एमएफपी पार्क में आदिवासी समितियों को दरकिनार कर व्यापारिक सिंडिकेट से हो रही खरीदी

Purchases are being made from commercial syndicates in MFP Park bypassing the tribal committees
पूर्व विधायक उरेती ने की उच्च स्तरीय जांच की मांग
भोपाल। मध्यप्रदेश में लघु वनोपज प्रसंस्करण केंद्र (एमएफपी पार्क) एक बार फिर विवादों में घिर गया है। आदिवासी हितों की अनदेखी और भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों के बीच भाजपा के पूर्व आदिवासी विधायक दुलीचंद उरेती ने राज्यपाल और मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर उच्च स्तरीय गैर विभागीय जांच की मांग की है। उरेती का आरोप है कि सहकारी संस्थान के नाम पर एमएफपी पार्क व्यापारिक सिंडिकेट को फायदा पहुंचा रहा है, जबकि आदिवासी समितियों और वनधन केंद्रों को खरीदी प्रक्रिया से बाहर रखा जा रहा है।
पूर्व विधायक उरेती ने आरोप लगाया कि एमएफपी पार्क द्वारा रॉ मटेरियल की खरीदी में सहकारी समितियों के बजाय पसंदीदा निजी फर्मों से टेंडर के माध्यम से सामग्री खरीदी जा रही है। उन्होंने दावा किया कि यह पूरी प्रक्रिया भ्रष्टाचार से भरी हुई है। कई बार टेंडर की शर्तें ऐसी रखी जाती हैं कि केवल बड़ी व्यापारिक कंपनियां ही हिस्सा ले सकें। इस कारण से असली हितग्राही—आदिवासी संग्राहक और समितियां—प्रक्रिया से बाहर हो जाते हैं।
गूग्गल खरीदी में घोटाले का आरोप
उरेती ने हाल ही में गूग्गल खरीदी में हुई अनियमितताओं की ओर इशारा करते हुए कहा कि इसमें नियमों को ताक पर रखकर एमओयू के माध्यम से एक निजी व्यापारी से ऊंचे दामों पर खरीदी की गई, जिससे संस्था को लाखों का नुकसान हुआ। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि जांच में एक एसडीओ को बचा लिया गया जबकि एसीएफ की रिपोर्ट में कई वरिष्ठ अधिकारी दोषी पाए गए।
आठ वर्षों में 100 करोड़ से अधिक की खरीदी
शिकायती पत्र में बताया गया कि बीते आठ वर्षों में एमएफपी पार्क ने करीब 100 करोड़ रुपये की लघु वनोपज खरीदी की है। यह खरीदी बिना संचालक मंडल की स्वीकृति या वनोपज संघ से अनुमति लिए बिना की गई। परफॉर्मेंस गारंटी जैसी शर्तों का उल्लंघन कर फर्मों को लाभ पहुंचाया गया।
टेंडर प्रक्रिया आदिवासियों के खिलाफ उरेती ने कहा कि निविदा शर्तों में ऐसा प्रावधान कर दिया गया है कि जिन फर्मों का टर्नओवर एक करोड़ रुपये हो और जिनके पास मान्यता प्राप्त लैब रिपोर्ट हो, वही हिस्सा ले सकती हैं। इससे आदिवासी समितियां और छोटे व्यापारी पूरी तरह से बाहर हो जाते हैं। यहां तक कि प्रदेश में उपलब्ध वनोपज जैसे आंवला, हर्र, बहेड़ा, शहद, महुआ आदि को भी निजी फर्मों से ऊंचे दामों पर खरीदा जा रहा है।
गैर विभागीय जांच समिति की मांग
पूर्व विधायक उरेती ने मांग की है कि वनोपज खरीदी के लिए जारी मौजूदा टेंडर को तत्काल निरस्त किया जाए और एक निष्पक्ष, गैर विभागीय उच्च स्तरीय जांच समिति गठित की जाए। साथ ही विगत दस वर्षों के एमओयू, खरीदी गई सामग्री, संबंधित फर्मों और भुगतान की गहन जांच की जाए। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि आदिवासी संग्राहकों, वन समितियों और वनधन केंद्रों के माध्यम से खरीदी सुनिश्चित की जाए।
एमएफपी पार्क में हो रही अनियमितताएं एक बार फिर इस सवाल को जन्म देती हैं कि आदिवासी कल्याण के नाम पर चलाई जा रही योजनाओं का असली लाभ किसे मिल रहा है। यदि आरोप सही हैं, तो यह आदिवासियों के अधिकारों और संसाधनों की खुली लूट है, जिसकी निष्पक्ष जांच अत्यंत आवश्यक है।