जनगणना 2025: नई चुनौतियाँ और राजनीतिक रणनीतियाँ
Census 2025: New challenges and political strategies
केंद्र सरकार ने देश में जनगणना कराने की पूरी तैयारी कर ली है। यह प्रक्रिया अगले साल से शुरू होकर एक साल में पूरी होगी और 2026 में इसके आंकड़े सार्वजनिक किए जाएंगे। इस जनगणना में एक महत्वपूर्ण बदलाव यह है कि इस बार सर्वे में सम्प्रदाय की जानकारी भी पूछी जाएगी, जिससे देश के विभिन्न सम्प्रदायों की जनसंख्या के आधार पर योजनाएं बनाई जा सकेंगी। जनगणना में कुल 30 सवाल शामिल होंगे, जो पिछली 2011 की जनगणना में पूछे गए 29 सवालों से एक अधिक है।
देरी के कारण और नई समय-सीमा
यह जनगणना 2021 में ही होनी थी, लेकिन कोरोना महामारी के चलते इसे स्थगित करना पड़ा। इसके बाद लोकसभा चुनावों के चलते इसे और आगे बढ़ाया गया। अब सरकार ने इस पर तेजी से कदम बढ़ा दिए हैं, क्योंकि जनगणना के आंकड़ों के आधार पर ही लोकसभा और विधानसभा सीटों का परिसीमन किया जाएगा, जो 50 वर्षों से रुका हुआ है।
संप्रदाय आधारित सवालों का राजनीतिक महत्व
इस बार जनगणना में शामिल किए गए सम्प्रदाय आधारित सवाल विशेष चर्चा का विषय हैं। जनगणना में कबीरपंथी, रविदासी, दलित बौद्ध और अन्य सम्प्रदायों के बारे में पूछा जाएगा। इसके पीछे उद्देश्य केवल आंकड़े इकट्ठा करना नहीं है, बल्कि इन आंकड़ों के आधार पर सरकारी योजनाओं को बेहतर बनाना और समाज में राजनीतिक समीकरणों को समझना है।
विशेषज्ञों का मानना है कि सम्प्रदाय आधारित आंकड़े राजनीतिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण हो सकते हैं, क्योंकि यह राजनीतिक दलों को इन सम्प्रदायों के आधार पर नीतियां बनाने और समर्थन प्राप्त करने में सहायता कर सकते हैं।
परिसीमन और महिला आरक्षण
2029 में लोकसभा सीटों में वृद्धि और महिला आरक्षण की संभावनाओं के चलते यह जनगणना और भी महत्वपूर्ण हो गई है। परिसीमन के आधार पर सीटों के पुनर्गठन से भारत के जनसांख्यिकीय बदलावों का सीधा असर चुनावी सीटों पर पड़ेगा, जो विभिन्न राज्यों के राजनीतिक परिदृश्य को भी प्रभावित करेगा।
जाति जनगणना पर चुप्पी
हालांकि जाति जनगणना पर अभी भी स्थिति स्पष्ट नहीं है, लेकिन सूत्रों के अनुसार सम्प्रदाय की जानकारी पूछे जाने की तैयारी चल रही है। इससे राजनीतिक लाभ के साथ-साथ योजनाओं के क्रियान्वयन में भी सहयोग मिलेगा। जनगणना के आंकड़ों के आधार पर समाज के विभिन्न वर्गों की आवश्यकताओं और उनकी जनसंख्या के अनुपात को समझने में सहायता मिलेगी, जिससे विकास कार्यों में पारदर्शिता आएगी।
आगामी जनगणना न केवल देश की जनसांख्यिकी को समझने का एक साधन होगी, बल्कि इसके माध्यम से राजनीतिक दलों को नई योजनाएं और विकास की दिशा तय करने का आधार मिलेगा। इस बार जनगणना के व्यापक परिणाम, भारतीय राजनीति और समाज दोनों पर गहरे असर डाल सकते हैं।
इस बार जानकारी में लोगों से उनका संप्रदाय भी पूछा जाएगा। कबीरपंथी, रविदासी, दलित बौद्ध समेत देश के अलग-अलग राज्यों में कई संप्रदाय हैं। ऐसे में संप्रदाय भी राजनीति का एक बड़ा आधार हो सकता है। इस तरह 30 सवाल जनगणना में पूछे जाएंगे।
ये हैं वो सवाल जिनका जवाब हर घर से लिया जाएगा
व्यक्ति का नाम।
परिवार के मुखिया से संबंध?
लिंग?
जन्मतिथि और आयु?
मौजूदा वैवाहिक स्थिति?
शादी के वक्त उम्र?
धर्म?
संप्रदाय?
अनुसूचित जाति या जनजाति?
दिव्यांगता (यदि हो तो)
मातृभाषा कौनसी?
कौन-कौन सी भाषाओं का ज्ञान?
साक्षरता की स्थिति क्या?
मौजूदा शैक्षणिक स्थिति
उच्चतम शिक्षा कितनी?
बीते साल का रोजगार?
आर्थिक गतिविधि की श्रेणी?
रोजगार?
उद्योग की प्रकृति, रोजगार एवं सेवाएं?
वर्कर्स की क्लास?
गैर-आर्थिक गतिविधि ?
कैसे रोजगार की चाह?
काम पर जाने का माध्यम?
(i) एक तरफ से दूरी।
(ii) यात्रा का माध्यम।
जन्म मूल स्थान पर ही हुआ या फिर कहीं और (दूसरे देश में हुआ हो तो उसका नाम)
मूल स्थान पर हैं या पलायन किया?
(a) क्या भारत में ही पलायन किया?
(b) किस समय पलायन किया?
मूल स्थान से पलायन का कारण?
कितनी संतान?
(a) बेटे कितने ?
(b) बेटियां कितनी?
जन्म लेने वाले कितने बच्चे जीवित?
(a) बेटे कितने ?
(b) बेटियां कितनी?
बीते एक साल में पैदा बच्चों की संख्या?
पलायन के बाद कितने साल से नए स्थान पर ?
पलायन से पूर्व का मूल स्थान?
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