April 24, 2025

न्यायाधीश के घर में पैसे मिले और FIR नहीं हुई लेकिन न्यायपालिका राष्ट्रपति पर सवाल उठा सकती हैःउपराष्ट्रपति धनखड़

0

नई दिल्ली

8 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने पहली बार एक टिप्पणी के जरिए सलाह दी थी कि राष्ट्रपति को तीन महीने के भीतर राज्यपालों द्वारा भेजे गए लंबित विधेयकों पर फैसला ले लेना चाहिए। सर्वोच्च न्यायालय की इस टिप्पणी पर उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने प्रतिक्रिया दी है और इस पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा है कि भारत ने ऐसे लोकतंत्र की कल्पना नहीं की थी।

उपराष्ट्रपति ने किसे कहा 'सुपर संसद'?

उपराष्ट्रपति धनखड़ ने कहा, भारत ने ऐसे लोकतंत्र की कल्पना नहीं की थी, जहां न्यायाधीश कानून बनाएंगे, कार्यकारी कार्य करेंगे और 'सुपर संसद' के रूप में कार्य करेंगे।

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने गुरुवार को न्यायपालिका की भूमिका, पारदर्शिता की कमी और हाल की घटनाओं को लेकर चिंता जताई. उन्होंने न्यायपालिका द्वारा कार्यपालिका और विधायिका के क्षेत्र में हस्तक्षेप को लेकर तीखे सवाल उठाए. हाल ही में एक जज के आवास पर हुई घटना, उन पर एफआईआर दर्ज न होने और राष्ट्रपति को सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के मद्देनजर ये सवाल उठाए. उन्होंने कहा कि देश ने ऐसे लोकतंत्र की कल्पना नहीं की थी, जहां जज कानून बनाएंगे, कार्यपालिका का काम भी काम खुद ही करेंगे और सुपर संसद की तरह काम करेंगे. हाल ही में एक फैसले में राष्ट्रपति को निर्देश दिया गया है. आखिर हम कहां जा रहे हैं? देश में क्या हो रहा है? ये बातें उपराष्ट्रपति ने राज्यसभा के प्रशिक्षुओं के छठे बैच को उपराष्ट्रपति एन्क्लेव में संबोधित करते हुए कहीं.

उपराष्ट्रपति ने कहा कि हमें बेहद संवेदनशील होना होगा. ये कोई समीक्षा दायर करने या न करने का सवाल नहीं है. राष्ट्रपति को समयबद्ध तरीके से फैसला करने के लिए कहा जा रहा है. अगर ऐसा नहीं होता है तो संबंधित विधेयक कानून बन जाता है. अनुच्छेद-142 न्यायपालिका के लिए न्यूक्लियर मिसाइल बन गया है. इसका उपयोग लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को दरकिनार करने के लिए किया जा रहा है.
ये संविधान की आत्मा के खिलाफ है

उन्होंने कहा, सुप्रीम कोर्ट द्वारा राष्ट्रपति को निर्देश देना संविधान की आत्मा के खिलाफ है. बता दें कि उपराष्ट्रपति ने ये बात सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले पर कही है जिसमें अदालत ने राष्ट्रपति और राज्यपालों के लिए बिलों को मंजूरी देने में 3 महीने का समय निर्धारित किया था. उन्होंने केशवानंद भारती केस में आए मूल ढांचे के सिद्धांत की सीमाओं का जिक्र करते हुए आपातकाल के दौरान सुप्रीम कोर्ट के फैसलों की याद दिलाई और कहा कि तब मौलिक अधिकारों का हनन हुआ था, जबकि मूल ढांचा अस्तित्व में था.

देश का कानून उन पर लागू नहीं होता

राज्यसभा के प्रशिक्षुओं को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि हमारे पास ऐसे जज हैं जो कानून बनाएंगे, जो कार्यपालिका का कार्य खुद संभालेंगे, जो सुपर संसद की तरह काम करेंगे और उनकी कोई जवाबदेही नहीं होगी, क्योंकि देश का कानून उन पर लागू नहीं होता. उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि ये सब देखना पड़ेगा. भारत में राष्ट्रपति का पद बहुत ऊंचा है और राष्ट्रपति संविधान की रक्षा, संरक्षण एवं बचाव की शपथ लेते हैं. जबकि मंत्री, उपराष्ट्रपति, सांसदों और जज सहित अन्य लोग संविधान का पालन करने की शपथ लेते हैं.
क्या देरी को समझाया जा सकता है?

उपराष्ट्रपति ने कहा, हम ऐसी स्थिति नहीं बना सकते जहां आप भारत के राष्ट्रपति को निर्देश दें और वह भी किस आधार पर? संविधान के तहत आपके पास एकमात्र अधिकार अनुच्छेद 145(3) के तहत संविधान की व्याख्या करना है. इसके लिए पांच या उससे अधिक न्यायाधीशों की आवश्यकता होती है. धनखड़ ने कहा, मैं हाल की घटनाओं का उदाहरण देना चाहूंगा. 14 और 15 मार्च की रात दिल्ली में एक जज के निवास पर एक घटना घटी. सात दिनों तक किसी को इसके बारे में पता नहीं चला. क्या देरी को समझाया जा सकता है?
क्या इससे बुनियादी सवाल नहीं उठते?

उन्होंने कहा, क्या ये मामला क्षमा योग्य है? क्या इससे कुछ बुनियादी सवाल नहीं उठते? एक लोकतांत्रिक देश में इसकी जांच की जरूरत है. इस समय कानून के तहत कोई जांच नहीं चल रही है क्योंकि आपराधिक जांच के लिए एफआईआर से शुरुआत होनी चाहिए. यह देश का कानून है कि अपराध की सूचना पुलिस को देना आवश्यक है. ऐसा न करना एक अपराध है. इसलिए आप सभी सोच रहे होंगे कि कोई एफआईआर क्यों नहीं हुई. इसका उत्तर सरल है.
कानून से परे एक वर्ग को छूट कैसे मिली?

उपराष्ट्रपति ने कहा, इस देश में किसी के भी खिलाफ एफआईआर दर्ज की जा सकती है, किसी भी संवैधानिक पदाधिकारी के खिलाफ, चाहे वह आपके सामने मौजूद कोई भी हो. मगर, ये न्यायाधीश हैं, उनकी श्रेणी है, तो एफआईआर सीधे दर्ज नहीं की जा सकती. इसे न्यायपालिका में संबंधित लोगों द्वारा अनुमोदित किया जाना चाहिए, लेकिन संविधान में ऐसा नहीं दिया गया है. संविधान ने केवल राष्ट्रपति और राज्यपालों को ही अभियोजन से छूट दी है. फिर कानून से परे एक वर्ग को यह छूट कैसे मिली? इसके दुष्परिणाम सभी के मन में महसूस किए जा रहे हैं.

धनखड़ ने कहा कि उनकी चिंताएं ‘‘बहुत उच्च स्तर” पर हैं और उन्होंने ‘‘अपने जीवन में” कभी नहीं सोचा था कि उन्हें यह सब देखने का अवसर मिलेगा। उन्होंने उपस्थित लोगों से कहा कि भारत में राष्ट्रपति का पद बहुत ऊंचा है और राष्ट्रपति संविधान की रक्षा, संरक्षण एवं बचाव की शपथ लेते हैं, जबकि मंत्री, उपराष्ट्रपति, सांसदों और न्यायाधीशों सहित अन्य लोग संविधान का पालन करने की शपथ लेते हैं।

उपराष्ट्रपति ने कहा, ‘हम ऐसी स्थिति नहीं बना सकते जहां आप भारत के राष्ट्रपति को निर्देश दें और वह भी किस आधार पर? संविधान के तहत आपके पास एकमात्र अधिकार अनुच्छेद 145(3) के तहत संविधान की व्याख्या करना है> इसके लिए पांच या उससे अधिक न्यायाधीशों की आवश्यकता होती है।’

उपराष्ट्रपति निवास में राज्यसभा के 6वें बैच के प्रशिक्षुओं को संबोधित करते हुए धनखड़ दिल्ली हाईकोर्ट के एक जज के घर से जले हुए नोटों के बंडल मिलने के मामले पर भी बात की। उन्होंने कहा कि 14 और 15 मार्च की रात को नई दिल्ली में एक न्यायाधीश के निवास पर एक घटना हुई। सात दिनों तक, किसी को इसके बारे में पता नहीं था। हमें अपने आप से सवाल पूछने होंगे। क्या देरी समझने योग्य है? क्षमा करने योग्य है? 21 मार्च को एक समाचार पत्र द्वारा खुलासा किया गया, कि देश के लोग पहले कभी नहीं हुए इतने स्तब्ध थे। वे किसी तरह के लिंबो में थे, इस विस्फोटक चौंकाने वाले खुलासे पर गहराई से चिंतित और परेशान थे। राष्ट्र बेचैन है क्योंकि हमारी संस्थाओं में से एक, जिसे लोगों ने हमेशा सर्वोच्च सम्मान और श्रद्धा के साथ देखा है, कटघरे में डाल दिया गया।

उन्होंने आगे कहा कि तीन न्यायाधीशों की एक समिति मामले की जांच कर रही है, लेकिन जांच कार्यपालिका का क्षेत्र है, जांच न्यायपालिका का क्षेत्र नहीं है, क्या समिति भारत के संविधान के तहत है? नहीं। क्या तीन न्यायाधीशों की यह समिति संसद से निकले किसी कानून के तहत कोई स्वीकृति रखती है? उन्होंने आगे कहा कि हम ऐसी स्थिति नहीं रख सकते जहां आप भारत के राष्ट्रपति को निर्देश दें और वह भी किस आधार पर? संविधान के तहत आपके पास केवल एक अधिकार है अनुच्छेद 145(3) के तहत संविधान की व्याख्या करना. वहां पांच या अधिक न्यायाधीश होने चाहिए। लड़के और लड़कियों, जब अनुच्छेद 145(3) था, तो सुप्रीम कोर्ट में न्यायाधीशों की संख्या आठ थी, 8 में से 5, अब 30 और कुछ में से 5. लेकिन इसे भूल जाइए, न्यायाधीशों ने जो वस्तुतः राष्ट्रपति को एक आदेश जारी किया और एक परिदृश्य प्रस्तुत किया यह देश का कानून होगा, संविधान की शक्ति को भूल गए हैं।

कैसे जजों का वह संयोजन अनुच्छेद 145(3) के तहत कुछ से निपट सकता है अगर यह संरक्षित था तो आठ में से पांच के लिए। हमें उसमें भी संशोधन करने की जरूरत है। आठ में से पांच का मतलब होगा कि व्याख्या बहुमत द्वारा होगी। खैर, पांच आठ में बहुमत से अधिक का गठन करता है, लेकिन उसे अलग रखें। अनुच्छेद 142 लोकतांत्रिक शक्तियों के खिलाफ एक परमाणु मिसाइल बन गया है, जो न्यायपालिका को 24 x 7 उपलब्ध है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि राज्यपाल की तरफ से भेजे गए बिल पर राष्ट्रपति को तीन महीने के भीतर फैसला लेना होगा। दरअसल, 8 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु सरकार और राज्यपाल के मामले में ऐतिहासिक फैसला लिया था। कोर्ट ने कहा था कि राज्यपाल को विधानसभा की ओर से भेजे गए बिल पर एक महीने के भीतर फैसला लेना होगा।

इसी फैसले के दौरान अदालत ने राज्यपालों की ओर से राष्ट्रपति को भेजे गए बिल पर भी स्थिति स्पष्ट की। यह ऑर्डर 11 अप्रैल को सार्वजनिक किया गया। 11 अप्रैल की रात वेबसाइट पर अपलोड किए गए ऑर्डर में सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 201 का हवाला दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि राज्यपालों की ओर से भेजे गए बिल के मामले में राष्ट्रपति के पास पूर्ण वीटो या पॉकेट वीटो का अधिकार नहीं है। उनके फैसले की न्यायिक समीक्षा की जा सकती है और न्यायपालिका बिल की संवैधानिकता का फैसला न्यायपालिका करेगी।

क्या यह समिति संविधान के अधीन है?

उन्होंने आगे कहा कि इस मामले की जांच तीन जजों की समिति कर रही है लेकिन जांच कार्यपालिका का क्षेत्र है. जांच न्यायपालिका का क्षेत्र नहीं है. क्या यह समिति भारत के संविधान के अधीन है? नहीं. क्या तीन जजों की इस समिति को संसद से पारित किसी कानून के तहत कोई मंजूरी मिली हुई है? नहीं. समिति क्या कर सकती है? समिति ज्यादा से ज्यादा सिफारिश कर सकती है. सिफारिश किसको और किसलिए? हमारे पास जजों के लिए जिस तरह का तंत्र है, उसमें संसद ही अंतिम रूप से कार्रवाई कर सकती है. मेरे हिसाब से समिति की रिपोर्ट में स्वाभाविक रूप से कानूनी आधार का अभाव है.

'मेरी चिंताएं बहुत ज्यादा हैं'

धनखड़ ने कहा कि उनकी चिंताएं 'बहुत उच्च स्तर' पर है और उन्होंने अपने जीवन में कभी नहीं सोचा था कि उन्हें ये भी देखना पड़ेगा। कार्यक्रम में मौजूद प्रशिक्षुओं को उन्होंने याद दिलाते हुए कहा कि भारत के राष्ट्रपति का पद बहुत ऊंचा है।

उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति संविधान की रक्षा, संरक्षण और बचाव की शपथ लेते हैं। जबकि मंत्री, उपराष्ट्रपति, सांसद और न्यायाधीश समेत अन्य लोग संविधान का पालन करने की शपथ लेते हैं।

उपराष्ट्रपति ने कहा, "हम ऐसी स्थिति नहीं बना सकते हैं जहां आप भारत के राष्ट्रपति को निर्देश दें और किस आधार पर? संविधान के तहत आपके पास एकमात्र अधिकार अनुच्छेद 145(3) के तहत संविधान की व्याख्या करना है। इसके लिए पांच या उससे अधिक न्यायाधीश होने चाहिए।"

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

न्यूज़

slot server thailand super gacor

spaceman slot gacor

slot gacor 777

slot gacor

Nexus Slot Engine

bonus new member

olympus

situs slot bet 200

slot gacor

slot qris

link alternatif ceriabet

slot kamboja

slot 10 ribu

https://mediatamanews.com/

slot88 resmi

slot777

https://sandcastlefunco.com/

slot bet 100

situs judi bola

slot depo 10k

slot88

slot 777

spaceman slot pragmatic

slot bonus

slot gacor deposit pulsa

rtp slot pragmatic tertinggi hari ini

slot mahjong gacor

slot deposit 5000 tanpa potongan

mahjong

https://www.deschutesjunctionpizzagrill.com/

spbo terlengkap

cmd368

roulette

ibcbet

clickbet88

clickbet88

clickbet88

sbobet88

slot gacor

https://bit.ly/m/clickbet88

https://vir.jp/clickbet88_login

https://heylink.me/daftar_clickbet88

https://lynk.id/clickbet88_slot

clickbet88

clickbet88