November 22, 2024

चीन ने तालिबान के साथ मिलाया हाथ, पाक सेना का सपना धरा का धरा रह गया

0

Ignoring Pakistan’s opposition, China joined hands with Taliban, Pakistan Army’s dream dashed

चीन दो अहम पड़ोसियों अफगानिस्तान और पाकिस्तान के साथ मिलकर अपनी स्थिति क्षेत्र में मजबूत करता दिखाई दे रहा है। इस त्रिपक्षीय रिश्ते को गति मिलने से अफगानिस्तान के भविष्य के प्रक्षेप पथ खुलेंगे साथ ही क्षेत्रीय स्थिरता और समृद्धि के लिए भी इसके व्यापक निहित होने जा रहे हैं।

बीजिंग: अफगानिस्तान में साल 2021 में तालिबान के दोबारा सत्ता में आने के बाद से चीन से उनके रिश्ते अच्छे रहे हैं। चीन ने बीते साल झाओ जिंग को अफगानिस्तान में अपना राजदूत बनाया था। ऐसा करने वाला चीन पहला देश था। इस पर तालिबान की ओर से खुशी जताई गई थी। चीन के इस फैसले को क्षेत्र में अपना प्रभाव मजबूत करने के प्लान के तौर पर देखा गया था। अफगानिस्तान उस क्षेत्र के केंद्र में है, जहां चीन की महत्वाकांक्षी बेल्ट एंड रोड परियोजना चल रही है। इन दोनों देशों का एक और अहम पड़ोसी पाकिस्तान है, जो चीन का खास दोस्त और इस प्रोजेक्ट में भी अहम भागीदार है। चीन, पाकिस्तान और तालिबान के नेतृत्व वाले अफगानिस्तान के बीच का रिश्ता दुनिया का ध्यान खींच रहा है क्योंकि तीनों देश सुरक्षा चिंताओं और भू-राजनीतिक दबावों का भी सामना कर रहे हैं।

द डिप्लोमैट की रिपोर्ट के मुताबिक, सुरक्षा के नजरिए से चीन और पाकिस्तान दोनों अफगानिस्तान को अपने-अपने क्षेत्रों में आतंकी गतिविधियों के प्रसार के खिलाफ एक महत्वपूर्ण सुरक्षा बफर के रूप में देखते हैं। इसी के नतीजे में चीन और पाकिस्तान ने तालिबान को अपने हितों की रक्षा के लिए एक अच्छे विकल्प के तौर पर चुना है। तालिबान दोनों के लिए अहम है क्योंकि उसने अफगानिस्तान के अधिकांश हिस्सों पर नियंत्रण किया हुआ है।

अफगानिस्तान को होगा त्रिकोणीय संबधों का फायदा!
पाकिस्तान की हालिया समय में तालिबान से कुछ शिकायतें भी रही हैं। वह आतंकवादी समूहों से लड़ने के अपने वादे पर पूरी तरह खरा उतरता नहीं कर रहा है। चीन ने पाकिस्तान को दरकिनार करते हुए तालिबान के साथ संबंधों का विस्तार किया है। ये क्षेत्र को संतुलित करने की इच्छा को दिखाता है। चीन पाकिस्तान अपने एजेंडे को आगे बढ़ाएंगे लेकिन इस त्रिपक्षीय रिश्ते की गतिशीलता निश्चित ही अफगानिस्तान के भविष्य और क्षेत्रीय स्थिरता के निहितार्थ को आकार देगी। तालिबान के साथ चीन की सक्रिय भागीदारी के साथ ही ये भी ध्यान देने की बात है कि पाकिस्तान के तालिबान से हाल में रिश्ते अच्छे नहीं है। इससे कहीं ना कहीं त्रिपक्षीय सहयोग की संभावनाएं प्रभावित हो रही हैं।

अगस्त 2021 में तालिबान के काबुल पर कब्जा करने के बाद से ही चीन अफगानिस्तान में कई पहलुओं में पहला प्रस्तावक रहा है। मानवीय सहायता प्रदान करने, बड़े निवेश सौदों पर हस्ताक्षर करने, काबुल में राजदूत नियुक्त करने और तालिबान राजदूत को स्वीकार करने वाला चीन पहला देश रहा है। चीन ने वास्तव में खुद को तालिबान के लिए एक भरोसेमंद भागीदार के रूप में स्थापित किया है, जो युद्धग्रस्त देश के विकास में सहायता करने को तैयार है। साथ ही तालिबान शासन को अंतरराष्ट्रीय और राजनीतिक वैधता प्राप्त करने में भी मदद कर रहा है।

कूटनीतिक रूप से बीजिंग एक वार्ताकार की तरह काम कर रहा है और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर तालिबान पर नजर रख रहा है। चीन की ओर तालिबान पर प्रतिबंधों और परिसंपत्तियों पर रोक को कम करने का आग्रह किया जा रहा है और तालिबान शासन को मदद के लिए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में अपनी वीटो शक्ति का इस्तेमाल कर रहा है। हालांकि इसी साल जनवरी में चीन के विदेश मंत्रालय ने ये भी कहा था कि तालिबान शासन को गैर-तालिबान और गैर-पश्तून गुटों के साथ एक समावेशी प्रशासन बनाना चाहिए और औपचारिक मान्यता पर विचार करने से पहले आतंकवाद से लड़ना चाहिए।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

न्यूज़

slot server thailand super gacor

spaceman slot gacor

slot gacor 777

slot gacor

Nexus Slot Engine

bonus new member

https://www.btklpppalembang.com/

olympus

situs slot bet 200

slot gacor