्रकृति प्रेम का प्रतीक पर्व, परिवार और परंपराओं का मिलन
Karva Chauth: Festival symbolizing love of nature, union of family and traditions
हम कोई भी व्रत-त्योहार मनाएं, वह किसी न किसी रूप में प्रकृति प्रेम का संदेश देता है. यह संदेश जल, जमीन और पेड़-पौधों को संरक्षित और सुरक्षित करने के प्रण से जुड़ा होता है. यह सच है कि हम प्रकृति को सुरक्षित रखेंगे, तभी हम दीघांयु होंगे, हम पीढ़ी- दर-पीढ़ी आगे बढ़ेंगे. दशहरा के बाद हम अंधकार पर प्रकाश के विजय का पर्व दीपावली मनाते हैं, लेकिन इससे पहले हम कार्तिक कृष्ण चतुर्थी को करवा चौथ भी मनाते हैं. स्त्रियां पति की लंबी आयु के लिए करवा चौथ का व्रत रखती हैं. स्त्रियां जानती हैं कि जिस धरा पर हमारा सुखमय दांपत्य जीवन बीत रहा है, उसके लिए पृथ्वी और प्रकृति के प्रति आभार प्रकट करना जरूरी है, इसलिए वह करवा चौथ के अवसर पर ऐसे अनुष्ठान संपन्न करती है, जो प्रकृति की सुरक्षा और संरक्षण का भी संदेश देता है.
कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि के दिन स्त्रियां सुख-शांति और समृद्धि से परिपूर्ण दांपत्य-जीवन की कामना लिये करवा चौथ का व्रत रखती हैं. वास्तव में यह वत न सिर्फ स्त्रियों, बल्कि पुरुषों के भी प्रेम, समर्पण और त्याग का महापर्व है. यदि हम इसे विस्तृत रूप में देखें, तो यह सृष्टि और प्रकृति प्रेम का भी संदेश देता है.
पौराणिक पात्र से जुड़ा है करवा चौथ
मान्यता है कि महाभारत काल में द्रौपदी ने यह व्रत रखा था. पांडवों पर आयी विपत्ति को दूर करने की कामना के लिये द्रौपदी ने भगवान श्रीकृष्ण से मदद मांगी और करवा चौथ का व्रत रखा. सावित्री और सत्यवान के अलौकिक प्रेम संबंध की कथा को भी इससे जोड़ कर देखा जाता है. व्रत के शुभ मुहूर्त में सबसे पहले श्री गणेश की पूजा की जाती है. इसके बाद शिव- पार्वती और कार्तिकेय की पूजा की जाती है. व्रत खोलने से पहले इस दिन छलनी
करवा चौथ 20 अक्तूबर
के माध्यम से चंद्रमा दर्शन का विधान है. यह इंगित करता है कि दांपत्य संबंधों में तभी शीतलता होगी, जब हम एक-दूसरे के अवगुणों को छलनी से छान कर देखेंगे. करवा चौथ मानवीय मनोभावों के साथ- साथ प्रकृति के प्रति भी प्रेम प्रकट करने का संदेश देता है.
संपूर्ण ब्रह्मांड के प्रति आभार
यदि आपने कभी करवा चौथ करती हुई स्त्री को गौर से देखा होगा, तो पाया होगा कि इस दिन वह चंद्रमा को मिट्टी के पात्र में शीतल
कलश में मौजूद पानी और अन्य तत्व वनस्पति और खनिजों सहित हमारी धरती की समृद्धि का प्रतीक हैं. हम कलश को पांच तत्वों- आकाश, वायु, अग्नि, जल, पृथ्वी से जोड़ सकते हैं. इसके आधार पर मिट्टी या किसी धातु का बर्तन पृथ्वी या धरती का प्रतीक है.
जीवन का आधार गंगा जल
कलश हिंदू अनुष्ठानों में गहरा प्रतीकात्मक महत्व रखता है, जो समृद्धि और आध्यात्मिक शुद्धता का प्रतिनिधित्व करता है. कलश या करवा को पवित्र गंगा नदी के जल से भरा जाता है. यहां गंगा जल जीवन को बनाये रखने वाली दिव्य ऊर्जा का प्रतीक है. जल जीवन का आधार है. गंगा तभी हमें ऊर्जा पूरित करेगी, जब उसका जल स्वच्छ रहेगा.
जल लेकर अर्घ्य देती है. इसका आशय है, जहां से शीतलता और रोशनी मिले, उसके प्रति संवेदना की आर्द्रता जरूर प्रदान करना चाहिए, साथ ही यह संदेश मिलता है कि जल, थल और नभ यानी संपूर्ण ब्रह्मांड के प्रति हम आभार प्रकट करें. हम उन्हें स्वच्छ व संरक्षित रखने की कोशिश करें, हम ऐसा कोई भी कार्य न करें, जिससे पर्यावरण को नुकसान पहुंचे.
ईश्वर के करीब लाता है यह पर्व
करवा चौथ में पति के स्वास्थ और लंबी आयु के लिए व्रत रखा जाता है. इसमें सूर्योदय से लेकर चंद्रोदय तक उपवास किया जाता है. इस अनुष्ठान के अंतर्गत शिव-पार्वती पूजा की थाली तैयार करना, चंद्रमा की पूजा करना और चंद्र दर्शन के बाद पति के हाथों जल और मठरी से व्रत तोड़ने का विधान है. यह एक-दूसरे के प्रति प्रेम-सम्मान और भक्ति का प्रतीक है. मन अशांत होने पर न हम मनुष्य के प्रति प्रेम प्रकट कर पाते हैं और न ही ईश्वर-
पृथ्वी का चित्रण है कलश
करवा चौथ के नाम में ‘करवा’ शब्द मिट्टी के बर्तन को संदर्भित करता है. पूर्ण कलश पृथ्वी का चित्रण है.
भक्ति में ध्यान लगा पाते हैं. यदि हम गौर करें, तो करवा चौथ उपवास का मुख्य उद्देश्य मन को शांत कर ईश्वर और गुरु के करीब आना है.