6 महीने बाद कब्र से निकाली गई लाश, हुए चौंकाने वाले खुलासे
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खड़गपुर
आईआईटी खड़गपुर में एक छात्र की मौत मामले में दो साल बाद कई बड़ी बातें सामने आई हैं। कलकत्ता हाई कोर्ट आदेश के बाद की गई दूसरी ऑटोप्सी की रिपोर्ट में पता चला है कि छात्र फैजान के गले पर चाकू का निशान पाया गया था। इसके अलावा उसके शव पर गोली के निशान भी पाए गए थे। इसी साल मई में दूसरी ऑटोप्सी रिपोर्ट हाई कोर्ट को सौंपी गई थी। अगले सप्ताह हाई कोर्ट इस मामले में सुनवाई करने वाला है। उससे पहले एक्सपर्ट कमेटी फाइनल रिपोर्ट दे सकती है।
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक डॉ. एके गुपता की रिपोर्ट में बताया गया है कि फैजान की गर्दन के पास बाईं तरफ चाकू के निशान मिले हैं। हालांकि पुलिस ने अपनी रिपोर्ट में इन घावों का जिक्र ही नहीं किया था। मिदनापुर मेडिकल कॉलेज में अक्टूबर 2022 में किए गए शव परीक्षण में भी किसी तरह के जख्म की जानकारी नहीं दी गई थी। इसके बाद फैजान की मां रेहाना ने हाई कोर्ट का रुख किया और जांच के लिए एसआईटी बनाने की मांग की।
कोर्ट ने मई 2023 में शव के अवशेष निकालकर दोबारा ऑटोप्सी करने का आदेश दिया। कोर्ट ने कहा था कि छात्र की मौत के पीछे का सच सामने आना जरूरी है। हालांकि शुरुआती रिपोर्ट में कहा गया था कि फैजान ने खुदकुशी की है। परिवार यह बात मानने को तैयार नहीं था। फैजान के परिवार का कहना था कि आईआईटी खड़गपुर परिसर में फैजान के साथ रैगिंग हुई और इसके बाद उसकी हत्या कर दी गई।
फॉरेंसिक एक्सपर्ट्स ने अपनी रिपोर्ट में यह भी कहा था कि उसके नाखूनों पर खून पाया गया था। इसके अलावा रीढ़ की हड्डी भी डेमेज थी। डॉ. गुप्ता की ऑटोप्सी में कई हैरान करने वाली बातें हैं। फैजान अहमद की खोपड़ी की एक हड्डी भी गायब थी। इस रिपोर्ट में जहर खाकर जान देने वाली थ्योरी को पूरी तरह नकार दिया। वहीं फैजान के परिवार का कहना है कि उसने खुदकुशी नहीं की थी बल्कि उसे मारा गया था।
फैजान के परिवार के वकील अनिरुद्ध मित्रा ने कहा, बिना जांच के ही पुलिस ने इसे आत्महत्या का मामला बता दिया। आज तक पहली पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट के आधार पर ही जांच की जा रही है। हाई कोर्ट ने पुलिस को ऐसा ना करने के निर्देश भी दिए हैं। यहां तक कि संस्थान ने भी मामले को किसी तरह रफा दफा करने की कोशिश की। कॉरिडोर में कोई सीसीटीवी कैमरा भी नहीं लगा था। संस्थान में बच्चों के साथ रैगिंग हो रही थी लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की जाती थी। इसका मतलब है कि प्रशासन भी आरोपियों की मदद में लगा था। इसका असर जांच पर भी पड़ा है।