केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने 263वीं शौर्य दिवस पर किया अपने मराठा पुरखों को याद, सोमनाथ मंदिर व काशी विश्वनाथ पर भी कही बड़ी बात।
Big talk was also said on Somnath temple and Kashi Vishwanath.
संतोष सिंह तोमर
नई दिल्ली। केंद्रीय नागरिक उड्डयन व स्टील मंत्री श्री ज्योतिरादित्य सिंधिया पानीपत में प्रतिवर्ष आयोजित होने वाले कार्यक्रम ” पानीपत शौर्य दिवस ” में शामिल होने पहुँचे। वहाँ पहुँच सर्वप्रथम उन्होंने सर्वप्रथम शौर्य स्मारक तीर्थ धाम, काला अम्ब में सिंधिया व मराठा योद्धाओं को श्रद्धा सुमन अर्पित किया।केंद्रीय मंत्री ने अपने अभिभाषण की शुरुआत में पानीपत के लोगों को अपना परिवार बताया। उन्होंने कहा इस जगह से उनका भावनात्मक सम्बंध है क्यूँकि केवल मेरे पूर्वज नहीं 60 हज़ार से अधिक मराठा विदेशी आक्रांताओं के ख़िलाफ़ चट्टान की तरह खड़े रहे और प्राण जाए पर वचन ना जाए इस विचार से उन्होंने अपने प्राण की आहुति दी। केंद्रीय मंत्री ने कहा, शिवाजी महाराज ने 12 वर्ष की उम्र में प्रण लिया था ना रुकने ना झुकने का जब तक एक एक विदेशी आक्रांताओं को देश से निकाल ना फेंकेंगे। केंद्रीय मंत्री ने ये भी कहा आज से 400 वर्ष पूर्व शिवाजी महाराज की अपनी नौसेना कोंकण क्षेत्र में बना रखी थी जो फ्रेंच और अंग्रेजो से 10 गुणा अधिक शक्तिशाली थी।
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ़ केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कहा आज मेरा सीना मराठा होने के नाते गर्व से फूल जाता है और आज़ादी के 75 वर्ष बाद किसी ने शिवाजी महाराज को उचित सम्मान देने का कार्य किया है तो देश के पंत प्रधान नरेंद्र मोदी जी है जिन्होंने भारत के नौसेना के झंडे पर शिवाजी महाराज के मोहर निशान को डालने का कार्य किया है।सांभाजी महाराज और बाज़ीराव पेशवा की वीरता को किया याद केंद्रीय मंत्री ने कहा 1680 में शिवाजी महाराज नहीं रहे तो विदेशी आक्रांताओं को लगा की भारत की रक्षा करने वाला अब कोई बड़ी ताक़त नहीं है लेकिन उसी घर से संभाजी महाराज ने लोहा लिया। संभाजी महाराज ने औरंगज़ेब के विरुद्ध लड़ाई लड़ी, बारम्बार औरंगज़ेब की सेना को परस्त किया। 1690 में औरंगज़ेब ने वीर संभाजी महाराज की हत्या की और नदी में शरीर को डाल दिया लेकिन फिर भी वीर मराठाओं ने युद्ध जारी रखा। संभाजी महाराज के बाद बाज़ीराव पेशवा ने कमान सम्भाली और उन्होंने एक भी युद्ध नहीं हारा। केंद्रीय मंत्री ने कहा मराठाओं ने कभी अपना साम्राज्य नहीं बनाया, कभी देश पर राज करने की नहीं सोची, एक ही कार्य किया वह है देश सेवा ।
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केंद्रीय मंत्री ने कहा महाराष्ट्र के छोटे से गांव कनेरखेड़, उस गांव से संभाजी शिंदे, जनकोजीराव शिंदे, दत्ता जी शिंदे को पेशवा ने पुणे से उत्तर भारत की तरफ़ भेजा। संभाजी महाराज के नेतृत्व में लाहौर में और बाद में पेशेवर में मराठाओं का भगवा ध्वज फहराया। केंद्रीय मंत्री ने कहा यह मराठाओं का अलख था की कोई विदेशी आक्रांता स्वप्न भी ना देख पाए भारत में राज करने की, शिवाजी के यही था हिंदवी स्वराज, भारत माता की भूमि केवल भारतीयों की होनी चाहिए।1755 में दत्ताजी महाराज इसी बगल के बुरारी घाट पर अफ़ग़ानों और रोहिल्लाओ से युद्ध लड़ रहे थे।मराठाओं ने सदैव सिखों का साथ दियाकेंद्रीय मंत्री ने कहा सदैव सीखो का साथ दिया है। अहमद शाह अफ़ग़ानी को पंजाब से धूल चटाने का काम किसी ने किया तो वो मराठा सेना ने किया। पंजाब में अहमद शाह अफ़ग़ानी ने नरसंहार किया तो सिख समाज के साथ मिलकर मराठों ने मिलकर लड़ाई लड़ी है।
पानीपत में तीन घंटे 8000 अफ़ग़ानो का वध मराठा सेना ने कियाकेंद्रीय मंत्री मराठाओं को गाथा सुनाते हुए बताया कैसे पानीपत के युद्ध में तीन घंटे के अंदर 8000 अफ़ग़ानों को समाप्त करने का कार्य मराठा सेना ने किया। केंद्रीय मंत्री ने बताया इस युद्ध में सिंधिया के 16 वंशज युद्ध के मैदान में थे। अफ़ग़ानों और रोहिल्लाओ की टुकड़ी के पीछे ऊँट पर छोटे टोप की टुकड़ी लगा दी जो सीधे हमला कर रहे थे। सिंधिया के 16 में 15 वंशज सीधे लड़े और शहीद हुए। एक सिंधिया वंशज महादजी सिंधिया घायल रूप बचे और 11 साल के भीतर एक चिंगारी से ज्वालामुखी के रूप में परिवर्तित होकर अटक से कटक और दिल्ली में भी मराठा का भगवा झंडा दिल्ली के फहराया।
काशीविश्वनाथ मंदिर को स्थापित करने का कार्य सिंधियाओ ने कियाकेंद्रीय मंत्री ने अपने अभिभाषण में कहा की सिंधियाओ ने धार्मिक स्थलों के भी दोबारा स्थापना करने का काम किया। गुजरात के सोमनाथ मंदिर के द्वार विदेशी आक्रांता इल्तुमिश लहोर ले गए तो लाहौर से दरवाज़े को वापस लाने का काम महादजी महाराज ने किया। महादजी के वंशज बैजाबाई महारानी अहिल्या बाई होलकर जी ने वाराणसी के काशीविश्वनाथ मंदिर को पुनर्स्थापना करने का कार्य किया। भारत की संस्कृति को उजागर करने का काम मराठाओं ने किया और आज देश के प्रधानमंत्री एक भारत श्रेष्ठ भारत व वासुदेव कुटुम्बकम, विविधता में एकता की विचार धारा, एवं भारत की केवल आर्थिक शक्ति नहीं बल्कि आध्यात्मिक शक्ति को विश्व पटल पर उजागर करने का कार्य कर रहे है।