पेपर पर आ रहे इन्वेस्टमेंट… कांग्रेस ने निवेश के दावों पर उठाए सवाल, एमपी जीआईएस को लेकर गरमाई सियासत

Investments coming on paper… Congress raises questions on investment claims
भोपाल ! कांग्रेस ने शुक्रवार को मध्य प्रदेश में भाजपा सरकार द्वारा आयोजित छह ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट (GIS) पर सवाल उठाए हैं। कांग्रेस का आरोप है कि इन आयोजनों में बड़ी-बड़ी घोषणाएं तो हुईं, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही है। कांग्रेस ने दावा किया कि इन समिट में राज्य का पैसा पानी की तरह बहाया गया, लेकिन निवेश नाममात्र का ही आया।
भाजपा ने इन आरोपों को सिरे से खारिज करते हुए कहा कि उनकी सरकार में ही मध्य प्रदेश ने बीमारू राज्य का ठप्पा छोड़ा है और अब सभी क्षेत्रों में तरक्की कर रहा है। यह बहस मोहन यादव सरकार के पहले जीआईएस के ठीक पहले छिड़ी है, जिसका उद्घाटन 24 और 25 फरवरी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी करेंगे।
कांग्रेस ने जारी किए आंकड़े
कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी और नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार ने संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस में ‘मध्य प्रदेश निवेश सम्मेलन: वादे, दावे और हकीकत’ नामक एक दस्तावेज भी जारी किया। इस दस्तावेज में कांग्रेस ने आंकड़ों के साथ अपने दावों को पुख्ता करने की कोशिश की है।
क्या बोले जीतू पटवारी
जीतू पटवारी ने कहा कि मोहन यादव की सरकार में खूब खर्चा हो रहा है। पिछले छह सम्मेलनों की तरह इस बार भी करोड़ों रुपये खर्च करके उद्योगपतियों और निवेशकों की मेहमाननवाजी की जा रही है। सरकारी खजाना ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट के नाम पर खाली किया जा रहा है।
नेता प्रतिपक्ष ने भी साधा निशाना
उमंग सिंघार ने आरोप लगाया कि सरकार हर महीने 5000 करोड़ रुपये से ज्यादा का कर्ज लेती है। जीआईएस पर बेतहाशा पैसा खर्च कर रही है। सिंघार ने कहा कि लेकिन अगर हम 2003 से अब तक के 6 ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट का रिकॉर्ड देखें, तो जमीनी स्तर पर सफलता दर शून्य प्रतीत होती है। उन्होंने आगे कहा कि 2003 से 2016 तक पहले पांच निवेशक सम्मेलनों में 17.50 लाख करोड़ रुपये से अधिक के निवेश प्रस्तावों का दावा किया गया था। इसके बाद 2023 में इंदौर में हुए ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट में शिवराज सिंह चौहान सरकार ने लगभग 15.40 लाख करोड़ रुपये के निवेश का दावा किया। यानी लगभग 32 लाख करोड़ रुपये का निवेश मध्य प्रदेश की धरती पर आने का दावा किया गया। जबकि हकीकत यह है कि 2003 से 2023 तक केवल 3.47 लाख करोड़ रुपये ही आए, जो सरकार द्वारा प्राप्त कुल निवेश प्रस्तावों का केवल 10% है।