November 21, 2024

संगठन शास्त्र की सगुण मूर्ति कुशाभाऊ ठाकरे –सुरेन्द्र शर्मा

2
Kushabhau Thackeray, the embodiment of organization science – Surendra Sharma

Kushabhau Thackeray, the embodiment of organization science – Surendra Sharma

Kushabhau Thackeray, the embodiment of organization science – Surendra Sharma

जन्मदिवस (श्री कृष्ण जन्माष्टमी पर विशेष)
भारतीय जनता पार्टी 18 करोड़ से अधिक सदस्यों के साथ आज भारत ही नहीं विश्व की सबसे बड़ी पार्टी बन गई है लगातार तीसरी बार केंद्र में भारतीय जनता पार्टी की सरकार है तो मध्य प्रदेश सहित देश के 21 राज्यों में भी भाजपा एवं उसके सहयोगी दलों की सरकार हैं संपूर्ण भारत के कोने-कोने तक आज कमल पुष्पित एवं पल्लवित हो रहा है भारतीय जनता पार्टी रूपी इस विशाल भवन को तैयार करने में जो नींव के पत्थर हैं उनमें शशिकांत सुंदर राव ठाकरे उपाख्य “कुशा भाऊ ठाकरे” अग्रणी हैं।
राजा भोज की प्राचीन नगरी धार में 15 अगस्त 1922 को जन्माष्टमी के पावन पर्व पर डॉक्टर सुंदर राव ठाकरे एवं श्रीमती शांताबाई ठाकरे के घर एक बालक ने जन्म लिया जो अपनी प्रतिभा विनय शीलता और राष्ट्र को समर्पित व्यक्तित्व के कारण देश के लाखों कार्यकर्ताओं का चहेता कुशाभाऊ बन गया ।
कुशा भाऊ के पिताजी एवं माताजी अपने सादा जीवन उच्च विचार तथा गरीबों की चिकित्सा के लिए विख्यात थे ।
अपने अपने छात्र जीवन से ही कुशा भाऊ ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के लिये जीवनदान करने का संकल्प लिया जिससे वह कभी नहीं डिगे ।
1938 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक बने धार में हाई स्कूल की शिक्षा प्राप्त कर 1939 में ग्वालियर के विक्टोरिया कॉलेज (वर्तमान में महारानी लक्ष्मी बाई महाविद्यालय) में प्रवेश लिया ।इंटर की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद उन्हें मेडिकल कॉलेज या संघ कार्य में से एक विकल्प चुनने को कहा गया उन्होंने संघ कार्य को चुना । 5 जुलाई 1942 को डाक्टरी की पढ़ाई का मोह छोड़कर देश सेवा करने के लिए वह संघ के प्रचारक बन गये।
ठाकरे जी की उच्च शिक्षा ग्वालियर से हुई उन्होंने नीमच से अपने प्रचारक जीवन की शुरुआत की उसके बाद रतलाम विभाग प्रचारक उज्जैन विभाग प्रचारक रहे 1951 में जनसंघ के गठन के साथ ही उन्हें दक्षिण मध्य भारत के संगठन मंत्री का दायित्व दिया गया 1956 में जब मध्य प्रदेश बना तो उन्हें संपूर्ण मध्य प्रदेश के संगठन मंत्री की जिम्मेदारी दी गई 1967 में वह जनसंघ के अखिल भारतीय मंत्री के साथ-साथ उड़ीसा एवं गुजरात के प्रभारी भी बने 1974 में उन्हें अखिल भारतीय संगठन मंत्री बनाया गया 1975 में जब आपातकाल लगा तब अन्य विपक्षी नेताओं के साथ ठाकरे जी को भी जेल में बंद कर दिया गया वह 19 माह तक जेल में बंद रहे उसके बाद 1977 में जनता पार्टी का गठन हुआ और ठाकरे जी मध्य प्रदेश के पहले अध्यक्ष बने 1979 में खंडवा लोकसभा उपचुनाव में पार्टी ने उन्हें प्रत्याशी बनाया और वह विजयी हुये।
ठाकरे जी 1980 से 1984 तक भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय मंत्री तथा गुजरात एवं उड़ीसा व मध्य प्रदेश के प्रभारी रहे 1984 से 1986 तक राष्ट्रीय उपाध्यक्ष 1986 से 1992 तक राष्ट्रीय महामंत्री तथा उत्तर प्रदेश एवं मध्य प्रदेश के प्रभारी भी रहे 1992 में उन्हें राष्ट्रीय संगठन महामंत्री की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी गई 1998 में श्री लालकृष्ण आडवाणी ने संगठन के आदर्शों का पालन करते हुए लगातार तीसरी बार अध्यक्ष बनने से इनकार कर दिया तब पार्टी के सामने आडवाणी जी के उत्तराधिकारी का प्रश्न था स्वाभाविक तौर पर सभी को कुशा भाऊ इस जिम्मेदारी के लिए उपयुक्त लगे और 14 अप्रैल 1998 को उन्हें भारतीय जनता पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष चुन लिया गया ।
अपनी पढ़ाई के दौरान ठाकरे जी स्वामी विवेकानंद के विचारों से अत्यधिक प्रभावित हुए विवेकानंद के साहित्य ने उनकी जीवन धारा में मानवता,उष्मता त्याग, समर्पण,संवेदनशीलता की जो धारा प्रवाहित की वह उनमें जीवन भर अविरल बहती रही ।
देश भक्ति ठाकरे जी में कूट-कूट कर भरी हुई थी जब वह ग्वालियर के विक्टोरिया महाविद्यालय (वर्तमान में महारानी लक्ष्मीबाई महाविद्यालय) में पढ़ाई कर रहे थे उसे समय महाविद्यालय के सभागार में मंच के ऊपर दोनों तरफ यूनियन जैक (ब्रिटिश ध्वज) लगे हुए थे ठाकरे जी एवं उनके मित्रों ने यूनियन जैक हटा दिया इस घटना से सनसनी फैल गई खूब-खोज बीन हुई लेकिन कुछ पता ना चल सका क्योंकि “पूर्व योजना पूर्ण योजना ” ठाकरे जी की कार्यशैली की विशेषता थी इससे उत्साहित होकर ठाकरे जी एवं उनके मित्रों ने कॉलेज लाइब्रेरी से महारानी विक्टोरिया एवं जॉर्ज पंचम के चित्र हटाने का निर्णय लिया निर्धारित योजना अनुसार यह काम भी संपन्न हो गया इस कांड की सख्ती से जांच हुई किंतु सीआईडी भी कुछ पता ना लगा सकी।इस घटना के बाद ठाकरे जी एवं उनके मित्रों ने एक प्रतिज्ञा पत्र लिखा और रक्त से हस्ताक्षर कर देश की स्वतंत्रता के लिए आजीवन लड़ने का संकल्पलिया ।
ठाकरे जी के पिताजी उन्हें डॉक्टर बनाना चाहते थे घर की आर्थिक स्थिति मेडिकल की पढ़ाई का बोझ उठाने की नहीं थी होल्कर रियासत से छात्रवृत्ति मिल सकती थी किंतु रियासत के अधिकारी की शर्त थी कि अगर रियासत की छात्रवृत्ति चाहिए तो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को छोड़ना होगा ठाकरे जी ने स्पष्ट उत्तर दिया “श्रीमान जी संघ तो मेरी आस्था का विषय है श्रद्धा का विषय है उसे मैं किसी कीमत पर नहीं छोड़ सकता ” संघ ठाकरे जी की आत्मा थी जिससे उनके साथ तव छूटा जब काया पंचभूत में विलीन हो गई ।
व्यक्तिगत सुख सुविधा की दृष्टि से अलग-अलग घरौंदा बनाने की साधारण मानव की अभिलाषा उनके मन को छू भी ना सकी थी मां भारती की गोद यही उनका घर ईश्वर प्रदत्त नील गगन यही उनका छप्पर, भारत के समस्त नर नारी उनके भाई-बहन उनके सहोदर सगे संबंधी देश की एकता अखंडता स्वतंत्रता यही उनके मन की धुन समाज के हर व्यक्ति की खुशहाली के लिए अपना जीवन का हर पल दांव पर लगाना यही उनके मन की एक मात्र इच्छा आकांक्षा थी ।अपनी समग्र प्रतिभा,कर्म चेतना और जीवन का सब कुछ देश को न्योछावर करना यही भावना उनके मन में थी “राष्ट्रकाज कीजे बिना मोहि कहां विश्राम “की धुन उन्हें हमेशा लगी रहती थी ।
जिस जिस निरपेक्ष और निस्वार्थ बुद्धि से उन्होंने अपने आप को संगठन के कार्य के लिए समर्पित किया था उसके कारण वह समस्त कार्यकर्ताओं का विश्वास अर्जित करने में सफल हुए थे कि “ठाकरे जी जो कुछ कहेंगे जो कुछ करेंगे वह संगठन हित में ही होगा उनका अपना कुछ है ही नहीं और जो कुछ है वह संगठन है “।
संगठन के प्रति पूर्ण समर्पण के कारण ही कुशा भाऊ संगठन को अपनी जटिल परिस्थितियों से बाहर ला सके और संगठन को एक सशक्त विकल्प के रूप में मध्य प्रदेश में खड़ा कर सके
मध्य प्रदेश का संगठन आज देश भर में एक आदर्श संगठन के रूप में जाना जाता है एक आदर्श कार्यपद्धति मध्य प्रदेश भाजपा की पहचान बन चुकी है इसे बनाने में कुशाभाऊ ठाकरे की दिन रात की मेहनत ही है कुशा भाऊ ठाकरे के साथ जिन लोगों ने मध्यप्रदेश में काम किया उनमें पूर्व प्रधानमंत्री स्व.अटल बिहारी वाजपेयी, स्व.राजमाता विजया राजे सिंधिया, स्वर्गीय सुंदरलाल पटवा, स्वर्गीय वीरेंद्र कुमार सकलेचा ,स्वर्गीय कैलाश जोशी ,स्वर्गीय बाबूलाल गौर स्वर्गीय लक्ष्मी नारायण पांडे ,स्वर्गीय प्यारेलाल खंडेलवाल ,श्री सत्यनारायण जटिया, श्रीमती सुमित्रा महाजन श्री विक्रम वर्मा ,सुश्री उमा भारती,श्री रघुनंदन शर्मा जैसे उस दौर के वरिष्ठ नेता हैं ।मध्य प्रदेश कीआज की भारतीय जनता पार्टी की प्रथम पीढ़ी श्री शिवराज सिंह चौहान ,श्री नरेंद्र सिंह तोमर ,श्री मोहन यादव, श्री कैलाश विजयवर्गीय, श्रीप्रहलाद पटेल ,श्री गोपाल भार्गव ,छत्तीसगढ़ भाजपा के श्री नंद कुमार सहाय, श्री रमन सिंह श्री, बृजमोहन अग्रवाल ,श्री प्रेम प्रकाश पांडे,जैसे अनेक नेता स्वर्गीय कुशा भाऊ ठाकरे जी द्वारा तराशे गए वह हीरे हैं जो राजनीति में अपनी चमक बिखेर रहे हैं
आज मध्य प्रदेश सहित संपूर्ण देश में भारतीय जनता पार्टी के सामर्थ्य के पीछे ठाकरे जी की तपस्या उनकी निरंतर सक्रियता निस्वार्थ पारदर्शी व्यवहार त्यागमय समर्पित जीवन ही सबसे बड़ा कारण रहा है ।उनकी आंखों में सदैव एक सपना तैरता था जिसमें एक संगठित राष्ट्र सशक्त समाज के लिए समर्पित लोगों के हाथों में सेवा उन्मुख सत्ता के सूत्र की कामना थी और एक ऐसी सत्ता की कल्पना उनकी आंखों में सदैव झांकती थी जो समाज हितवद्ध हो ,बनवासी ,
गिरीवासी,आदिवासी ग्रामीण कमजोर और निरीह नागरिकों को स्वावलंबी बना सके।।
ठाकरे जी के जीवन की एक खास बात है थी कि वह अपने प्रियता और अप्रियता दोनों ही प्रकट नहीं करते थे उसी प्रकार मिलते थे वैसे ही बात करते थे प्रत्येक व्यक्ति से सामान स्नेह करते थे उन्हें कोई प्रिय नहीं कोई अप्रिय नहीं था हां व्यक्ति का चरित्र, कर्मठता और समर्पण उनके विश्वास की पहली प्राथमिकता थी।
कुशा भाऊ के के उदार तथा उत्थान की क्षमता पारस से अधिक थी पारस तो लोहे को केवल सोना बनता है कुशा भाऊ ऐसे पारस थे जो लोहे को भी ऐसी क्षमता प्रदान कर दे कि वह स्वयं पारस बनाकर अन्य लोहे को सोनाबना दे ।
कुशा भाऊ सादगी की प्रतिमूर्ति थे ,पूरे प्रदेश में बस से प्रवास करते थे कहीं-कहीं पैदल चलना पड़ता था जब वह प्रवास से लौटते थे तो अक्सर उनके पैरों में विवाई फटी रहती थी टूटी चप्पल को वह पांच पांच छह छह महीने जोड़कर पहनते थे ।फटी बिवाई जल्दी भर जाए इसलिए वह एक दो पैसे का मोम मंगाकर पैरों में लगाते थे और उस मोम को बिवाई में भर लेते थे जब उनसे कहा जाता था कि लोशन मरहम या ट्यूब लगा लें तो वह साफ मना कर देते थे और कहते थे आर्थिक तंगी के समय ऐसे विचार मन में नहीं लाना चाहिये।
ठाकरे जी की कार्य शैली अधिकार के बजाय आत्मीयता की थी राजनीति में बड़े होने के आडंबर के स्थान पर सरलता, सादगी, सरलता ,सहजता व सहिष्णुता उनके स्वभावगत विशेषता बन गई थी इस कारण पहली ही भेंट में कोई भी उनसे प्रभावित हुए बिना नहीं रह सका ।
संगठन के सर्वोच्च स्थान पर होने के बाद भी कुशा भाऊ ठाकरे ने यह कभी नहीं सोचा कि मैं ही सब कुछ हूं उन्होंने कार्यकर्ताओं को आदेश देने की बजाय सुझाव देने की परिपाटी का निर्माण किया अपनी बात किसी पर थोपने की बजाय कार्य करने के तरीके से कितनी और क्या लाभ हानि होगी यह बात कर उसे अपना निर्णय लेने की स्वतंत्रता देकर कार्यकर्ता का आत्मविश्वास या कार्य क्षमता बढ़ाने की योजना ,प्रयास का ही परिणाम है कि आज भारतीय जनता पार्टी के पास सक्षम कार्यकर्ताओं की लंबी श्रृंखला विद्यमान है ।
ठाकरे जी कहते थे की कोई भी कार्य करने से पहले अगर सभी लोगों से चर्चा हो जाए तो अच्छा है तथा संगठन के प्रमुख लोगों से ही नहीं वरन साथ कार्य करने वाले छोटे-छोटे कार्यकर्ताओं से विचार विमर्श कर लेना भी अच्छा रहता है,कार्यकर्ताओं को हमेशा प्रोत्साहित करते रहना मानो उनके जीवन का मूल मंत्र था ।
ठाकरे जी संदेह की बजाय विश्वास पर ज्यादा जोर देते थे उन्होंने संगठन में किसी व्यक्ति को जो भी दायित्व दिया वह पूरे विश्वास के साथ दिया उसे कार्य करने का अपना ढंग विकसित करने का पूरा अवसर दिया इतना ही नहीं यदि किसी कार्यकर्ता से कार्य के दौरान कोई त्रुटि हो जाए तो उसे हंसते-हंसते शांत भाव से अप्रत्यक्ष रूप से समझाना तथा भविष्य में सावधानी बरसाने का आग्रह करना ठाकरे जी का कौशल था।
ठाकरे जी सदैव “पॉजिटिव “कार्य करने के आदि थे उनका मानना था कि सामने वाला कैसे भी कुटिलता करें किंतु यदि आप “पॉजिटिव”दृष्टिकोण लेकर सतत सक्रिय रहते हैं, परिश्रम करते हैं ,योजना बनाते हैं तो अंत विजय “पॉजिटिव दृष्टिकोण” की होती है एवम कुटिलता करने वालों को मुंह की खानी पड़ती है ।
कार्यकर्ता के दोषों को ठाकरे जी शंकर जी के समान पी जाते थे उसे प्रचारित नहीं करते थे ना जाने ऐसा कितना गरल उन्होंने पिया पर क्या मजाल कि उनके मुंह से अनजाने में भी वह बाहर आ जाए यह उनका विश्वास था कि कार्यकर्ता भी मनुष्य है उससे भी गलती हो सकती है उसे भी सुधरने का अवसर मिलना चाहिए उसके दोषों को,गलतियों को तात्कालिक लाभ हेतु व उसके आचरण से कुपित होकर यदि उसे समाज में बदनाम कर दिया जाएगा तो वह सुधर ही नहीं सकता सुधरेगा भी तो सेवा के काम नहीं आएगा इसलिए उन्हें जो कहना होता था उस कार्यकर्ता से ही कहते थे उसे भटके को राह पर लाने की कोशिश तब तक करते थे जब तक वह ला–इलाज ना हो जाय।।
ठाकरे जी का हृदय बहुत विशाल था वह कहते थे अपने विपरीत सोचने वाले कार्यकर्ता को अपना विरोधी मत समझो अपना दुश्मन मत समझो उसको समझने की कोशिश करो जितना बड़ा काम है उतनी कठिन समस्याएं हमको हल करनी है हमें कार्यकर्ता के अंदर ध्येयवाद की अग्नि प्रज्वलित करनी होगी यही हमारी तपस्या है ।
पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी जी के शब्दों में ठाकरे जी बहुत जीवट के आदमी थे वह एक कुशल संगठक थे।
कार्यकर्ता को तराश कर कर उसे आगे बढ़ाना उसे नेता बनना और स्वयं पीछे रहना उनकी विशेषता थी ठाकरे जी सब की चिंता करते थे राष्ट्र की संगठन की समाज की और कभी-कभी तो वह भगवान की भी चिंता करते थे अनेकों ऐसे प्रसंग आए बातचीत हुई जब ठाकरे जी ने चिंतित स्वर में कहा “हे भगवान तेरा क्या होगा “।
कुशा भाऊ अहंकार से कोसों दूर रहे अभिमान उन्हे छू तक नहीं पाया उनकी सांगठनिक क्षमता और सफलता का यही रहस्य था।यही कारण था कि सभी लोग उनके समक्ष हृदय खोलकर मुक्त रूप से वार्ता कर पाते थे ।
ठाकरे जी उपलब्धियां का श्रेय दूसरों को देते थे और दोषारोपण स्वयं ओढ़ लेते थे यदि उन्हें कुछ अप्रिय था तो वह था अपनी प्रशंसा ।
राजनीतिक क्षेत्र में काम करने वाले अनेक लोगों में एक बुराई प्राय देखने को मिलती है जब दो लोग आपस में मिलते हैं तो तीसरे की बुराई करने में उन्हें आनंद आता है स्वयं को उत्कृष्ट एवं दूसरों को निकृष्ट सिद्ध करने के लिए तर्कों एवं मुद्दों की खोज करना सामान्यतः लोगों द्वारा जारी रहता है दूसरों की छवि मिटाने के लिए अवसर एवं व्यक्ति का विचार किए बिना बोलने की यह प्रवृत्ति,स्वभाव स्वाभाविक ही राजनीतिक क्षेत्र के लोगों में पाई जाती है ठाकरे जी इस निर्गुण से दूर रहने का आग्रह सदैव कार्यकर्ताओं से करते थे किसी व्यक्ति के विषय में अच्छा बोलने का स्वयं भी प्रयास करते थे और दूसरों से भी यही अपेक्षा करते थे”लूज टॉक”के वह सख्त खिलाफ थे ।।
ठाकरे जी कहते थे की पद का नहीं काम का महत्व रहता है इसलिए सतत काम के तरफ ध्यान दें अभी बहुत काम की आवश्यकता है देश की समस्याओं की तुलना में जो काम हुआ है वह काम है अभी और ज्यादा लोग जुड़ना चाहिए और काम होना चाहिए देश को विषम परिस्थितियों से निकालना हम सब नागरिकों का कर्तव्य है ।
ठाकरे जी संगठन का मूल मंत्र “समन्वय” को मानते थे वह कहते थे कि काम को बेहतर और गतिशील बनाने के लिए समन्वय की जरूरत होती है जो आपस में प्रेम और मेलजोल से सहज उत्पन्न हो जाता है ।
मीडिया मीडिया एवं राजनीतिक अन्य दलों के द्वारा भारतीय जनता पार्टी एवं राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के संबंधों को लेकर लगातार विवाद खड़ा करने की असफल कोशिश होती रही है ठाकरे जी ने अपने आप को संघ का प्रचारक मानने में कभी भी हिचकिचाहट प्रदर्शित नहीं की संघ से पार्टी के संबंधों के बारे में सवाल पूछे जाने पर उन्होंने कहा जहां तक भाजपा के कामकाज का सवाल है उसका संघ से कोई लेना देना नहीं है संघ पार्टी के कामकाज में कोई दखलंदाजी नहीं करता उन्होंने कहा हम भाजपा नेतृत्व संघ से सलाह मशवरा करते हैं लेकिन फैसला हमारे अपने होते हैं ।
ठाकरे जी निष्कपट ,निष्कलंक व्यक्तित्व के धनी थे ।राजनीति के प्रांगण में सक्रिय रहने के बाद भी यह अद्भुत है उनके सहज सहकार और सद्गुण ज्यों के त्यों विद्यमान रहे उनके व्यक्ति की स्वच्छ धवल चादर पर राजनीति के छल छंद के कीचड़ का एक छींटा भी कभी नहीं पड़ा।
अपने ध्येय मातृभूमि के ध्येय से एक क्षण भी विचलित नहीं हुए। उनके ध्येय परक कर्मठता और अटल निष्ठा ने कभी विराम नहीं लिया।
राष्ट्र सेवा के पथ पर सफलता के मील के पत्थरों ने उनकी गति को धीमा नहीं किया राष्ट्रपथ के वह अनथक पथिक थे ।
ठाकरे जी कर्मठ ,कर्तव्य परायण सत्यवादी, तथा बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी थे उनके महान अनोखे एवं असाधारण व्यक्तित्व को व्यक्तित्व को साधारण व्यक्तित्व को शब्दों में बांधना कठिन है। उनमें महान सहृदयता ,सरलता तथा विनम्रता थी अभिमान तो उनसे कोसों दूर था ठाकरे जी अपने आप में एक संस्था थे जिसने कर्मठता,दृढ़ इच्छा शक्ति संकल्प ,साहस और आत्मविश्वास , अडिग ईमान तथा अथक परिश्रम करने वाले कार्यकर्ताओं की एक पीढ़ी को दीक्षित किया ।
ठाकरे जी ने जीवन का प्रतिपल राष्ट्र के लिए जिया उन्हें सदैव संगठन की चिंता रहती थी जब अंतिम अवस्था में अस्वस्थता के कारण प्रवास करना असंभव हो गया तो सहसा उनके मुख से निकला मैं संगठन पर बोझ हो गया हूं इसके प्रति उत्तर में मध्य प्रदेश की तत्कालीन मुख्यमंत्री सुश्री उमा भारती जी ने कहा था “ठाकरे जी तो हमारे मुकुट हैं और मुकुट कभी सिर पर बोझ नहीं होता।”
संगठन संयोजन के कठिन काम को जिस निष्ठा,सेवाभाव, त्याग समर्पण के साथ कुशा भाऊ ने किया उसे प्रकार से केवल और केवल कुशा भाऊ ही कर सकते थे। वह निष्काम कर्मयोगी थे , ” कर्मण्ये वाधिका रस्ते,मां फलेशु कदा चनः” उनके जीवन का मूल मंत्र था वह संगठन शास्त्र की सगुण मूर्ति थे 28 दिसंबर 2003 को राष्ट्रपथ का यह कर्म योगी सदैव के लिए देवलोक को चला गया भौतिक रूप से भले ही वह हमारे बीच में नहीं है लेकिन उनके बनाये सिद्धांत, उनके विचार, देशभर के करोड़ों कार्यकर्ताओं का पथ सदैव प्रशस्त करते रहेंगे ।।

2 thoughts on “संगठन शास्त्र की सगुण मूर्ति कुशाभाऊ ठाकरे –सुरेन्द्र शर्मा

  1. Real Estate You’re so awesome! I don’t believe I have read a single thing like that before. So great to find someone with some original thoughts on this topic. Really.. thank you for starting this up. This website is something that is needed on the internet, someone with a little originality!

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

न्यूज़

slot server thailand super gacor

spaceman slot gacor

slot gacor 777

slot gacor

Nexus Slot Engine

bonus new member

https://www.btklpppalembang.com/

olympus

situs slot bet 200

slot gacor