November 22, 2024

विधानसभा की हार पर कांग्रेस का चिंतन, समीक्षा बैठक मे होगा कारणों पर मंथन.

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Congress party is contemplating its defeat in the legislative assembly, and a review meeting will be held to analyze the reasons.

 उदित नारायण 

नई दिल्ली। हाल मे सम्पन हुए 5 राज्यों के विधानसभा चुनावों मे तेलंगाना को छोड़ 4 राज्यों मे करारी हार के बाद कांग्रेस के मिशन 2024 को करारा झटका लगा है,

कांग्रेस नेता राहुल गाँधी, महासचिव प्रियंका गाँधी और पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे के साथ पार्टी नेता आज से 2 दिन हार की समीक्षा करेंगे लेकिन वर्ष 2014 से लगातार चुनाव दर चुनाव हारने पर समीक्षा बैठक करने के बावजूद भी कांग्रेस अपने संगठन मे कोई मूलभूत परिवर्तन नहीं कर पाई है पार्टी मे दूसरी श्रेणी के नेताओं की भारी कमी है ऐसा नही है कि पार्टी मे अच्छे नेताओं की कमी है लेकिन पार्टी मे उनकी कोई सुनवाई नहीं होती कारण कांग्रेस नेतृत्व के आस पास मौजूद मण्डली प्रभावशाली और योग्य लोगो को नेतृत्व के पास फटकने नहीं देते ना ही उनके सुझाव पार्टी नेतृत्व तक पहुंच पाते है एक तरफ जहाँ भाजपा मे जमीनी कार्यकर्ताओं के साथ अनेक सामाजिक और आर्थिक मामलो के जानकारों को सलाहकार नियुक्त किया जाता है वही कांग्रेस मे यह योग्यता विदेश मे पढ़ा होना और कुछ खास लोगों का कृपापात्र होना मात्र है, वर्ष 2004 मे इंडिया शाइनिंग नारे के बावजूद बाजपेई सरकार से सत्ता छीनने वाली कांग्रेस कांग्रेस को लगता है कि वह आज भी मोदी सरकार से ऊबकर सत्ता उनको सौप देगी लेकिन अब वक्त बदल चुका है डिजिटल युग मे आम जनमानस तक सरकारी योजनाओं और एक प्रान्त से दूसरे प्रान्त और विश्व पटल तक की जानकारी प्राप्त कर रहा है,

बिगत 10 सालों मे कांग्रेस ने चुनाव कि अपनी पिच तैयार करने मे नाकायाब रही है वह वैसे खेल रही है जैसे भाजपा उन्हें खिलाना चाह रही है,

कांग्रेस को हार के मंथन मे कुछ बातों पर आत्म चिंतन कि आवश्यकता है जैसे –

*बाहर से आने वालों पर मूल कैडर से ज्यादा भरोसा*

दशकों से कांग्रेस पार्टी मे बाहर व दूसरी पार्टियों से आने वालों को संगठन मे बड़े पदों पर जिम्मेदारी दे दी जाती रही है जबकि मूल कैडर के कार्यकर्त्ता जस के तस रह जाते हैँ.

*सालाहकारों के चयन, कार्यप्रणाली और अति निर्भरता* एक तरफ जहाँ और पार्टियों मे पार्टी के छोटे तथा जमीनी कार्यकर्त्ताओं की बातों को सुना व समझा जाता है वहीँ आज भी कांग्रेस मे विदेश से मैनेजमेंट पास आउट जमीनी हकीकत से दूर और स्वार्थी सालाहकारों की भरमार है वह नहीं चाहते कि नेतृत्व कोई ऐसा व्यक्ति पहुंचे जिससे उनकी कोई बात आलाकमान तक पहुंचे वो पार्टी से ज्यादा अपनी कुर्सी बचाने की जुगत मे लगे रहते हैँ राहुल गाँधी की अमेठी मे हार उनके प्रतिनिधियों और क्वार्डिनेटरों की कार्यशैली का ही परिणाम था.

*हिंदी भाषी नेताओं की कमी* कांग्रेस मे ज्यादातर निर्णय दक्षिण भारत के नेताओं और सालाहकारों की सलाह से लिए जाते है जबकि हिंदी भाषी क्षेत्रो की राजनैतिक भूमि, परिस्थिति दक्षिण से बिलकुल अलग है दक्षिण मे जहाँ स्थानीय मुद्दे हावी रहते है मध्य, उत्तर और पूर्वी भारत मे स्थानीय के साथ साथ राष्ट्रीय मुद्दे ज्यादा प्रभावी रहते हैँ.

*कमजोर संगठन* हिंदी भाषी क्षेत्रों मे कांग्रेस का संगठन बेहद कमजोर है राज्य से लेकर जिला और बूथ लेबल तक समर्पित कार्यकर्त्ता नहीं हैँ जहाँ भाजपा और स्वयंसेवक के कार्यकर्त्ता और सिमितियाँ बूथ तक मौजूद और सक्रिय है वही कांग्रेस मे पार्टी पदाधिकारी के अलावा कार्यकर्त्ता ही नहीं है कार्यकर्ताओ का सम्मान ना मिलना उनको हतोत्साहित करता रहा है.

*दोहरी राजनैतिक शैली*

इस दौर मे जहाँ भाजपा अपनी स्पष्ट नीति पर काम कर रही है वही कांग्रेस जनमानस तक अपनी कोई नीति पहुंचाने मे नाकायाब रहती है वजह है एजेंडा क्लियर ना होना पार्टी किसके साथ है और किसके खिलाफ जनता को यह स्थिति साफ नहीं हो पाती कांग्रेस को जरुरत है बेहतर रणनीतिकार की जो नेतृत्व और पार्टी को बिना अपना स्वार्थ देखे बेहतर रणनीति पर अग्रसर कर सके

*संघर्षो मे कमी*

विपक्ष मे बैठी कांग्रेस मे संघर्ष की कमी साफ झलकती है जनहित के मुद्दों पर पार्टी के कुछ नेता टेलीविज़न और संसद मे अवश्य बोलते देखे जाते है लेकिन सडक पर और जनता के बीच संघर्षो मे पीछे रहते है कारण पार्टी मे संघर्ष शील कार्यकर्त्ता कम चरणवन्दन और कुर्ताधारी नेताओं की बहुतायत होना है,

*एक ही मुद्दे पर अटके रहना और स्थिति का अध्यन ना होना* कांग्रेस के ज्यादातर नेता निजी और संवेदनशील बयान और एक ही मुद्दे पर अटके रहते हैँ जमीनी स्तर पर कार्य ना करने के कारण जन भावना और जमीनी मुद्दों तथा जनता के मन की बात की बात विरोध और सहयोग की जानकारी ही नहीं रहती

*संचार माध्यमो के उपयोग की कमी और ओवर कॉन्फिडेंस तथा आत्मनिर्भरता की कमी*

संचार युग का आरम्भ करने पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गाँधी जी के विचारों की पार्टी आज संचार माध्यम और डिजिटल मीडिया मे फिसड्डी साबित हो रही है जहाँ भाजपा मे बूथ लेबल तक के कार्यकर्त्ता डिजिटल माध्यमो से जुड़े और सक्रिय हैँ वही कांग्रेस के ज्यादातर ज़िलों मण्डलों और उनके सहयोगी संगठन के सोशल मीडिया अकाउंट तक नहीं हैँ कांग्रेस के नेता सिर्फ फेसबुक और ट्विटर पर पोस्ट डालने को डिजिटल मार्केट समझते है एक ओर जहाँ अन्य पार्टियों मे डिजिटल के प्रति आकर्षित होकर जनता से जुड़ रही है वही कांग्रेस आज भी पुराने कार्यशैली पर लगी है जहाँ भाजपा व अन्य ज्यादातर प्रचार डिजिटल एजेंसी और संचार माध्यम से कर रही हैँ वही कांग्रेस नेता हाथ पर हाथ धरे या अपने खास को काम दिला मौज मे रहते हैँ

*चुनावी तैयारियों मे देरी*

विना बेहतर प्रवंधन कोई लक्ष्य हासिल नहीं किया जा सकता कठोर निर्णय लेने मे नेतृत्व सक्षम प्रतीत नहीं होता जहाँ भाजपा एक चुनाव के बाद तुरंत दूसरे चुनाव की तैयारी मे लग जाती है वही कांग्रेस नेता टिकट बितरण का इंतज़ार करते हैँ जहाँ जहाँ अन्य पार्टियों इलेक्शन मोड पर सक्रिय रहती हैँ वही कांग्रेस नेता और पार्टी रेस्ट मोड पर,

ऐसे ही युवा और जुझारू नेताओं की कमी और नेतृत्व द्वारा उन्हें आगे ना बढ़ा कर पुराने और दरबारी नेताओ पर भरोसा तथा कमजोर आत्म विश्वास पार्टी को नीचे की तरफ ले जा रहा हैँ राहुल गाँधी जैसे सारीखे नेता को वयनाड जैसी सुरक्षित सीट ढूंढना और संघर्ष से दूर रहना तथा हार के बाद अपने खानदानी सीट से दूरी बना लेना तथा सिर्फ कानो को पसंद आने वाली बातों को ही प्राथमिकता देना कहीं ना कहीं इस बात का प्रमाण है कि इंदिरा राजीव जैसे संघर्षशील और दूरदृष्टि वाले नेताओं कि कांग्रेस अब चंद दरबारियों की मोहताज़ हो गयी है,

राम चरित मानस मे भी लिखा है

 *सचिव वैद गुरु तीन जौ प्रिय बोलें भय आस| राज धर्म तन तीन कर होहिं बेगिही नाश ||*

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