सीएफ-डीएफओ सप्लायर्स के लिए नहीं जोड़ पाएंगे औचित्यहीन टेंडर की शर्ते

CF-DFO will not be able to add unreasonable tender conditions for suppliers
CF-DFO will not be able to add unreasonable tender conditions for suppliers
- एक समान शर्त बनाने के लिए वन बल प्रमुख ने बनाई कमेटी
उदित नारायण
भोपाल। हर वित्तीय वर्ष में 70 से 80 करोड रुपए की चैनलिंक जाली, बारवेड वायर, टिम्बर पोल्स, रूट ट्रेनर्स, मिट्टी और गोबर खाद वगैरह की खरीदी में डीएफओ और सीएफ टेंडर की शर्तों में मनमानी नहीं कर सकेंगे। वन बल प्रमुख असीम श्रीवास्तव ने पूरे प्रदेश में एक समान शर्तें लागू करवाने के लिए एक कमेटी गठित कर दी है। कमेटी को 7 दिन में अपनी रिपोर्ट प्रधान मुख्य वन संरक्षक विकास को सौंपने के निर्देश दिए हैं।
वन बल प्रमुख असीम श्रीवास्तव ने शर्तें बनाने के लिए 10 सदस्य कमेटी गठित की है। दिलचस्प पहलू यह है कि कमेटी में डीएफओ विजयानंतम टीआर दक्षिण बैतूल को शामिल किया गया है, जिन्होंने भी अपने वन मंडल के लिए जारी निविदा में अनावश्यक शर्तें जोड़ी हैं। इस कमेटी में उत्तम शर्मा एपीसीसीएफ सिंह परियोजना को कमेटी का अध्यक्ष बनाया गया है। शर्मा के अलावा राखी नंदा सीएफ सामाजिक वानिकी, राजेश राय सीएफ रीवा, कमल अरोरा सीएफ जबलपुर, आलोक पाठक सीएफ वन मंडल भोपाल, बृजेंद्र श्रीवास्तव सीएफ वन मंडल पूर्व छिंदवाड़ा, प्रदीप मिश्रा डीएफओ देवास, विजयानंतम टीआर दक्षिण बैतूल और नीथ्यानंतम डीएफओ पश्चिम मंडला को बतौर सदस्य शामिल किया है। उल्लेखनीय है कि वन बल प्रमुख और पीसीसीएफ को लगातार शिकायतें मिल रही थी कि फील्ड में पदस्थ डीएफओ और सीएफ चहेते सप्लायर्स को वर्क आर्डर देने के लिए उनके मुताबिक निविदा में शर्तें जोड़ रहे हैं। इनमें ऐसी भी शर्तें जोड़ी गई, जो अनावश्यक होती है। मसलन, 10 प्रकार के आईएसओ और इपीएफओ का प्रमाण पत्र। आईएसओ की शर्तों को लेकर जब पीसीसीएफ विकास यूके सुबुद्धी ने कतिपय डीएफओ जब आईएसओ और इपीएफओ का प्रमाण पत्र के औचित्य पर सवाल किए तब टेंडर निरस्त कर दिए गए। इनमें से कुछ डीएफओ तो अभी भी अपनी मनमानी पर अड़े हुए हैं।
सरकार के निर्देशों की अवहेलना
राज्य सरकार के स्पष्ट निर्देश है कि वायरवेट, चैनलिंक और पोल की खरीदी में लघु उद्योग निगम को प्राथमिकता दें किंतु 95% खरीदी जेम्स और ई टेंडर से हो रही है। ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि लघु उद्योग निगम की दर और जेम (GEM) की दरों में डेढ़ गुना अंतर है। यानी लघु उद्योग निगम में वायरवेट किधर 83 रुपए से लेकर 85 रुपए तक निर्धारित की गई है। जबकि जेम (GEM) में ₹150 तक है। सरकार की मंशा यह भी है कि लघु और मध्यम उद्यमियों को इस कारोबार से जोड़ा जाए। मुख्यालय से लेकर फील्ड के अफसर टेंडर की शर्तों में ऐसी शर्ते जुडवा देते हैं जिसके चलते लघु और मध्यम उद्यमी प्रतिस्पर्धा की दौड़ से बाहर हो जाते हैं।
चहेती फर्म को उपकृत करने जोड़ दी जाने वाली शर्तें
- 10 प्रकार के आईएसओ सर्टिफिकेट। वैसे यह सर्टिफिकेट केवल ऑफिस मैनेजमेंट के लिए जारी किया जाता है। इसका प्रोडक्ट से कोई लेना-देना नहीं रहता।
- 50 लाख तक के वर्क आर्डर पर 3 से 5 करोड रुपए का टर्नओवर मांगा जा रहा है। जो कि लघु एवं मध्यम उद्यमी कैसे पूरी कर सकता है?
- इपीएफओ का प्रमाण पत्र तब जारी किया जाता है जब किसी भी संस्था में 20 से अधिक कर्मचारी काम करते हो और उनका प्रोविडेंट फंड कटता हो। छोटे और मध्यम सप्लायर इसे कैसे पूरी कर सकते हैं ?
हॉफ के आदेश का हवा में उड़ा रहे हैं डीएफओ
वन मंडलों द्वारा ई-टेंडर अथवा जेएम (GeM) के लिए वन बल प्रमुख असीम श्रीवास्तव ने नया आदेश जारी किया है। वन बल प्रमुख श्रीवास्तव के इस आदेश का अधिकांश डीएफओ पालन नहीं कर रहे हैं। इस संबंध में आईटी शाखा ने एक पत्र लिखकर हॉफ को अवगत भी कराया है। आईटी शाखा ऐसे डीएफओ की सूची भी बना रहा है, वेबसाइट पर अपलोड नहीं कर रहे हैं।
क्या है हॉफ के आदेश?
हॉफ श्रीवास्तव ने इस आदेश कहा है कि प्रति वर्ष विभाग के विभिन्न कार्यों हेतु सामग्री का क्रय जेम के माध्यम से किया जाता है। जेम के माध्यम से क्रय की जाने वाली सामग्री की जानकारी से मुख्यालय अनभिज्ञ रहता है एवं इस कारण वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा तत्समय यदि टेंडर में कोई त्रुटि होती है, वनमंडलाधिकारियों को उचित निर्देश नही दिये जा पाते। अतः भविष्य में जेम के माध्यम से क्रय की जाने वाली सामग्री का टेंडर की जानकारी/विज्ञापन विभागीय पोर्टल पर भी अपलोड किया जाना सुनिश्चित करें। दर्शन इसकी मॉनिटरिंग नहीं हो पा रही है, जिसके कारण डीएफओ अभी भी मनमानी कर रहे हैं।
18 से 20% धनराशि बंटते है कमीशन में
चालू वित्त वर्ष में जंगल महकमे में करीब 60 से 70 करोड़ रूपए की चैनलिंक, बारवेड वायर और टिम्बर पोल्स की खरीदी में बड़े पैमाने पर कमीशन बाजी का खेल खेला जा रहा है। सबसे अधिक खरीदी कैंपा फंड से की जा रही है। इसके अलावा विकास और सामाजिक वानिकी (अनुसंधान एवं विस्तार ) शाखा से भी खरीदी होती है। विभाग के उच्च स्तरीय सूत्रों की माने तो कुल रिलीज बजट की 18 से 20% धनराशि कमीशन के रूप में टॉप -टू – बॉटम बंटती है। यानि सप्लायर्स को हर साल लगभग 10-12 करोड़ कमीशन में बांटने पड़ते हैं।