बार-बार अलग-अलग एंटीबायोटिक दवाएं देने से मरीजों पर नहीं होता असर
Repeatedly giving different antibiotics has no effect on patients.
- एंटीबायोटिक दवाओं का असर मरीजों पर जांचने के लिए जारी हुई एंटीबायोग्राम रिपोर्ट
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- एम्स भोपाल देश का एकमात्र संस्थान जो अस्पताल में बेअसर एंटीबायोटिक की देता है जानकारी
भोपाल। लगातार उपयोग से एंटीबायोटिक दवाओं का असर कम हो रहा है। एक मरीज को बार-बार अलग-अलग तरह की एंटीबायोटिक देने से उस पर ये दवाएं प्रभावी नहीं होती। ऐसे में विशेषज्ञ समय समय पर इन दवाओं की संवेदनशीलता को जांचने की सलाह देते हैं। एम्स भोपाल भी एंटीबायोटिक के प्रभाव को जांचने के लिए लगातार शोध हो रहे हैं। एम्स भोपाल देश का एकमात्र ऐसा संस्थान है जो दवाओं की संवेदनशीलता की रिपोर्ट को सार्वजनिक कर रहा है। गुरुवार को भी एम्स भोपाल ने 2023 की दूसरी छहमाही की एंटीबायोटिक की रिपोर्ट (एंटीबायोग्राम) जारी की। सरल शब्दों में कहें तो एम्स अपने अस्पताल में बेअसर हो चुकी एंटीबायोटिक की रिपोर्ट (एंटीबायोग्राम) जारी करता है। मालूम हो कि इस रिपोर्ट को हर छह महीने में अपडेट किया जाता है। दरअसल इस रिपोर्ट का उद्देश्य एंटीबायोटिक के धड़ल्ले से उपयोग को रोकना है।
डॉक्टरों को बताएगा किस दवा का असर कम
एम्स के पीआरओ केडी शुक्ला बताते हैं कि एंटीबायोग्राम वह तकनीक है जिससे एंटीबायोटिक की संवेदनशीलता की जानकारी मिलती है। लगातार उपयोग से एंटीबायोटिक का असर कम हो जाता है। हर अस्पताल या क्षेत्र में अलग अलग एंटीबायोटिक का असर अलग अलग होता है। ऐसे में एम्स अस्पताल में उपयोग हो रहे एंटीबायोटिक की जांच कर रिपोर्ट को हर छह महीने में अपडेट किया जाता है। इससे चिकित्सकों को यह पता होता है कि उन्हें किस एंटीबायोटिक का इस्तेमाल करना है किसका नहीं।
एंटीबायोटिक का ऐसा हो रहा यूज
एनएचएम के पूर्व संचालक डॉ. पंकज शुक्ला ने बताया कि कई चिकित्सक एक मरीज को दिन भर में पांच एंटीबायोटिक दे देते हैं। डॉक्टर अक्सर मरीजों पर एंटीबायोटिक का टेस्ट करते हैं। एक दवा काम न आए तो दूसरी और तीसरी दवाएं तक दी जाती हैं। एंटीबायोटिक के ज्यादा उपयोग से कुछ समय बाद मरीज पर इसका असर होना खत्म हो जाता है।
कई एंटीबायोटिक बेअसर
करीब चार पहले एम्स भोपाल ने एंटीबायोटिक के कम हो रहे असर को लेकर शोध किया था। शोध में पता चला था कि नए एंटीबायोटिक का असर खत्म हो रहा है। शोध के अनुसार सबसे ज्यादा उपयोग किए जाने वाले एंटीबायोटिक जैसे एंपिसिलीन, एमॉक्सीसिलीन, सिफजोलिन, सिफ्रिएक्सोन आदि की प्रभाविता 50 प्रतिशत के नीचे पहुंच गई है। वहीं सालों पहले एनेक्टिव होने से क्लोरेम्फेनिकूल का उपयोग बंद कर दिया गया था, उसकी प्रभाविता 63 प्रतिशत तक पाई गई।