सियासतनामा एक झटके में 40 साल पुरानी निष्ठा गंवा बैठे कमलनाथ
Political news: Kamalnath lost 40 years of loyalty in one stroke
विशेष संवाददाता
भोपाल ! कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कमलनाथ अब बैकफुट पर हैं। भाजपा में जाने को लेकर उन्होंने जो सियासी दांव खेला, इसके बाद नुकसान-फायदा अपनी जगह, लेकिन 40 साल से ज्यादा समय कांग्रेस में रहकर उन्होंने जो जगह बनाई थी, वह मिट्टी में मिल गई। एक झटके में वे गांधी परिवार के प्रति अपनी निष्ठा भी गंवा बैठे। कांग्रेस में उनके स्थान का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि पार्टी नेतृत्व ने उन्हें राष्ट्रीय अध्यक्ष तक बनाने का ऑफर दे दिया था। उन्हें इंदिरा गांधी का तीसरा बेटा जाे कहा जाता था। सांसद बेटे नकुलनाथ ने एक्स हैंडल से कांग्रेस का चुनाव चिन्ह हटा दिया। इसका अनुसरण सज्जन वर्मा सहित उनके कट्टर समर्थकों ने किया। दिल्ली में नाथ ने अपने समर्थकों का जमावड़ा लगाया और उनके साथ कौन भाजपा में जा सकता है, बाकायदा इसकी सूची तैयार कर ली। जब डील पक्की नहीं हुई तो पूरा ठीकरा मीडिया पर फोड़ दिया गया।
इस बार जिलों को अब तक नहीं मिले उनके ‘प्रभारी मंत्री’
भाजपा की सरकार बने ढाई माह से ज्यादा का समय गुजर चुका, लेकिन अब तक जिलों को उनके ‘प्रभारी मंत्री’ नहीं मिले। जिला योजना समितियों की बैठक मंत्रिमंडल की तर्ज पर होती है, जहां जिले के विकास को लेकर निर्णय लिए जाते थे। इनमें जिले के सभी विधायक, जिला पंचायत अध्यक्ष सहित अन्य जनप्रतिनिधि और सभी विभागों के प्रमुख अफसर हिस्सा लेते हैं। निर्णय सभी की राय से हाेते हैं, लेकिन प्रभारी मंत्री न होने के कारण बैठकें ही नहीं हो रहीं। सरकार ने हाल में एक आदेश जारी कर प्रभारी मंत्रियों की अनुपस्थित में जनसंपर्क राशि वितरण के अधिकार कलेक्टरों को दिए हैं। लगता है कि जिलों को प्रभारी मंत्री चुनावों के बाद ही मिल पाएंगे।
गुना से ग्वालियर पहुंचते ही बदला दिग्विजय का बयान
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह आमतौर पर अपने बयानों पर टिके रहते हैं। पहली बार ऐसा हुआ कि गुना से ग्वालियर पहुंचते ही उनका बयान बदल गया। गुना में मीडिया से बात करते हुए उन्होंने कहा था कि यदि पार्टी ने निर्देश दिया तो वे गुना-शिवपुरी संसदीय क्षेत्र से केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के खिलाफ चुनाव लड़ने के लिए तैयार हैं। इससे पहले राजगढ़ में वे कह चुके थे कि लोकसभा चुनाव वे नहीं लड़ेंगे, क्योंकि राज्यसभा का उनका कार्यकाल अभी लगभग सवा दो साल शेष है। इसे कमलनाथ के भाजपा में जाने के ड्रॉप हो गए सियासी ड्रामे से जोड़कर देखा गया। आरोप लग रहे थे कि कांग्रेस का कोई वरिष्ठ नेता लोकसभा चुनाव नहीं लड़ना चाहता, जबकि पार्टी नेतृत्व हर वरिष्ठ नेता को चुनाव लड़ाने के मूड में है।
राहुल की न्याय यात्रा से ‘निकलेगी’ पटवारी की टीम
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी अब तक अपनी टीम का गठन ही नहीं कर सके। कांग्रेस का प्रदेश प्रभारी बनने के बाद भंवर जितेंद्र सिंह अपने पहले दौरे में ही प्रदेश कार्यकारिणी को भंग कर चुके थे। उम्मीद की जा रही थी कि कार्यकारिणी का गठन जल्द होगा, लेकिन ऐसा नहीं हो सका। प्रदेश कांग्रेस कार्यालय में कुछ पूर्व पदाधिकारी ही काम करते नजर आ रहे हैं। कार्यकारिणी के गठन में इस बार नेताओं का कोटा नहीं चलेगा। राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा के बाद पटवारी की टीम घोषित हो जाएगी। टीम का पदाधिकारी बनने के लिए न्याय यात्रा में नेताओं की सक्रियता प्रमुख योग्यता मानी जाएगी। यात्रा को सफल बनाने के लिए कौन नेता कैसी मेहनत करता है, इसकी मॉनीटरिंग की जाएगी। राहुल की यात्रा की तैयारी को लेकर चंदि्रका प्रसाद द्विवेदी के नेतृत्व में एक टीम का गठन हो चुका है। महेंद्र सिंह चौहान की अध्यक्षता में एक टीम ने लोकसभा चुनाव के लिए वार रूम ने काम शुरू कर दिया है। इनके अलावा राजीव सिंह पूर्ववत संगठन का काम देख रहे हैं और केके मिश्रा मीडिया का।
कांग्रेस-सपा का ‘खजुराहो समझौता’
गठबंधन और चुनावी राजनीति के इतिहास में संभवत: पहली बार कांग्रेस ने मप्र में एक लोकसभा सीट खजुराहो समाजवादी पार्टी को समझौते में दे दी है। बुंदेलखंड पर सपा की नजर पहले से है। यदा-कदा विधानसभा चुनाव में यहां से उनके विधायक जीतते रहे हैं। क्षेत्र में यादव मतदाताओं की तादाद अच्छी खासी है। खजुराहो से भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा सांसद हैं। वे यहां से लगभग 5 लाख वोटों के अंतर से चुनाव जीते थे। इस बार भी उनके बड़े अंतर से जीतने की संभावना है। इसलिए, खजुराहो छोड़ने से कांग्रेस को अन्य सीटों पर यादव और मुस्लिम समाज के कुछ वोट मिल सकते हैं। सपा खजुराहो से भले हार जाए लेकिन इसके जरिए वह बुंदेलखंड में अपनी उपस्थिति बरकरार रख सकती है।