कम नुकसान प्रतिशत की रिपोर्ट—SLR के सख़्त आदेश का कमाल! ”

Low loss percentage reported—the magic of SLR’s strict order!”
चंदा कुशवाह (संवाददाता)
अगर मालवा ! ज़िले में किसानों के लिए राहत अब बस एक छलावा बनकर रह गई है। प्राकृतिक आपदा से फसलें चौपट हो गईं, किसान मुआवज़े की उम्मीद में सरकारी दफ्तरों के चक्कर काट रहे हैं, लेकिन राहत मिलने के बजाय उन्हें सिर्फ़ बहलाया जा रहा है।
सूत्रों का कहना है कि इस पूरी स्थिति के पीछे ज़िला अधीक्षक भू-अभिलेख (SLR) प्रीति चौहान का ही दबाव है। जानकारी के मुताबिक, विभाग द्वारा शासन को भेजी गई कम नुकसान प्रतिशत वाली रिपोर्ट भी SLR मैडम के सख़्त निर्देशों पर ही तैयार की गई थी। यानी आंकड़ों में ‘कटौती’ कर्मचारियों ने अपनी मर्ज़ी से नहीं, बल्कि दबाव में की।
कर्मचारियों ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि असली समस्या उनकी नहीं, बल्कि ऊपर से आने वाले आदेशों की है। “हम किसानों को सही नुकसान दिखाना चाहते हैं, लेकिन हमें निर्देश मिलता है कि नुकसान कम बताओ और किसानों को सिर्फ़ चक्कर कटवाओ। फिर जब हंगामा होता है तो दोष हम पर डाल दिया जाता है।”
व्यंग्य की बात यह है कि जिस अधिकारी को जनता की शिकायतें सुननी चाहिए, दुख समझना चाहिए और किसानों की समस्या शासन तक साफ़ तौर पर पहुँचानी चाहिए, उनकी मंशा उलटी है—न शिकायत सुनने का इरादा, न दुख समझने का और न ही समस्या शासन तक पहुँचाने का।
सूत्र बताते हैं कि SLR मैडम अपने कैबिन में कर्मचारियों को आने तक नहीं देतीं और दिनभर मोबाइल पर रील्स देखने में व्यस्त रहती हैं। किसानों की समस्याएँ फाइलों में धूल खाती रहती हैं और अधिकारी रीलों में ‘टारगेट’ अचीव करती रहती हैं।
अब किसानों की नाराज़गी बढ़ने लगी है। कुछ किसान संघ प्रतिनिधियों ने SLR की वह रिपोर्ट मांगी है, जिसमें नुकसान का प्रतिशत घटाकर भेजा गया है। उनका कहना है कि यह स्पष्ट होना चाहिए कि आखिर किस दबाव में और किस मंशा से किसानों के साथ ऐसा अन्याय किया गया।
किसानों का साफ कहना है कि यदि हालात ऐसे ही रहे तो वे आंदोलन करने को बाध्य होंगे। आखिर सवाल यही है—क्या प्रशासन जनता के लिए है या जनता को गुमराह करने के लिए?