नौकरशाही ने की है सुप्रीम कोर्ट के स्पष्ट निर्देश की अवहेलना, आईएफएस बैठक
The bureaucracy has disregarded the clear instructions of the Supreme Court
The bureaucracy has disregarded the clear instructions of the Supreme Court, IFS meeting today
- बैठक में बनेगी विरोध करने की रणनीति, सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल करने पर विचार
गणेश पाण्डेय
भोपाल। प्रदेश की नौकरशाही ने आईएफएस अफसरों को अपने नियंत्रण में रखने की मंशा से एसीआर लिखने की प्रक्रिया में बदलाव कर दिया है। हालांकि आईएफएस अफसर मानते हैं कि एसीआर में बदलाव सुप्रीम कोर्ट के निर्देश का उल्लंघन है।
नए बदलाव के विरोध में आगे की रणनीति तय करने के लिए आईएफएस एसोसिएशन ने फॉरेस्ट रेस्ट हाउस में शुक्रवार शाम 6:00 बजे प्रदेश कार्यकारिणी की बैठक बुलाई है। बैठक में इस रणनीति पर मंथन होगा कि मर्यादा के दायरे में रहकर नए बदलाव पर विरोध कैसे किया जाए ? दिलचस्प पहलू यह है कि बदलाव की प्रक्रिया 2 साल से चल रही थी पर आईएफएस अफसर को भनक तक नहीं लगी। यहां तक कि मंत्रालय में पदस्थ आईएफएस अतुल मिश्रा, अशोक कुमार और अनुराग कुमार तक को इस बदलाव से अनजान रहे। जबकि मंत्रालय में उनकी पदस्थापना विभाग के दूत के रूप में हुई है। नौकरशाही ने बड़े गोपनीय ढंग से बदलाव कर आदेश जारी किया गया। यहां यह उल्लेखनीय है कि बहुचर्चित दमोह वन कटाई प्रकरण में तत्कालीन विभाग प्रमुख आरडी शर्मा ने सुप्रीम कोर्ट को यह शपथ पत्र दिया था कि चूंकि डीएफओ का नियंत्रण करता कलेक्टर है, इसलिए फील्ड के अधिकारी मुख्यालय के शीर्ष अधिकारियों के निर्देशों को महत्व नहीं देते। यही वजह है कि प्रदेश में वन कटाई, अवैध खनन और अतिक्रमण के घटनाएं बढ़ रही है।इस पर सुप्रीम कोर्ट ने यह व्यवस्था दी कि आईएफएस अधिकारी केवल आईएफएस अधिकारियों को ही रिपोर्ट करेंगे। यानी एसीआर लिखने का अधिकार नौकरशाही से लेकर आईएफएस अधिकारियों के हाथों में सौंप दिया गया। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद तत्कालीन आईएएस एसोसिएशन के तत्कालीन अध्यक्ष प्रमुख सचिव गृह स्वर्गीय राकेश साहनी ने वर्ष 2003 में सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल की और जिसमें तर्क दिया कि कलेक्टर-कमिश्नर शासन के समन्वयक होते है, इसलिए समन्वय स्थापित करने के लिए पूर्व में प्रचलित व्यवस्था को यथावत रखा जाए। सुप्रीम कोर्ट ने आईएएस एसोसिएशन की पुनर्विचार याचिका को खारिज करते हुए आईएफएस के एसीआर लिखने का अधिकार पूर्व में दिए गए निर्देश को यथावत रखा। यही वजह है कि नए बदलाव को आईएफएस अधिकारी इसे सुप्रीम कोर्ट का उल्लंघन मानते हैं।
नए बदलाव से अतिक्रमण और अवैध माइनिंग बढ़ेगी
नए बदलाव से वन भूमि पर अतिक्रमण और अवैध के मामले बढ़ेंगे। इसकी वजह भी स्पष्ट है कि अपनी एसीआर उम्दा लिखवाने के फेर में डीएफओ अथवा सीएफ वन संरक्षण अधिनियम और भारतीय वन अधिनियम के प्रावधानों को शक्ति से लागू करवाने में कलेक्टर और कमिश्नर के सामने बौने साबित होंगे। अभी तक वन भूमि पर कब्जा हो या फिर अवैध खनन के मामले में कलेक्टर कमिश्नर की सिफारिश को भी दरकार न कर देते हैं। यानि प्रदेश में अभी तक जंगल बचाने में फॉरेस्ट के अफसरों ने अहम भूमिका निभाई है। भले ही हुए मैदान में पीते हो या फिर शहीद हो गए हो, वन भूमि को बचाने के संकल्प से डिगे नहीं। जबकि कलेक्टर-कमिश्नर वन भूमि को राजस्व भूमि बताकर एक नए विवाद को जन्म देते चले आ रहे हैं। ताज़ा मामला नीमच का है। नीमच कलेक्टर और उज्जैन कमिश्नर ने औद्योगिक घराने को वन भूमि आवंटित कर एक नया बखेड़ा कर दिया। जबकि नीमच डीएफओ ने शासन से लेकर कलेक्टर-कमिश्नर तक को वे सारे दस्तावेज प्रस्तुत किए हैं, जिनके आधार पर कहा जा सकता है कि आवंटित भूमि वन भूमि है।
क्या है नया बदलाव
पिछले दिनों राज्य शासन ने एक आदेश जारी कर भारतीय वन सेवा अधिकारियों की गोपनीय चरित्रावली (एसीआर) के लिये एक नई प्रणाली लागू की है। नई प्रणाली में डीएफओ की एसीआर पर कलेक्टर की टिप्पणियों को भी शामिल किया गया है। वर्तमान व्यवस्था में भी वन प्रबंधन और इससे जुड़े मामलों में जिला कलेक्टर का रोल सर्वथा महत्वपूर्ण होता है और कलेक्टर के अभिमत पर ही प्रस्ताव पास किए जाते हैं। इसी तरह, वरिष्ठ आईएफएस अधिकारियों की एसीआर अब विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव या प्रमुख सचिव के माध्यम से मुख्यमंत्री तक पहुंचाई जाएगी। आईएफएस अधिकारी की एसीआर लिखने की मुख्य जिम्मेदारी अभी भी आईएफएस अधिकारियों के पास ही रहेगी। कलेक्टर और विभागीय वरिष्ठों की टिप्पणियां जिला और राज्य स्तरीय लक्ष्यों के व्यापक संदर्भ में अधिकारी के प्रदर्शन के बारे में जानकारी प्रदान करेंगी। यह व्यवस्था वर्ष 2024-25 से लागू की गई है।
इसमें वन मण्डल अधिकारी/वन संरक्षक (क्षेत्रीय) स्तर के अधिकारियों की गोपनीय चरित्रावली में समीक्षक अधिकारी वन बल प्रमुख होंगे और स्वीकारकर्ता अधिकारी अतिरिक्त मुख्य सचिव/प्रमुख सचिव होंगे। वन मण्डल अधिकारी (उत्पादन) की गोपनीय चरित्रावली में समीक्षक प्रधान मुख्य वन संरक्षक (उत्पादन) और स्वीकारकर्ता अधिकारी अतिरिक्त मुख्य सचिव/प्रमुख सचिव होंगे। उप वन संरक्षक (न्याया प्रकरण) के गोपनीय चरित्रावली के समीक्षक अधिकारी वन बल प्रमुख और स्वीकारकर्ता अधिकारी अतिरिक्त मुख्य सचिव/प्रमुख सचिव होंगे।