ममता सरकार और राजभवन के बीच जारी टकराव की वजह से नवनिर्वाचित दो विधायकों की शपथ पर ‘ग्रहण’ लगा
Approval of rationalization of scholarship rates for students belonging to free-ranging
कोलकाता
ममता सरकार और राजभवन के बीच जारी टकराव की वजह से नवनिर्वाचित दो विधायकों की शपथ पर 'ग्रहण' लगा हुआ है। कहा जा रहा है कि नवान्न यानी राज्य सचिवलाय राज्यपाल सीवी आनंद बोस से बचने की कोशिश में है। हालांकि, शपथ को लेकर विधानसभा सचिवालय के नए कदम के बाद राजनीतिक हलकों में चर्चा तेज है। नतीजे घोषित होने के 10 दिन बीत जाने के बाद भी दोनों नवनिर्वाचित विधायकों को शपथ नहीं दिलाई गई है। पहले पता चला कि संसदीय कार्य मामलों के कार्यालय ने परंपरा के मुताबिक इस संबंध में राजभवन से संपर्क किया था, लेकिन राजभवन की ओर से कोई जवाब नहीं मिला।
प्रशासनिक सूत्रों के अनुसार शपथ समारोह के प्रबंधन को लेकर संसदीय कार्य मामले के कार्यालय से राज्यपाल को लिखित पत्र भेजने की परंपरा है और उसके आधार पर राज्यपाल संविधान के अनुच्छेद 188 के अनुसार इस संबंध में निर्णय लेते हैं। लेकिन, बारानगर और भागवानगोला के दो नवनिर्वाचित विधायकों की शपथ के लिए संसदीय मामलों के कार्यालय ने राजभवन को कोई पत्र नहीं भेजा है। बल्कि पत्र विधानसभा सचिवालय की ओर से भेजा गया है। इसके बाद हालिया राजभवन और राज्य सचिवालय विवाद से नई जटिलताएं सामने आ गई हैं।
संसदीय परंपरा के अनुसार, उप-चुनाव के मामले में राज्यपाल विधानसभा स्पीकर या अपनी पसंद के किसी व्यक्ति को शपथ दिलाने के लिए नियुक्त कर सकते हैं। लेकिन राज्यपाल और ममता सरकार के बीच टकराव के कारण पूर्व राज्यपाल जगदीप धनखड़ ने इस व्यवस्था को बदल दिया था। स्पीकर के साथ मतभेद के कारण उन्होंने डिप्टी स्पीकर को यह जिम्मेदारी देकर एक असाधारण निर्णय लिया था। इस पर उस समय प्रशासनिक और राजनीतिक स्तर पर लंबी बहस चली थी। नवान्न ने इस बार अलग राह अपनाई है।
सूत्रों के अनुसार संसदीय कार्य विभाग के कार्यालय ने इस संबंध में पत्र तो तैयार कर लिया, लेकिन राजभवन को नहीं भेजा है। संसदीय विभाग के अनुरोध पर विधानसभा सचिवालय ने शपथ ग्रहण के लिए राज्यपाल को पत्र भेजा है। राजनीतिक खेमे का मानना है कि ममता सरकार का यह कदम राज्यपाल के खिलाफ हाल ही में लगे आरोपों का नतीजा है। हाल ही में संपन्न हुए लोकसभा चुनावों के प्रचार के दौारन मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने खुद राज्यपाल पर उंगली उठाते हुए सार्वजनिक सभाओं कहा था कि अगर राज्यपाल बैठक बुलाई तो वह राजभवन नहीं जाएंगी।