March 14, 2025

90 करोड़ रुपये के डीएमएफ घोटाला में ईडी ने कोर्ट में पेश किया आठ हजार पन्नों का आरोप पत्र, सरकारी अधिकारी लेते थे 40% कमीशन

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रायपुर

प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने बहुचर्चित खनिज जिला न्यास मद (डीएमएफ) घोटाले के मामले में सोमवार को विशेष कोर्ट में आठ हजार 21 पन्नों का पहला आरोप पत्र पेश किया। यह मामला पूर्ववर्ती भूपेश बघेल सरकार में सामने आया था।

आरोप पत्र में अब तक हुई जांच के हवाले से ईडी ने आकलन दिया है कि डीएमएफ घोटाला 90 करोड़ 48 लाख रुपये का है। आरोप पत्र में जेल में बंद निलंबित आईएएस रानू साहू, महिला बाल विभाग की अफसर रहीं माया वारियर, ब्रोकर मनोज कुमार द्विवेदी समेत 16 आरोपितों के नाम हैं।

ईडी सूत्रों ने बताया कि विशेष कोर्ट में पेश किए गए अभियोजन चालान में 169 पन्नों में प्रासिक्यूशन कंप्लेन और 7,852 आरयूडी दस्तावेज शामिल हैं।

मनोज द्विवेदी को कोर्ट ने भेजा जेल
चार दिन की ईडी रिमांड खत्म होने पर सोमवार को कारोबारी और एनजीओ के सचिव मनोज कुमार द्विवेदी को स्पेशल कोर्ट में पेश किया गया। दोनों पक्षों की बहस सुनने के बाद कोर्ट ने मनोज को 14 दिन की न्यायिक हिरासत में जेल भेजने का आदेश दिया।

ईडी की जांच से पता चला है कि वर्ष 2021-22 और 2022-23 में मनोज कुमार द्विवेदी ने रानू साहू और अन्य अधिकारियों से मिलीभगत की। अपने एनजीओ उदगम सेवा समिति के नाम पर कई डीएमएफ ठेके हासिल किए थे। अधिकारियों को टेंडर की राशि का 40 प्रतिशत तक कमीशन दिया था।

द्विवेदी ने डीएमएफ फंड की हेराफेरी करके 17 करोड़ 79 लाख रुपये कमाए, जिसमें से छह करोड़ 57 लाख अपने पास रख लिए। बाकी रकम रिश्वत के रूप में अधिकारियों को दे दी। ठेका के लिए जिला स्तर के अधिकारियों से मिलीभगत करके उनकी मदद भी की।

निलंबित आईएएस रानू साहू, माया वारियर, मनोज कुमार द्विवेदी, भुवनेश्वर सिंह राज, भरोसा राम ठाकुर, वीरेंद्र कुमार राठौर, राधेश्याम मिर्झा, श्रीकांत दुबे, संजय शिंदे, हरिषभ सोनी, राकेश कुमार शुक्ला, अशोक अग्रवाल, मुकेश कुमार अग्रवाल, विनय कुमार अग्रवाल, ललित राठी और तोरणलाल चंद्राकर के नाम शामिल हैं।

टेंडर भरने वालों को पहुंचाया अवैध लाभ
ईडी की रिपोर्ट के आधार पर घोटाले में ईओडब्ल्यू ने धारा 120 बी 420 के तहत केस दर्ज किया है। केस में यह तथ्य सामने आया कि डिस्ट्रिक्ट माइनिंग फंड कोरबा के फंड से टेंडर आवंटन में बड़े पैमाने पर घोटाला किया गया है। टेंडर भरने वालों को अवैध लाभ पहुंचाया गया। जांच में पाया गया कि टेंडर राशि का 40% सरकारी अफसर को कमीशन के रूप में दिया गया है।

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