कलेक्टर का बाप या सर्वर का सेवक: पटवारी की नई पहचान
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Collector’s father or server’s servant: Patwari’s new identity
कमलेश अहिरवार ( विशेष संवाददाता सहारा समाचार )
भोपाल ! मध्य प्रदेश में राजस्व महाभियान 3.0 जोर-शोर से चल रहा है, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही बयां कर रही है। योजना के 20 दिन बीत चुके हैं, लेकिन सर्वर की लचर हालत ने पटवारी और किसान दोनों को असहाय बना दिया है। एक ओर किसान फॉर्मर आईडी और पीएम किसान जैसी योजनाओं के लिए पटवारी से उम्मीद लगाए बैठा है, वहीं दूसरी ओर पटवारी सर्वर की कृपा पाने के लिए लोकसेवा केंद्र और CSC सेंटर के चक्कर काट रहा है।
पटवारी की पहचान अब सरकारी कर्मचारी से ज्यादा सर्वर का सेवक बन गई है। फॉर्मर आईडी जैसे कार्यों के लिए उन्हें घंटों इंतजार करना पड़ता है। अगर किस्मत अच्छी हो, तो दिनभर में एक या दो आईडी बन जाएं, वरना पूरे दिन की मेहनत बेकार। छः महीने पहले शुरू हुई यह प्रक्रिया आज भी अधूरी है। किसान और पटवारी दोनों इस त्रासदी को नियति मानकर चल रहे हैं।
हालत यह है कि किसान की झल्लाहट का पहला शिकार पटवारी ही बनता है। किसान जब अपनी फसल के काम छोड़कर पटवारी से बार-बार एक ही सवाल करता है—”मेरी आईडी क्यों नहीं बनी?”—तो पटवारी के पास जवाब में सिर्फ एक लाइन होती है, “सर्वर नहीं चल रहा।” लेकिन यह जवाब न किसान को संतुष्ट करता है और न ही अधिकारियों को।
जब पटवारी अपनी समस्याएं लेकर अधिकारियों के पास जाता है, तो उन्हें आश्वासन मिलता है कि सर्वर पर काम हो रहा है। लेकिन यह “काम हो रहा है” कब “काम हो गया” में बदलेगा, इसका जवाब किसी के पास नहीं। दूसरी तरफ, मंचों पर अधिकारी और नेता सर्वर की असफलताओं का ठीकरा खुलेआम पटवारियों के सिर फोड़ते हैं। “कलेक्टर का बाप” जैसे तमगे देकर वे यह भूल जाते हैं कि पटवारी सिर्फ एक माध्यम है, जो सरकार और किसान के बीच पुल बनाने का काम करता है।
योजनाओं की स्थिति और खराब हो जाती है, जब किसान का दो साल पुराना पंजीयन भी पूरा नहीं होता। सम्मान निधि योजना के तहत पैसा तो दूर, किसानों की पीएम किसान आईडी तक नहीं बन पाई। और इन सबका दोष, जैसा कि हमेशा होता है, पटवारी पर डाल दिया जाता है।
पटवारी इस पूरे तंत्र को समझ चुका है और अब इसे अपनी नियति मानकर काम कर रहा है। चाय के कप और सर्वर के इंतजार के बीच, वह यह सोचता है कि उसकी मेहनत और धैर्य का अंत कब होगा। लेकिन सर्वर के इस शासन में, पटवारी और किसान की आवाज शायद ही किसी तक पहुंचे। पटवारी, जो कभी अपने अधिकारों और कर्तव्यों का राजा था, अब सर्वर का सेवक बनकर रह गया है।