चैनलिंक, बारवेड वायर और पोल्स की 60 करोड़ की खरीदारी में कमीशनबाजी बंट जाते हैं 12 करोड़
12 crore commission is divided in the purchase of 60 crores of chainlink, barbed wire and poles.
- नई-नई शर्तों के कारण लघु एवं मध्यम उद्यमी प्रतिस्पर्धा से कर दिए जाते हैं बाहर
उदित नारायण
भोपाल ! चालू वित्त वर्ष में जंगल महकमे में करीब 50 से 60 करोड़ रूपए की चैनलिंक, बारवेड वायर और टिम्बर पोल्स की खरीदी में बड़े पैमाने पर कमीशन बाजी का खेल खेला जा रहा है। सबसे अधिक खरीदी कैंपा फंड से की जा रही है। इसके अलावा विकास और सामाजिक वानिकी (अनुसंधान एवं विस्तार ) शाखा से भी खरीदी होती है। विभाग के उच्च स्तरीय सूत्रों की माने तो कुल रिलीज बजट की 18 से 20% धनराशि कमीशन के रूप में टॉप -टू – बॉटम बंटती है। यानि सप्लायर्स को हर साल लगभग 10-12 करोड़ कमीशन में बांटने पड़ते हैं। दिलचस्प पहलू यह है कमीशन में अधिक हिस्सेदारी न बढ़े, इसके लिए प्रोटेक्शन शाखा से बंटने वाली राशि भी अब कैंपा शाखा से बंटने लगी है। जबकि पूर्व में विभाग में परम्परा रही है कि फायर लाइन से लेकर मोबाइल, वायरलेस, वाहन आदि से समन्धित बजट प्रोटेक्शन शाखा से बंटता रहा है।
मुख्यालय से सबसे अधिक फंड कैंपा शाखा से रिलीज किया जाता है। इसके बाद सामाजिक वानिकी और विकास शाखा से भी करोड़ों की धनराशि वन मंडलों को दिया जाता है। तीनों शाखाओं को मिलाकर हर वन मंडल को 5 से 7 करोड़ रूपए की राशि हर साल खरीदी के लिए रिलीज किया जा रहा है। चैनलिंक जाली, बारवेड वायर, टिम्बर पोल्स, रूट ट्रेनर्स, मिट्टी और गोबर एवं रासायनिक खाद वगैरह की खरीदी की जाती है। इस खरीदी में 15 से 18 फीसदी तक राशि कमीशन बाजी में बंटती है। इस खेल को रोकने के लिए पूर्व वन मंत्री विजय शाह ने ग्लोबल टेंडर बुलाने की पहल की थी किंतु मैदानी अफसरों के विरोध के चलते वे अपने मंसूबे में सफल नहीं हो पाए थे। इसकी मुख्य वजह यह है कि मुख्यालय से लेकर मैदानी अमले का नेक्सस से सीधा रिश्ता है। गौरतलब यह भी है कि मुख्यालय से विभिन्न शाखों द्वारा फंड रिलीज करने का कोई निर्धारित मापदंड नहीं है। चेहरा देखकर फंड वितरित किया जा रहा है। इस फार्मूले का उपयोग सबसे अधिक कैम्पा फंड में किया जा रहा है। अनूपपुर वन मंडल में तीन रेंज है जहां कैंपा फंड से फायर प्रोटक्शन के 24 लाख रुपए रिलीज किए गए। वहीं उत्तर शहडोल वन मंडल में बड़े जंगल हैं, उसके लिए कैम्पा शाखा से मात्र 14 लाख रूपये दिए गए। इसी प्रकार सिंगरौली में तीन रेंज है वहां 36 लाख और नरसिंहपुर वन मंडल के लिए मात्र ₹1200000 दिए। यह असमानता इसलिए है कि कैंपा पीसीसीएफ अपनी मनमर्जी के अनुसार डीएफओ को फंड डिलीट कर रहे हैं। जबकि संरक्षण शाखा फायर प्रोटक्शन के लिए वार्षिक एप्सन प्लान तैयार करता है। पीसीसीएफ डॉ दिलीप कुमार का कहना है कि कैंपा से फंड संरक्षण शाखा को ट्रांसफर होनी चाहिए और उसके बाद संरक्षण शाखा ही डीएफओ को अपने एक्शन प्लान के अनुसार बजट रिलीज करें।
इसके कारण गड़बड़ी की आशंका बढ़ती जा रही है।
सरकार के निर्देशों की अवहेलना
राज्य सरकार के स्पष्ट निर्देश है कि वायरवेट, चैनलिंक और पोल की खरीदी में लघु उद्योग निगम को प्राथमिकता दें किंतु 95% खरीदी जेम्स और ई टेंडर से हो रही है। ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि लघु उद्योग निगम की दर और जेम (GEM) की दरों में डेढ़ गुना अंतर है। यानी लघु उद्योग निगम में वायरवेट कि दर 83 रुपए से लेकर 85 रुपए तक निर्धारित की गई है। जबकि जेम (GEM) में ₹150 तक है। सरकार की मंशा यह भी है कि लघु और मध्यम उद्यमियों को इस कारोबार से जोड़ा जाए। मुख्यालय से लेकर फील्ड के अफसर टेंडर की शर्तों में ऐसी शर्ते जुडवा देते हैं जिसके चलते लघु और मध्यम उद्यमी प्रतिस्पर्धा की दौड़ से बाहर हो जाते हैं। सरकार के अन्य विभाग में टेंडर विभागीय वेबसाइट पर अपलोड कर दी जाती है किंतु वन विभाग में या परंपरा नहीं है। प्रतिस्पर्धियों का कहना है कि सभी डीएफओ को अपने वन मंडल के प्रत्येक टेंडर विभागीय वेबसाइट पर अपलोड करें।
चहेती फर्म को उपकृत करने जोड़ देते हैं नई शर्तें
- 10 प्रकार के आईएसओ सर्टिफिकेट। वैसे यह सर्टिफिकेट केवल ऑफिस मैनेजमेंट के लिए जारी किया जाता है। इसका प्रोडक्ट से कोई लेना-देना नहीं रहता।
- 50 लाख तक के वर्क आर्डर पर 3 से 5 करोड रुपए का टर्नओवर मांगा जा रहा है। जो कि लघु एवं मध्यम उद्यमी कैसे पूरी कर सकता है?
- इपीएफओ का प्रमाण पत्र तब जारी किया जाता है जब किसी भी संस्था में 20 से अधिक कर्मचारी काम करते हो और उनका प्रोविडेंट फंड कटता हो। छोटे और मध्यम सप्लायर इसे कैसे पूरी कर सकते हैं.?
- हर टेंडर को विभाग की अधिकृत वेबसाइट पर अपलोड किया जाना चाहिए।
फंड बंटवारे को लेकर दो अफसर भिड़ चुके
विभाग में फंड बंटवारे को लेकर दो सीनियर अधिकारी भिड़ चुके हैं। पीसीसीएफ कैंपा महेंद्र सिंह धाकड़ की पदस्थापना के पहले तक फॉरेस्ट प्रोटक्शन को लेकर कैंपा से फंड संरक्षण शाखा को रिलीज किया जाता था और फिर संरक्षण शाखा डीएफओ की मांग के आधार पर वितरित करता था। धाकड़ ने इस परंपरा को बदल दिया। अब वह प्रोटेक्शन की राशि भी स्वयं जारी करते हैं। पूर्व में पीसीसीएफ प्रोटेक्शन रहे अजीत श्रीवास्तव ने इसका पुरजोर विरोध किया था और तीखा पत्र भी लिखा था, लेकिन बात नहीं बनी। मुद्दे को लेकर एक बैठक में तो दोनों के बीच तीखी बहस भी हुई पर तत्कालीन वन बल प्रमुख आरके गुप्ता ने पीसीसीएफ कैंपा धाकड़ का साथ दिया। हालांकि अजीत श्रीवास्तव जल्द ही रिटायर हो गए। मौजूदा पीसीसीएफ प्रोटेक्शन डॉ दिलीप कुमार किंकर्तव्यविमुढ़ की स्थिति में है और वह सेवानिवृत्ति के दिन गिन रहे हैं। विभाग में चर्चा है कि पीसीसीएफ कैंपा महेन्द्र धाकड़ फाइनेंस कंपनी की तरह फंड रिलीज़ करते हैं। वे तो एक उच्च स्तरीय बैठक में यहां तक कह चुके हैं कि कैम्पा शाखा स्वायत्त संस्था है।
ब्लैक लिस्ट फर्म कर रही हैं अभी भी धंधा
वन विभाग में अलग-अलग वन मंडलों में कई फर्म को ब्लैक लिस्ट कर दिया गया है। इसके बाद भी ब्लैक लिस्ट फर्म अपने राजनीतिक रसूख के दम पर सामग्री की सप्लाई कर रही हैं। इसकी वजह भी साफ है कि वन विभाग में ऐसी कोई भी व्यवस्था नहीं है, जहां ब्लैक लिस्ट की गई फर्म को अन्य वन मंडलों में मैसेज कर धंधा करने से रोका जाए। वैसे पीडब्ल्यूडी जल संसाधन और अन्य विभागों में ऐसी व्यवस्था है कि ब्लैक लिस्ट फर्म की सूची बनाकर मैदानी अफसरों को भेजा जाता है और उन्हें निर्देशित किया जाता है कि इनसे कोई भी वर्क आर्डर न दिया जाए।
कमीशन बाजी के खेल में प्रमुख संस्थाएं
प्रखर इंटरप्राइजेज इंदौर, तिरुपति इंजीनियरिंग वर्क बालाघाट, जबलपुर वायरस जबलपुर, श्री विनायक स्टील इंदौर, राजपूत फेसिंग पोल भोपाल, अरिहंत मेटल (नाहटा), लकी इंडस्ट्रीज इंदौर, आकांक्षा इंडस्ट्रीज विदिशा, नवकार ग्रेनाइट मंदसौर, बीएम मार्केटिंग वर्कर्स इंदौर, शारदा बारबेड वायर एंड स्टील प्रोडक्ट मंडला, कृष्णा इंटरप्राइजेज छिंदवाड़ा, शारदा सीमेंट पाइप मंडला, ताप्ती एक्वा इंडस्ट्रीज बैतूल, शिल्पा कूलर छिंदवाड़ा, अपहरि प्लास्टिक बिलासपुर और गुरु माया इंडस्ट्रीज इटारसी।