भोपाल के 5 फीमेल टाइगर की टेरिटरी में बढ़ती इंसानी दखल
Increasing human interference in the territory of 5 female tigers of Bhopal
गणेश पाण्डेय
भोपाल। राजधानी के रियासत में कभी बेगमों का राज रहा है पर आज इसी रियासत के जंगलों में 5 शक्तिशाली फीमेल टाइगर (टाइग्रेस) राज है। इन 5 फीमेल टाइगर के वंश बढ़कर 17 से अधिक शावकों की संख्या हो गई हैं पर टेरिटरी को लेकर उनमें आपस में फाइट होने की खबर हुई। दिलचस्प पहलू यह भी है कि आबादी के करीब होते हुए भी आज तक मनुष्य और उनके बीच द्वंद्व नहीं हुआ है। हां, राजनेता, नौकरशाह और रसूखदार कॉलोनाइजर जरूर उनके क्षेत्र जंगलों में अतिक्रमण करते जा रहे हैं। यदि अभी भी हम नहीं संभले तो मानव और टाइगर के बीच कनफ्लिक्ट की खबरें आम होने लगेगी। आश्चर्य की बात ये है कि पूरी दुनिया में भोपाल अकेला शहर है जहां नगर निगम की सीमा में टाइगर विचरण कर रहे हैं । बाघों की बढ़ती आबादी के बीच जंगलों में बढ़ती इंसानी दखल, बढ़ता शहरीकरण और खेती के लिए लगातार साफ होते जंगले और जमीन राज्य को खोखला कर रहे हैं। नतीजन बाघ भी नए ठिकाने की तलाश में शहर के अंदर घूमते नजर आते हैं।
भोपाल शहर से सटे जंगलों में पांच शक्तिशाली फीमेल टाइगर और उनकी टेरिटरी स्थापित्य होने से एक बार फिर भोपाल के इतिहास में बेगमों का राज याद आ गया। पिछले कुछ साल में इन 5 बाघिनों का कुनबा बढ़कर पच्चीस हो गया है, जिसमें सत्रह शावक और तीन बाघ शामिल हैं। ये बाघ पास के जंगलों से यहां आते-जाते रहते हैं। भोपाल से लगे केरवा, कलियासोत, मिंडोरी और कठोतिया जैसे बाघ विचरण क्षेत्र में कुल 25 बाघ-बाघिन हैं । इनमें तीन बाघ हैं, पांच बाघिन और 17 शावक शामिल हैं। ये बाघ अभयारण्य के आस-पास के इलाकों में विचरण करते रहते हैं। आश्चर्य की बात ये है कि पूरी दुनिया में भोपाल अकेला शहर है जहां नगर निगम की सीमा में टाइगर विचरण कर रहे हैं। कुछ दिनों पहले किये गए सर्वेक्षण में पता चला है कि पांच बाघिन भोपाल के आस-पास के इलाकों में बस गई हैं। इन्होंने यहां अपना स्थाई ठिकाना बना लिया है।
मानव और बाघों के बीच बढ़िया सामंजस्य
बाघों के विशेषज्ञ मानते हैं कि बाघिन अपना घर और बच्चों का पालन-पोषण उसी जगह पर करती है जहां उसे किसी तरह का तनाव या सुरक्षा का भय नहीं रहता। दूसरी वजह है भरपूर मात्रा में पाया जाने वाला भोजन, जिसमें नीलगाय, सांभर, चौसिंगा, जंगली सूअर, हिरण आदि आसानी से मिल जाते हैं। यहाँ तक कि बंदर भी इनका आसान भोजन हैं। अगर शहर के बीचों-बीच ये बाघिनें अपने 17 शावकों को पाल रहीं हैं तो मानव और बाघों के बीच इससे बढ़िया सह-अस्तित्व और सामंजस्य पूरे विश्व में कहीं भी देखने को नहीं मिलेगा। लेकिन ये सुख के दिन कब तक चलेंगा ? मिसाल के तौर पर भोपाल के जाने माने शिक्षा संस्थान, MACT, के कैम्पस और हॉस्टल तक बाघ अपनी मौजूदगी दिखा चुके हैं। एक बाघ तो नई टेरिटरी बनाने के चक्कर में 10 दिन तक कॉलेज कैम्पस और बॉयज हॉस्टल के आसपास घूमता दिखाई दिया। बाघ ने कॉलेज परिसर में मवेशियों को भी मार डाला जिससे छात्रों में दहशत फैल गई। एक हफ्ते बाद बाघ ने अपनी मौजूदगी पास के भोज यूनिवर्सिटी कॅम्पस में भी दिखा दी। गनीमत रही कि दोनों जगह पर बाघ का आदमी के साथ सीधा आमना-सामना या मुठभेड़ नहीं हुई । पिछले एक साल में ऐसी दर्जनों घटनाएँ हुई हैं जब बाघिन किसी संस्थान में अपने शावकों के साथ देखी गई या स्कूल्स के पास, अथवा निजी कॉलेज या यूनिवर्सिटी कॅम्पस के नजदीक टहलती दिखाई पड़ी । कई बार तो लोगों ने बाघिन को शावकों के साथ सड़क पर चहलकदमी करते हुए भी देखा। एक बात सभी ने महसूस की कि न तो बाघिन ने किसी आदमी पर हमला किया न ही स्थानीय रहवासियों को बाघ से कोई ख़तरा महसूस हुआ।
मानव-टाइगर द्वंद से बचने के लिए करने होंगे उपाय
जिस तरह से बाघों की संख्या भोपाल और उसके आस पास के इलाकों में बढ़ रही है, उसको देखते हुए यह कहना ज़रूरी होगा कि वन विभाग और स्थानीय प्रशासन को इनकी सुरक्षा और मानव-टाइगर द्वंद से बचने के लिए तुरंत उपाय करने होंगे। ऐसा कई बार देखा गया है कि ये बाघ भीड़ भरे इलाकों में लगातार चहलकदमी कर रहे हैं। साथ ही उन इलाकों में भी घूम रहे हैं जहां से छात्र-छात्राओं का हर रोज आना जाना बना रहता है। कुछ लोगों ने इन बाघों को अर्बन टाइगर्स नाम दे दिया है। लेकिन क्या ऐसा हो सकता है कि टाइगर अर्बन एरिया में आया हो? ये तो इंसान है जो बाघ के क्षेत्र में, उसके घर में, लगातार घुसपैठ कर रहा है और उसके इलाके पर अपना झूठा हक भी जता रहा है। बाघों के लिए सबसे मुफीद केरवा क्षेत्र में राष्ट्रीय विधि अकादमी के छात्र (एनएलआईयू), उसकी फैकलटीस और क्षेत्र के निवासी रहते हैं। इसके अलावा खानपान की दुकानों के व्यापारी और कृत्रिम गर्भाधान प्रशिक्षण संस्थान के कर्मचारी और अधिकारी भी उसी इलाके में रहते हैं। इन इलाकों को जोड़ने वाली सड़कों पर अक्सर बाघ दिख जाते हैं। इस क्षेत्र में कई स्कूल और कॉलेज हैं, इसलिए सरकार ने सावधानी बरतते हुए साइन बोर्ड लगा दिए हैं, “सावधान, बाघ विचरण क्षेत्र।” बाघों की आवाजाही दो बांधों- केरवा और कलियासोत और कलियासोत बांध के करीब एक पहाड़ी पर स्थित वाल्मी के आसपास के जंगलों में 22 वर्ग किलोमीटर में फैले एक बड़े क्षेत्र में हो रही है। अकेला वाल्मी परिसर कलियासोत के किनारे पर 200 एकड़ वन क्षेत्र में फैला हुआ है।
बाघ मूवमेंट क्षेत्र में मानव गतिविधियों रोकनी होगी
बाघों की निगरानी करने वाले वन विभाग और बाघ संरक्षण संस्थाओं के अधिकारियों का कहना है कि परिवार से अलग हुए कई बाघ शहर में अपनी टेरिटरी की खोज कर रहे हैं, मतलब अपने क्षेत्र को चिह्नित कर रहे हैं। वन विभाग के अधिकारी बाघों पर नजर रखने के लिए रेडियो कॉलरिंग या उनकी आवाजाही प्रतिबंधित करने के लिए पूरे इलाके में चेन लिंकिंग की बात कर रहे हैं। अभी तक 22 किमी के बड़े क्षेत्र में बाड़ लगा दी गई है। इससे बाघों की आवाजाही बंद हो रही है और पड़ोसी घनी आबादी वाली कॉलोनियों में उनकी घुसपैठ बढ़ सकती है। इससे आदमी और बाघ के बीच संघर्ष हो सकता है। प्रोजेक्ट टाइगर से जुड़े लोगों का कहना है कि बदलते परिवेश से बाघों के व्यवहार में बदलाव आ रहा है। राष्ट्रीय उद्यानों के बाघों की तरह, इन बाघों को भी मानव उपस्थिति से कोई आपत्ति नहीं है, जो खतरनाक बात है। भोपाल के प्रशासन और राज्य सरकार को बाघ विचरण के इलाकों में निर्माण और मानव गतिविधियों पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाना होगा।