क्या पार्टी में कमलनाथ की पकड़ ढीली हो गई है..?
भोपाल. जैसे-जैसे विधानसभा के चुनाव नजदीक आते जा रहे हैं वैसे-वैसे मध्य प्रदेश कांग्रेस में दिल्ली की दखल बढ़ती जा रही है. इसका ताजा उदाहरण जीतू पटवारी है. कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव केसी वेणुगोपाल ने प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष एवं पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ के नापसंद नेता जीतू पटवारी को अब चुनाव अभियान समिति का अध्यक्ष बना दिया है. हाई
कोर्ट जबलपुर से एफआईआर रद्द होने के बाद युवा आदिवासी नेता एवं पूर्व मंत्री उमंग सिंघार को भी महत्वपूर्ण जिम्मेदारी मिलने के संकेत मिले है.
मध्य प्रदेश कांग्रेस कमेटी में ऊपर से जितनी एकता दिखाई दे रही है, वह नहीं है और यही वजह से अब दिल्ली से हाईकमान द्वारा सबकुछ कंट्रोल में रखने की कोशिश की जा रही है. प्रदेश प्रभारी महासचिव रणदीप सुरजेवाला कैंप कर रहे हैं और लगातार नेताओं, लोगों से मुलाकात कर रहे हैं. सुरजेवाला हरियाणा में जिस तरह मुख्यमंत्री को दो बार हराकर विधायक बने थे, वह उनके चुनाव लड़ने का तरीका दर्शाता है और मध्य प्रदेश में वे अपनी रणनीति के तहत काम में जुटे हैं. प्रदेश कांग्रेस की डे-टू-डे की वर्किंग में भले ही हस्तक्षेप नहीं करें मगर कंट्रोल में सब चीजें रख रहे हैं. मध्य प्रदेश कांग्रेस के कुछ नेताओं को कमजोर करने के लिए जिस तरह के फैसले लिए गए उससे संतुलन बनाने के लिए पिछले दिनों अजय सिंह, अरुण यादव और सुरेश पचौरी को चुनाव समिति में समिति की घोषणा के कुछ दिन बाद ही शामिल किया गया. अब पटवारी को चुनाव अभियान समिति को चुनाव अभियान समिति में सह अध्यक्ष बनाकर संतुलन का बनाने के प्रयासों का दूसरा फैसला माना जा रहा है.
संतुलन बनाने एक और फैसला
मध्य प्रदेश कांग्रेस कमेटी के युवा नेताओं की उपेक्षा जैसे स्थितियां बनने की वजह से एआईसीसी ने जीतू पटवारी को चुनाव अभियान कमेटी का सह अध्यक्ष बनाया है. कमेटी के अध्यक्ष वरिष्ठ विधायक कांतिलाल भूरिया हैं. वे भी दिग्विजय सिंह के समर्थक कहे जाते हैं लेकिन यह कहा जा रहा है कि जीतू पटवारी की दिल्ली को कहीं न कहीं उपेक्षा होने की खबरें मिली होंगी तभी उन्हें चुनाव कमेटियों से जुड़े महत्वपूर्ण काम को सौंपने का फैसला किया गया.
उमंग सिंघार को मिल सकती है नई जिम्मेदारी
पत्नी की कथित प्रताड़ना के मामले मे हाई कोर्ट जबलपुर ने पुलिस द्वारा दर्ज एफआईआर रद्द कर दिया है. हाई कोर्ट के इस निर्णय के बाद हाई कमान युवा आदिवासी नेता एवं पूर्व मंत्री उमंग सिंघार को नई जवाबदारी देने पर मंथन कर रही है. सिंघार एकमात्र ऐसे आदिवासी नेता है, जिनका पूरे प्रदेश में युवाओं और आदिवासियों के बीच लोकप्रिय है. वे प्रदेश के बड़े नेताओं के सामने आदिवासियों के हित में साफगोई से अपनी बात रखते हैं. प्रदेश कांग्रेस के पास ऐसे आदिवासी नेताओं का अभाव है, जो बिना लाग-लपेट के अपने समाज और संगठन के हित में खुलकर बात करें. वर्तमान में दिग्विजय सिंह के एसमैन कांतिलाल भूरिया और उनके बेटे के सहारे कांग्रेस चुनाव में आदिवासियों के वोट साधने में लगी है. प्रदेश की राजनीति में कांतिलाल भूरिया की छवि चुके हुए नेता की है. उनके गृह जिले झाबुआ के आदिवासी ही उन्हें अपना नेता नहीं मानते हैं. इसकी वजह भी स्पष्ट है कि वे कांग्रेस की पट्ठावाद संस्कृति से नेता बने हैं.