गांधी परिवार के करीबी दो पूर्व सीएम का भविष्य लिखना बांकी.
Writing the future of two former Chief Ministers close to the Gandhi family remains pending.
– अब क्या करेंगे कमलनाथ और दिग्विजय, दोनों ने राजनैतिक विरासत की कुर्सी पर बेटों को किया शिफ्ट
जेवी विधायक और नकुल सांसद- जय-वीरू की जोड़ी को हाईकमान ने दिया रेस्ट, दिग्विजय फिर भी सक्रिय और कमलनाथ 5 जनवरी के बाद लौटेंगे
भोपाल। मध्य प्रदेश में पीढ़ी परिवर्तन का दौर भाजपा से लेकर कांग्रेस तक में चल रहा है। पुराने दिग्गजों को किनारे कर सेंकड और थर्ड लीडरशिप को फ्रंट पर खड़ा कर दिया है। पिछले कुछ सालों में देखें तो भाजपा ने यह प्रयोग पहले ही किया है। तीन राज्यों में करारी हार के बाद अब कांग्रेस ने भी प्लानिंग की है। मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में हार के बाद पार्टी ने एक झटके में कमलनाथ और दिग्विजय सिंह जैसे दिग्गज नेताओं को साइडलाइन कर दिया है। हैरत की बात है कि दोनों ही नेता गांधी परिवार के करीबियों में शुमार रहे हैं। इंदिरा गांधी ने तो कमलनाथ को तीसरा बेटा माना था। वहीं दिग्विजय सिंह के संबंध भी उनके पिता के चलते कांग्रेस में शुरुआत से ही बेहतर रहे हैं। विधानसभा के चुनाव में दोनों से जय-वीरू की भूमिका निभाई। परिणाम के बाद हाईकमान ने घर ही बैठा दिया। अब राहुल गांधी की यूथ ब्रिगेड के हाथों में प्रदेश कांग्रेस की कमान सौंप दी है। इसके बाद सवाल यह है कि दिग्विजय सिंह और कमलनाथ का क्या होगा। यह लोकसभा के चुनाव में स्पष्ट हो जाएगा। इससे पहले दिग्विजय सिंह ने अपने बेटे जयवर्धन सिंह को राघौगढ़ से विधायक बनवाया। हालांकि जेवी कमलनाथ सरकार में मंत्री भी रह चुके हैं। वहीं साल 2019 के लोकसभा चुनाव में कमलनाथ ने अपनी सीट से राजनैतिक विरासत की जमीन पर बेटे नकुलनाथ को सांसद की कुर्सी पर बैठा दिया। खास बात है कि कांग्रेस प्रदेश की सभी सीटों पर हार गई। सिर्फ छिंदवाड़ा से ही कांग्रेस को सफलता मिली। पार्टी सूत्रों का कहना है कि 10 से 15 साल में पार्टी ने क्षत्रपों की दूसरी पीढ़ी तैयार ही नहीं की। इसका विधानसभा चुनाव में सबसे ज्यादा नुकसान हुआ। बिना राय और सलाह कर दी जीतू की नियुक्तिपार्टी सूत्रों का कहना है कि पार्टी अब कमलनाथ को कोई पद देने के मूड में नहीं है। इसके संकेत इससे भी मिल रहे हैं कि बगैर उनकी राय लिए सीधे नियुक्तियां कर दी गईं। ऐसे में आगे उनको कोई जिम्मेदारी मिलने की संभावना नहीं दिख रही है। वहीं, पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह भी राज्यसभा में तो बने रहेंगे, पर उनको भी कोई महत्वपूर्ण जिम्मेदारी नहीं दी जाएगी। हालांकि, वे नए युवाओं को मार्गदर्शन देते रहेंगे। वहीं कमलनाथ अभी विदेश के दौरे पर हैं। जानकारी है कि वो 5 जनवरी को भारत लौट सकते हैं।पिछली जीत से नहीं लिया सबक – 2018 में कांग्रेस में पूर्व सीएम कमलनाथ, दिग्विजय सिंह के साथ युवा के रूप में ज्योतिरादित्य सिंधिया थे। राजस्थान में अशोक गहलोत के साथ सचिन पायलट थे। इस वरिष्ठ और युवा नेता के समन्वय से कांग्रेस को बड़ी जीत मिली थी। इस बार मध्य प्रदेश में कमलनाथ और दिग्विजय सिंह की जय और वीरू की जोड़ी मुख्य रोल में थी। इन दोनों के ही बीच द्वंद्व जैसे कई बार स्थितियां देखी गई। युवा को पूरी तरह दरकिनार कर दिया गया। पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव, जीतू पटवारी जैसे नेताओं को साइड लाइन करके रखा गया। इस बार का चुनाव व्यक्ति विशेष केंद्रित हो गया था, जिसका कांग्रेस को बड़ा नुकसान उठाना पड़ा। मार्गदर्शक के रूप में अनुभव का लाभ ले सकते हैं – विशेषज्ञों का कहना है कि पूर्व सीएम कमलनाथ और दिग्विजय सिंह पुरानी पीढ़ी के नेता हैं। भाजपा से लड़ने के लिए कांग्रेस को पीढ़ी परिवर्तन की जरूरत थी। यह राहुल गांधी ने पहल की तो यह देर से उठाया सही कदम है। वरिष्ठों के अनुभव का लाभ पार्टी मार्गदर्शक के रूप में ले सकती है। वरिष्ठ पदों पर बैठाने से नई पीढ़ी का युवा पार्टी से जुड़ नहीं पाता। इसका ही प्रदेश में कांग्रेस को नुकसान हुआ है। कमलनाथ के पास विकल्प है कि वह बेटे को लोकसभा चुनाव लड़ाएं या खुद लड़ें। हालांकि, शीर्ष नेतृत्व के ऊपर निर्भर करेगा कि वे इस पर सहमत होते हैं या नहीं? वहीं पीसीसी एमपी अध्यक्ष जीतू पटवारी का कहना है िक कमलनाथ और दिग्विजय सिंह सहित सभी वरिष्ठ नेताओं के मार्गदर्शन से लोकसभा चुनाव में कांग्रेस 51 प्रतिशत वोट शेयर को प्राप्त करेगी।