January 2, 2025

विश्वास का तरीका बदलना होगा तभी भगवान को जान पाएंगे

0

मेरे आसपास के सभी लोग भगवान को मानते हैं, इसलिए मैं भी भगवान को मानता हूं। सब भगवान में अटूट विश्वास रखते हैं, इसलिए मैं भी रखता हूं। सब मंदिर जाते हैं, इसलिए मैं भी जाता हूं। जो सब कह रहे होते हैं या फिर जो सब कर रहे होते हैं, उसमें आपकी खोज तो कुछ भी नहीं, इसमें तो कोई गहरी बात नहीं। जिसने भगवान को अनुभव किया, उसने भगवान में श्रद्धा और विश्वास रखा! यदि उसने भी भेड़चाल की तरह दूसरों के कहने में आकर बिना भगवान को अनुभव किए उनके प्रति श्रद्धा अनुभव की या विश्वास किया तो यह ज्ञान सहित विज्ञान नहीं। फिर यह केवल मान्यता है, और मान्यता दौड़ाती बहुत है, पहुंचाती कहीं भी नहीं।

मानना और जानना, दोनों में बड़ा अंतर है। सब मानते हैं, इसलिए हम भी मानेंगे की प्रवृत्ति सही नहीं है। मानने से ऊपर उठकर हमें जानने में आना होगा। यदि हमने ईश्वर को दूसरों की देखा-देखी ही माना तो उनमें हमारा विश्वास आने-जाने वाला ही होगा। वह विश्वास हमेशा एक जैसा रहने वाला नहीं होगा। उस विश्वास में स्थायित्व की भावना का अभाव होगा। जब जीवन में सब ठीक चल रहा होता है तो मन में जो भी बनावटी विश्वास होते हैं, वे ठीक हैं और वे चल भी जाते हैं। लेकिन जब जीवन में परिस्थितियां उलटी-पुलटी हों, विपरीत हों, जो सोच कर चल रहे हों, वह हो ही न रहा हो तो उस समय यह जो ऊपर वाला विश्वास है, वह डगमगा जाएगा। इस ऊपर-ऊपर वाले विश्वास में कोई गहराई नहीं होती। इसकी सीधी वजह यह है कि यह विश्वास अनुभव के आधार पर नहीं होता, बल्कि सुनी-सुनाई बातों के कारण हो रहा होता है।

वैसे भी जो देखा न जा सके, उसमें विश्वास करना कठिन ही होता है। लेकिन उस परमात्मा को अनुभव करने की शक्ति भी हमारे ही अंदर निहित है। हम सब में परमात्मा का निवास है। तो सबसे पहले अपने विश्वास को नए तरीके से स्थापित करना होगा। उसको अपने अनुभव के आधार पर नया जन्म देना होगा और यह तब होगा जब यह भाव पक्का होगा कि कोई शक्ति तो है जो सारे विश्व को बड़ी बारीकी से और व्यवस्थित तरीके से चला रही है। कोई तो ताकत है जो हमारे शरीर को निरंतर गति दे रही है। कोई तो है, जिससे मेरे सहित पूरा ब्रह्मांड चल रहा है।

इस सार को अपने अंतरतम के भीतर उतर कर ही जाना जा सकता है। इसके लिए ध्यान है। ध्यान का अभ्यास अपने भीतर स्थित उसी ब्रह्म को जानने की प्रक्रिया है, जिससे हम चल रहे हैं, यह जगत चल रहा है। अपने अंदर उतरने के लिए हमें ध्यान करना होगा क्योंकि निरंतर ध्यान और प्रार्थना आपको उस शक्ति को अपने भीतर अनुभव करा देती है। तब किसी के कहने से विश्वास करने की जरूरत नहीं रह जाती है, बल्कि तब तो अपने अंदर खुद-ब-खुद विश्वास उत्पन्न हो जाता है!

जब विश्वास अंदर से अनुभव के आधार पर जन्म लेता है तो भारी से भारी दुख हो या कितनी भी उलटी-पुलटी परिस्थितियां हों, वह सबमें अडिग बना रहता है। इसलिए पहला कार्य और सारी कोशिश अपने भीतर उतरने की होनी चाहिए। फिर जैसा अंदर की आवाज कहे, वैसा करो। फिर जो भी घटेगा वह उचित होगा और वही हमारी जीवन यात्रा में सहायक होगा।

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

न्यूज़

slot server thailand super gacor

spaceman slot gacor

slot gacor 777

slot gacor

Nexus Slot Engine

bonus new member

https://www.btklpppalembang.com/

olympus

situs slot bet 200

slot gacor

slot qris

link alternatif ceriabet

slot kamboja

slot 10 ribu

https://mediatamanews.com/

slot88 resmi

slot777

https://sandcastlefunco.com/

slot bet 100

situs judi bola

slot depo 10k

slot88

slot 777