जेल की चारदीवारी में आध्यात्मिक उजाला: केंद्रीय जेल जबलपुर में श्रीमद् भागवत कथा का शुभारंभ

Spiritual light within the prison walls: Shrimad Bhagwat Katha started in Central Jail Jabalpur

जितेन्द्र श्रीवास्तव विशेष संवाददाता
जबलपुर। नेताजी सुभाष चंद्र बोस केंद्रीय जेल के इतिहास में शनिवार, 14 जून 2025 का दिन अध्यात्म और आस्था का अद्भुत संगम लेकर आया। जेल परिसर में शिव मंदिर कचनार सिटी विजय नगर के मुख्य आचार्य एवं मां दक्षिणेश्वरी धाम के संस्थापक सुरेंद्र कृष्ण शास्त्री जी महाराज के सान्निध्य में श्रीमद् भागवत महापुराण कथा का भव्य शुभारंभ हुआ।

शास्त्री जी महाराज ने अपने प्रेरणादायी प्रवचनों में कहा, “जो लोग जेल की सीमाओं में रहते हुए भी श्रीमद् भागवत कथा का श्रवण कर रहे हैं, वे वास्तव में सौभाग्यशाली हैं।” उन्होंने यह भी कहा कि बाहर की दुनिया में कई लोग हैं जिन्हें आज तक यह पुण्य अवसर नहीं मिल पाया है। लेकिन यहां बंदियों को भगवान श्रीकृष्ण की अमृतमयी कथा सहज ही प्राप्त हो रही है, जो उनके जीवन में आध्यात्मिक परिवर्तन और आत्मशुद्धि का मार्ग प्रशस्त करेगी।
कथा स्थल बना भक्ति का केंद्र
कथा की शुरुआत जेल के पूर्वी खंड में बैंड-बाजों और भजन की मधुर धुनों के बीच निकाली गई शोभायात्रा से हुई। इस शोभायात्रा में जेल अधिकारी, कर्मचारी और बंदी मिलकर जय श्रीकृष्ण के उद्घोष लगाते हुए उत्साहपूर्वक शामिल हुए। पूरा वातावरण भक्ति, श्रद्धा और उत्साह से गूंज उठा।
इस अवसर पर जेल अधीक्षक अखिलेश तोमर ने शास्त्री जी का पुष्पमाला पहनाकर आत्मीय स्वागत किया। कार्यक्रम में उप जेल अधीक्षक मदन कमलेश, रूपाली मिश्रा, सहायक जेल अधीक्षक अंजू मिश्रा, प्रशांत चौहान, हिमांशु तिवारी, ओम प्रकाश दुबे सहित अन्य अधिकारी एवं कर्मचारी उपस्थित रहे। पूजन-अर्चन की विधि प्रतिष्ठित आचार्य अमित शास्त्री द्वारा विधिपूर्वक संपन्न कराई गई।

आध्यात्मिक पुनर्निर्माण की दिशा में प्रशंसनीय पहल
जेल प्रशासन की यह पहल न केवल बंदियों के मानसिक और आध्यात्मिक उत्थान की दिशा में एक प्रभावी कदम है, बल्कि यह बताती है कि सुधार और पुनर्वास की प्रक्रिया में धर्म और संस्कृति की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। श्रीमद् भागवत कथा का आयोजन बंदियों को आत्मचिंतन, आत्मशुद्धि और एक नवजीवन की प्रेरणा देगा।

केंद्रीय जेल में इस प्रकार के धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजन, समाज के पुनर्निर्माण की एक सकारात्मक तस्वीर प्रस्तुत करते हैं। यह सिद्ध करता है कि यदि अवसर और मार्गदर्शन मिले, तो हर मनुष्य आत्मिक विकास की ओर अग्रसर हो सकता है — चाहे वह किसी भी परिस्थिति में क्यों न हो।