सुप्रीम कोर्ट का आदेश एपीएआर संबंधित आदेश सरकार वापस लें नहीं तो अवमानना कार्यवाही शुरू करेंगे
Supreme Court’s order: Government should withdraw APAR related order or else we will initiate contempt proceedings
- आईएफएस अफसर की हुई जीत,: नौकरशाही की हुई फजीहत
भोपाल। उच्चतम न्यायालय न्यायमूर्ति बी दवाई की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने राज्य को चेतावनी दी यदि 29 जून को जारी आईएफएस अधिकारियों की प्रदर्शन मूल्यांकन रिपोर्ट संबंधित आदेश वापस लें नहीं तो प्रदेश सरकार के खिलाफ अवमानना कार्यवाही शुरू करने करेंगे। सुप्रीम कोर्ट के फैसले से जहां आईएफएस अधिकारियों की जीत हुई है वहीं नौकरशाही की फजीहत हुई है। एक अधिकारी ने कोर्ट के फैसले के बाद अपनी प्रक्रिया में कहा कि सत्यमेव जयते।
यह आदेश न्यायमूर्ति बीआर गवई की अध्यक्षता वाली सर्वोच्च न्यायालय की खंडपीठ ने गौरव कुमार बंसल, वकील द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई के दौरान दिया । न्यायमूर्ति बीआर गवई की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने मध्य प्रदेश राज्य की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता को इस मुद्दे को गंभीरता से देखने का निर्देश दिया और आगे कहा कि यदि दिनांक 29 जून 24 का आदेश वापस नहीं लिया गया तो न्यायालय उनके खिलाफ अवमानना कार्यवाही शुरू कर सकता है। सनद रहे कि 29 जून 2024 के अपने आदेश के तहत, मध्य प्रदेश राज्य ने डीएफओ से लेकर पीसीसीएफ तक के भारतीय वन सेवा अधिकारियों के लिए एपीएआर चैनल के संबंध में एक नई व्यवस्था शुरू की। बंसल ने न्यायमूर्ति गवई की अध्यक्षता वाली सर्वोच्च न्यायालय की खंडपीठ को यह भी अवगत कराया कि 29 जून 2024 के आक्षेपित आदेश ने न केवल डीएफओ से लेकर पीसीसीएफ तक सभी आईएफएस अधिकारियों के एपीएआर जमा करने के चैनल को बदल दिया है, बल्कि यह भी निर्देश दिया है कि संयुक्त से संबंधित कार्य वन प्रबंधन, वन अधिकार अधिनियम से संबंधित मामले, भूमि अधिग्रहण, इकोटूरिज्म, वन क्षेत्रों में खनन गतिविधियाँ, और डीएफओ , वन संरक्षक और मुख्य वन संरक्षक द्वारा किए गए अन्य महत्वपूर्ण कार्यों का मूल्यांकन संबंधित जिला कलेक्टर और संभागीय आयुक्त द्वारा किया जाएगा। एपीएआर में उनकी टिप्पणी के साथ दस में से नंबर देकर, जो उनकी भूमिका के बिल्कुल विपरीत है। बंसल ने तर्क दिया कि मध्य प्रदेश राज्य द्वारा जारी दिनांक 29 जून 24 का आदेश टी.एन. के फैसले में इस माननीय न्यायालय द्वारा निर्धारित स्पष्ट निर्देशों का उल्लंघन करता है। बंसल ने न्यायमूर्ति गवई की अध्यक्षता वाली सर्वोच्च न्यायालय की खंडपीठ को यह भी सूचित किया कि मूल्यांकन प्रक्रिया में गैर-वन विभाग के अधिकारियों को शामिल करने से न केवल भारतीय वन सेवाओं के प्राथमिक जनादेश यानी वैज्ञानिक प्रबंधन, संरक्षण और वनों का संरक्षण कमजोर होगा। वन्यजीवन के संरक्षण और सुरक्षा पर भी प्रभाव डालेगा, इसलिए वर्तमान आदेश मध्य प्रदेश सरकार वापस ले।