राम मंदिर आंदोलन में पंढरी डोंगरे का रहा अमिट योगदान,
- उप्र के जौनपुर में शिवराज सिंह जी के साथ जेल में बिताए दिन ।
- वर्षो पुरानी अयोध्या यात्रा अब हो रही पूर्ण ।
हरिप्रसाद गोहे
आमला। आज जहाँ पूरे देश ही नही बल्कि समूचे विश्व मे रामलला के मंदिर में विराजमान होने वाले आयोजन की तैयारी के जश्न में लोग डूबे हुए है । वही राम मंदिर आंदोलन से जुड़े उन लाखों लोगों के सपने भी आज पूरे हो रहे है । उन्ही सौभाग्य साली लोगो मे आमला के कार सेवक पंढरी डोंगरे भी है । रामलला की प्राण प्रतिष्ठा का सोचकर ही पंढरी डोंगरे के झुर्रियों से भरे चेहरे में खुशियों की लालिमा अलग ही चहक उठती है। आमला विधानसभा क्षेत्र के ग्राम बाबरबोह के निवासी पंढरी डोंगरे राम मंदिर आंदोलन से जुड़े थे और उस समय उनकी उम्र 42 वर्ष की थी जोश और जुनून के साथ अपने ग्राम के दो साथी शंकर पवार और रमेश के साथ जय श्री राम के नारे के साथ दो जून की रोटी बांधकर निकल पड़े।
27 अक्टूबर 1990 की सुबह गांव से अयोध्या के लिये कूच किये मुलताई स्टेशन पर मुलताई के विधायक मनीराम बारंगे पहले से ही अपने कुल 44 लोगो के साथ उपस्थित थे पंढरी डोंगरे भी अपने दोनो साथियों के साथ उनके साथ चल पड़े कुल 47 कार सेवक रवाना हुए। दक्षिण एक्सप्रेस से दल रवाना हुआ ! बैतूल पहुंचने पर स्थानीय कार्यकर्ताओ ने सेब अंगूर आदि फलों के बक्से इनके साथ रखवा दिए ताकि भोजन पानी की कोई कमी न रहे वैसे रास्ते मे पड़ने वाले स्टेशनों पर भी लोग खाने पीने की वस्तुएं देते जा रहे थे। ट्रेन के झांसी पहुंचने पर कारसेवकों को रोक दिया गया क्योंकि उस समय वहां मुलायम सिंह की समाजवादी पार्टी की सरकार कार सेवकों पर सख्त थी । इनके दल को झांसी में ही उतार लिया गया। और इन्हें जबरजस्ती ट्रेन में बैठाकर वापस इटारसी रवाना कर दिया गया। इटारसी पहुंचकर घर वापस जाने का तो मन नही था क्योंकि मन मे तो राम जी का कार्य का जोश था सो पुरे दल ने सोचा कि पुनः अयोध्या की ओर चलते है ऐसा सोचकर उ प्र जाने वाली ट्रेन में फिर से सवार हो गए इस बार झांसी की ओर का मार्ग न चुनकर सतना से जाने वाला मार्ग चुना ओर सतना वाली ट्रेन में बैठ गए। अगले दिन सतना उतर कर फिर दूसरे रास्ते से उ प्र की ओर चलने की सोची यहां से उ प्र का क्षेत्र आगे से शुरू हो जाता है। फिर से उ प्र सरकार उन्हें पकड़कर वापस न लौटा दे इसलिये आगे दल ने पैदल ही चलने का मन बनाया और सतना से पैदल ही चल निकले। उ प्र की सीमा में 17 किलोमीटर प्रवेश करते ही मिर्जापुर कस्बे में पहुंचे यहाँ एक हैंडपंप पर सभी ने हाथ मुंह धोया और जो कुछ था उससे पेट भरा वहां पर एक घर के तीसरे मंजिल पर से एक महिला उन्हें देख रही थी उसने उन्हें रुकने का इशारा किया और उनके पास आई कहने लगी कि आप लोग रुको मेरे पति भाजपा के अध्यक्ष है मैं तुम सबके रुकने का प्रबंध करती हु तब तक मेरे पति आ जाएंगे। लेकिन सभी ने महिला को धन्यवाद देकर पैदल आगे की ओर बढ़ने का मन बनाया। मुख्य मार्ग से आगे बढ़ रहे थे कि रास्ते पर पुलिस न रोक लिया हम लोग भी उत्साह में थे तो जय श्री राम का नारा लगाते हुए आगे बढ़ने लगे पुलिस ने हल्का सा बल प्रयोग किया तो हम और जोश में आ गए और वहीं मजिस्ट्रेट की जीप उत्साही कार सेवकों ने पलट दी।तब तो पुलिस और गुस्से में आ गई और अधिक पुलिस बल बुलाकर हम सभी को गिरप्तार कर लिया हम सभी पर भा द वि की धारा 107, 116,151 के तहत धारा लगाई गई। फिर पुलिस बस बुलाकर रात में ही अज्ञात जगह की ओर रवाना कर दिया।
31 अक्टूबर 1990 की सुबह जब हमारी बस रुकी तो हम उ प्र के जौनपुर जिले में पहुंचे थे यहां से हमे जिला जेल ले जाया गया वहां पर बहुत से कार सेवक पहले से ही गिरफ्तार थे। उन कारसेवकों का नेतृत्व म प्र के पूर्व मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान कर रहे थे। वहां हम सभी शिवराज सिंह चौहान के साथ रहे सुबह शाम हम सभी साथ बैठते और आगे क्या करना है उसकी चर्चा करते।शिवराज जी ने जेलर से कहकर वहाँ एक टी वी की व्यवस्था भी करवा दी थी कि देश का समाचार भी मिलता रहे।जेल में भी खूब उपद्रव चलता रहा जय श्री राम के नारे गूंजते थे अंततः 7 नवम्बर 1990 को हम सब को रिहा कर दिया गया और यह कह कर की वापस अपने घर चले जाओ। जेल में रहने का प्रमाण पत्र भी जेलर ने दिया। हमे बसों में भरकर काशी पहुंचा दिया गया। यहाँ जय श्री राम का नारा लगाते हुए हमें फिर उ प्र की पुलिस ने पकड़ लिया। पकड़कर थाने लाया गया।वहाँ पुलिस अधिकारी बहुत सख्त था उसने कहा कि इनको जेल भेज दो। ऐसा कहकर वो थाने से चले गए। किस्मत से वहाँ थाने में एक शर्मा सब इंस्पेक्टर पदस्थ थे जो मूलतः होशंगाबाद म प्र के रहने वाले थे। उन्होंने हमें समझाया कि तुम अपने आप को कार सेवक मत बताना कहना कि हम गंगा स्नान के लिये काशी आये है नही तो तुम सभी को तीन माह के लिये जेल भेज दिया जाएगा। हमने उसकी बात मानी और हम सभी को रिहा कर दिया गया। भारी मन से हम सभी काशी से इलाहाबाद,मैहर होते हुए आमला पहुंचे। अयोध्या तक तो नही पहुंच सके किंतु मन मे रामकाज का जो जज्बा था वो बरकरार रहा। आज 75 वर्ष की उम्र में रामलला का भव्य मंदिर बनते देख रहे है तो मन को प्रसन्नता हो रही है ऐसा लग रहा है कि हमारी यात्रा अब पूर्ण हुई है।22 जनवरी हमारे जीवन का सबसे सुखद दिन होगा।
(जैसा पंढरी डोंगरे ने बताया वैसा ही उल्लेख है)