कमलनाथ के नेतृत्व में ऐतिहासिक हार ने ,कांग्रेस को उप्र की तरह रसातल में धकेल दिया
भोपाल। मप्र में कांग्रेस नेता जमीनी नब्ज से बेखबर कैबिनेट बना रहे थे. पीसीसी पर बधाई के होर्डिग लगा रहे थे.
नकुलनाथ चुनावी अभियान में 7 दिसंबर को उनके पिता कमलनाथ के मुख्यमंत्री की शपथ समारोह के लिए निमंत्रण बांट रहे थे। कांग्रेस नेताओं में इतनी गलतफहमी कैसे आई, इस पर शोध की जरूरत है। कमलनाथ ने मध्यप्रदेश की कांग्रेस को यूपी के रास्ते पर डाल दिया है. यह ढलान उत्तर भारत में कांग्रेस के रहे-सहे वजूद को भी रसातल पर पहुंचा देगा।
बुढ़ापे में CM की कुर्सी से प्यार कमलनाथ और कांग्रेस को ही ले डूबा। अगर किसी युवा को नेतृत्व का मौका दिया गया होता तो इतनी शर्मनाक हार शायद नहीं होती। कमलनाथ के इर्द-गिर्द सलाहकारों और दिग्विजय सिंह और सुरेश पचौरी जैसे चूके हुए नेताओं की प्रवीणता का ऐसा जाल बन गया था कि कमलनाथ को सच्चाई दिखाई ही नहीं पड़ रही थी। सपनों का महल ऐसा बना लिया गया था कि ‘जय जय कमलनाथ’ के अलावा कांग्रेसी विचारधारा के लोग भी नाशुक्रे लगने लगे थे।
कमलनाथ की छिंदवाड़ा से जो राजनीति शुरू हुई थी, वह राजनीति छिंदवाड़ा से ही खत्म होती दिखाई पड़ रही है। अभी भी वक्त है। उम्र के आखिरी पड़ाव पर अगर सच्चाई स्वीकार कर ली जाएगी तो जिंदगी का आखिरी दौर सुकून से बीत सकेगा अन्यथा चाटुकारों और सलाहकारों की गलतफहमी तो सब कुछ समाप्त ही कर देती है। कांग्रेस की हार ने यह भी साबित कर दिया है कि 2018 में कांग्रेस को जो भी बहुमत मिला था उसमें ज्योतिरादित्य सिंधिया का योगदान था।
पार्टी की नहीं, कमलनाथ -दिग्विजय की हार
बीजेपी के 18 साल की सरकार के बाद भी कांग्रेस की पराजय नहीं बल्कि कमलनाथ- दिग्विजय सिंह जोड़ी की ही हार है. मध्यप्रदेश को लेकर दो दिन पहले जब एग्जिट पोल आए थे, तब सबसे ज्यादा विवाद कांग्रेस द्वारा पैदा किया गया था। एग्जिट पोल वाली एजेंसी और उनके मालिकों को ऐसा साबित कर दिया गया था कि जैसे उन्होंने सरकार से पैसा लेकर एग्जिट पोल बीजेपी के पक्ष में दिखाया है। सोशल मीडिया में तो यहां तक लिखा गया कि एग्जिट पोल में बीजेपी की प्रचंड जीत दिखाने वाली एजेंसियों को सरकार के जनसंपर्क विभाग द्वारा करोड़ों रुपए की मदद दी गई है। विभाग के नाम पर चैनल की एक सूची भी सोशल मीडिया पर वायरल की गई। कांग्रेस और कांग्रेस समर्थित मीडिया से जुड़े लोग इस हद तक एक तरफा निर्णय सुना रहे थे कि जनसंपर्क के कुशल अधिकारियों की कार्य पद्धति को भी सवालों में खड़ा कर दिया था।