आईएफएस के एपीएआर संशोधन संबंधित शासन के आदेश को सर्वोच्च न्यायालय में दी चुनौती
The government’s order regarding IFS’s APAR revision was challenged in the Supreme Court
- 29 जून को जारी आदेश के पारा दो और पारा 3 को रद्द करने का आग्रह
गणेश पाण्डेय
भोपाल। मध्य प्रदेश में अखिल भारतीय दो सेवाओं के बीच टकराहट की स्थिति निर्मित हो गई है। प्रदेश की नौकरशाही जंगल में भी अपनी हुकूमत चलाने की मंशा से 22 साल से चली आ रही एपीएआर लिखने की प्रक्रिया में संशोधन आदेश करते हुए डीएफओ और वन संरक्षक के मूल्यांकन का अधिकार कलेक्टर कमिश्नर को दिए गए हैं। सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में कहा गया है कि प्रदेश सरकार द्वारा जारी आदेश दिनांक 29 जून 2024 और विशेष रूप से पैरा 2 और पैरा 3 को रद्द करें। मध्य प्रदेश सरकार को टी.एन. गोदाबर्मन के फैसले में उच्चतम न्यायालय द्वारा निर्धारित निर्देशों का सख्ती से पालन करते हुए एक नया आदेश जारी करने का निर्देश दें।
याचिका में उल्लेखित है कि 29 जून 2024 के अपने आदेश आईएफएस के अधिकार को भी कमजोर करता है। विवादित आदेश में एपीएआर प्रक्रिया में अन्य सेवाओं [अतिरिक्त मुख्य सचिव (एसीएस)/प्रधान सचिव (पीएस)] के अधिकारियों को शामिल किया गया है, जो इस आवश्यकता के विपरीत है कि रिपोर्टिंग अधिकारी वन विभाग के वरिष्ठ अधिकारी हों। मसलन, डीएफओ, वन संरक्षक और मुख्य वन संरक्षक जैसे पदों के लिए रिपोर्टिंग प्राधिकारी, मूल्यांकन और स्वीकार कर्ता आईएफएस ही होना चाहिए। याचिका कर्ता एडवोकेट गौरव कुमार बंसल ने अपने याचिका में कहा है कि 29 जून 24 के अपने आदेश के तहत मध्य प्रदेश राज्य ने प्रभागीय वन अधिकारी (डीएफओ) से लेकर प्रधान मुख्य वन संरक्षक (पीसीसीएफ) तक के भारतीय वन सेवा अधिकारियों के लिए पीएआर चैनल के संबंध में एक नई व्यवस्था शुरू की है। 29 जून 2024 के आक्षेपित आदेश का प्रासंगिक भाग, जो सर्वोच्च न्यायालय के आदेश का सीधा उल्लंघन है। मूल्यांकन प्रक्रिया में गैर-वन विभाग के अधिकारियों को शामिल करने से न केवल भारतीय वन सेवाओं का प्राथमिक अधिदेश अर्थात वनों और वन्यजीवों का वैज्ञानिक प्रबंधन, सुरक्षा और संरक्षण कमजोर होगा, बल्कि संरक्षण पर भी प्रभाव पड़ेगा।
याचिका कर्ता बंसल ने यात्रा में कहा है कि राजस्व जैसे विभागों के अधिकारियों को वन अधिकारियों का मूल्यांकन करने की अनुमति देकर वन, वन्य प्राणी और पर्यावरण संरक्षण के प्रयासों को एक महत्वपूर्ण झटका देता है। हरियाणा राज्य बनाम पी.सी. वाधवा (1987 (3) एससीसी 404) ने लगातार इस बात पर जोर दिया है कि अखिल भारतीय सेवा के अधिकारियों के लिए रिपोर्टिंग प्राधिकारी उसी सेवा के भीतर तत्काल वरिष्ठ होना चाहिए। विवादित आदेश, इस स्थापित मिसाल से हटकर, कानूनी असंगतता पैदा करता है और भविष्य के प्रशासनिक आदेशों के लिए एक खतरनाक मिसाल कायम करता है।
वन और पर्यावरण संरक्षण बनाम विकास के चलते टकराव
भारतीय वन सेवा अधिकारियों के लिए मुख्य चुनौती पर्यावरण संरक्षण की आवश्यकता को संतुलित करना है। जबकि आईएएस अधिकारियों का समग्र काम राजस्व और प्रशासनिक मामलों पर केंद्रित है। आईपीएस अधिकारियों का काम कानून और व्यवस्था पर केंद्रित है, वहीं आईएफएस अधिकारियों का काम प्रकृति में अधिक तकनीकी है। वह पर्यावरण की सुरक्षा और संरक्षण के लिए समर्पित हैं। राज्य कानूनों को लागू करने वाले आईएएस और आईपीएस अधिकारियों के विपरीत, आईएफएस अधिकारी मुख्य रूप से वनों और वन्यजीवों से संबंधित केंद्रीय कानूनों को लागू करने के लिए जिम्मेदार हैं। कई बार आईएफएस अधिकारियों को अक्सर चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। वन अधिनियम एवं वन संरक्षण कानून को लागू करवाने के प्रयास में आईएफएस अफसरों और राजस्व अधिकारी टकराते हैं।